डीयू में मिलेगा ‘गांधी का चरखा’ चलाने में सर्टिफिकेट

राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की शिक्षाओं को आज के युवाओं तक पहुंचाने की पहल दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय (डीयू)में की गई है. डीयू में ‘चरखा कातने’ का एक प्रमाणपत्र कार्यक्रम चलाया जाता है. जो पूरी तरह से नि:शुल्क है.गांधी भवन की उप डीन निशा त्यागी ने कहा, ‘आप खादी के कपडों में आइये और सीखिये कि कैसे चरखा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 7, 2014 2:11 PM

राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की शिक्षाओं को आज के युवाओं तक पहुंचाने की पहल दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय (डीयू)में की गई है. डीयू में ‘चरखा कातने’ का एक प्रमाणपत्र कार्यक्रम चलाया जाता है. जो पूरी तरह से नि:शुल्क है.गांधी भवन की उप डीन निशा त्यागी ने कहा, ‘आप खादी के कपडों में आइये और सीखिये कि कैसे चरखा चलाया जाता है. डीयू के इस नए पाठ्यक्रम के लिए बस यही अर्हता है.’

डीयू के कमला नेहरु महाविद्यालय की हिंदी की पूर्व प्राध्यापिका सीता बिंब्राह डीयू के गांधी भवन में शाम को तीन से पांच बजे तक छात्रों के एक समूह को चरखे से सूत कातना सिखाती हैं.78 वर्ष की उम्र में चरखा सिखाने का जुनून सीता के लिए कोई नया नहीं है. उन्होंने देश के कई पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी चरखा चलाना सिखाया है जिनमें जवाहर लाल नेहरु, वी. पी. सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और मोरारजी देसाई शामिल हैं.

बिंब्राह ने बताया कि 1991 में एक यात्रा के दौरान आयरलैंड के विदेश मंत्री जेराल्ड कॉलिन्स को चरखा कातना सिखाने की घटना उन्हें विशेष तौर पर याद है. इस घटना के बारे में याद करते हुए उन्‍होंने कहा कि ‘1969 से मैं हर शुक्रवार को राजघाट पर चरखा चलाना सिखाती हूं. उस दिन भी शुक्रवार था जब कॉलिन्स आए थे. उन्होंने मुझे एक समूह को चरखा चलाना सिखाते हुए देखा था. वह इसे देख कर रोमांचित हो गए और चरखा सीखने की इच्छा प्रकट की. मैं उनकी पहचान से अनभिज्ञ थी इसलिए मैंने यह कह कर विनम्रता से मना कर दिया कि मेरे घर जाने का समय है. तब उनके साथ एक अधिकारी ने मुझे उनके बारे में बताया और चरखा कातने की कला का प्रदर्शन करने को कहा.’’

सीता आगे बताती हैं, ‘‘मैंने फिर कहा कि मैं केवल उन्हीं लोगों यह कला सिखाती हूं जो खादी की पोशाक में होते हैं. इसलिए मैं मंत्री महोदय को नहीं सिखा सकती. तब उन्होंने अपनी टीम से कहा कि जितना जल्दी मुमकिन हो सके उनके लिए खादी के कुर्ते का प्रबंध किया जाए.’सीता ने आगे बताया कि ‘खादी का कुर्ता पहनने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा ‘महोदया, क्या अब मैं आपका शिष्य बनने के काबिल हूं?’ और आज मैं यह कह सकती हूं कि वे एक बहुत जल्दी सीख लेने वाले विद्यार्थी थे.’उन्होंने कहा कि बापू की हत्या शुक्रवार को की गई थी इसलिए वह राजघाट पर हर शुक्रवार को चरखा चलाना सिखाती हैं.

Next Article

Exit mobile version