स्मार्टफोन के इस्तेमाल में सतर्कता है जरूरी
ब्रह्मानंद मिश्र हाल ही में दुनियाभर में 100 से ज्यादा सेलेब्रिटीज के पर्सनल फोटो लीक होने की खबरें आयी हैं. अभिनेत्री जेनिफर लॉरेंस और मॉडल केट उपटॉन जैसी कई सेलेब्रिटी इस षड्यंत्र का शिकार हुईं. हमारे जीवन का जरूरी अंग बन चुके स्मार्टफोन के उपयोग में किस तरह की सावधानी की है जरूरत, कैसे होता […]
ब्रह्मानंद मिश्र
हाल ही में दुनियाभर में 100 से ज्यादा सेलेब्रिटीज के पर्सनल फोटो लीक होने की खबरें आयी हैं. अभिनेत्री जेनिफर लॉरेंस और मॉडल केट उपटॉन जैसी कई सेलेब्रिटी इस षड्यंत्र का शिकार हुईं. हमारे जीवन का जरूरी अंग बन चुके स्मार्टफोन के उपयोग में किस तरह की सावधानी की है जरूरत, कैसे होता है एकाउंट हैक, क्लाउड स्टोरेज टूल का कैसे करें इस्तेमाल आदि पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज ..
नयी दिल्ली : स्मा र्टफोन भले ही लोगों को स्मार्ट बना रहा है, लेकिन इस स्मार्टनेस की चकाचौंध से अब हमें बेहद सावधान रहने की भी जरूरत है. अभी पिछले हफ्ते ही 100 से ज्यादा सेलेब्रिटीज के पर्सनल फोटो उनके स्मार्टफोन से लीक हो जाने की खबर ने दुनियाभर में स्मार्टफोन का उपयोग कर रहे लोगों के होश उड़ा दिये. ‘द हंगर गेम्स’ की स्टार जेनिफर लॉरेंस, मॉडल केट उपटॉन सहित कई सेलेब्रेटी इस षड्यंत्र के शिकार हुए हैं. यह एक अत्यंत गंभीर अपराधतो है ही, साथ ही निजता के हनन का बड़ा मामला भी है.
इस खबर के बाद दुनियाभर में साइबर सिक्योरिटी को लेकर एक बार फिर नये सिरे से सोचने की जरूरत महसूस होने लगी है. बाजार में नित लांच हो रहे नये स्मार्टफोन और उसके साथ एक के बाद एक स्मार्ट एप लोगों को तेजी से आकर्षित कर रहे हैं, लोग काफी तेजी से इससे जुड़ भी रहे हैं, लेकिन उनके होश तब उड़ जाते हैं, जब पता चलता है कि कोई अत्यंत गोपनीय जानकारी, पासवर्ड या फोटो लीक हो गयी. धोखाधड़ी का शिकार होने के बाद उन्हें नाहक परेशान होना पड़ता है.
क्या स्मार्टफोन पर है खतरा?
इस घटना के बाद यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सभी प्रकार के स्मार्टफोन पर खतरा है? कुछ विशेषज्ञों का स्पष्ट तौर पर मानना है कि किसी भी प्रकार के स्मार्टफोन में व्यक्तिगत जानकारी स्टोर करने से पहले बेहद सावधानी बरतनी होती है. एंड्रॉयड, विंडोज और आइओएस मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम से किसी भी प्रकार की सूचना को किसी भी समय लीक होने या हैक होने का खतरा रहता है. नयी तकनीकों के माध्यम से आपका मेल एकाउंट या आपके द्वारा उपयोग किया जा रहा कोई भी एप हैक किया जा सकता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के वैज्ञानिकों के अनुसार, एंड्रॉयड फोन से डाटा हैक करना आसान होता है. वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में यह निष्कर्ष निकाला कि जी-मेल, एच एंड आर ब्लॉक (टैक्स फाइलिंग एप) से सूचनाओं के चोरी होने का खतरा हर वक्त बना रहता है. साथ ही गूगल ड्राइव और ड्रॉप बॉक्स से फोटो के चोरी होने की प्रबल संभावना रहती है. खासकर शेयर्ड ऑपरेटिंग सिस्टम पर चलने वाले एप पर इस प्रकार के खतरे ज्यादा रहते हैं. इस प्रकार के एप में सेंध लगाना हैकरों के लिए आसान होता है.
हालांकि, कुछ कंपनियों के एप को भेद पाना हैकरों के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होता है. कुछ मोबाइल के एप्स (जैसे मोबाइल के लिए वालपेपर डाउनलोड करना) को डाउनलोड करते वक्त हैकर ज्यादा सक्रिय रहते हैं और सरलता से हैक कर लेते हैं. एक बार एप के इंस्टॉल होने के बाद एक्सपर्ट स्मार्टफोन यूजर के बिना परमिशन के जानकारियों को लीक करने में कामयाब हो जाते हैं.
शेयर्ड मेमोरी, ऑपरेटिंग सिस्टम में बेहद सामान्य प्रक्रिया है, जिससे डाटा को शेयर करने में आसानी होती है. एंड्रॉयड सिस्टम में यह आसानी से किया जा सकता है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि एप्पल और विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम में भी यह काम किया जा सकता है. इसलिए अविश्वसनीय एप को स्मार्टफोन में कतई इंस्टॉल नहीं करना चाहिए. जहां तक संभव हो सके स्मार्टफोन में डाटा शेयर करते समय सावधानी बरतनी चाहिए.
कैसे होता है एकाउंट हैक
वेब पर डाटा भेजने, स्टोर करने और असुरक्षित प्रारूप में सर्वर पर रखने की प्रक्रिया में डाटा या फोटो चोरी होने का खतरा बना रहता है. इसका मतलब यह है कि डिवाइस को डाटा भेजने और ऑनलाइन स्टोर करते समय सावधान रहना चाहिए. हैकर्स किसी भी एकाउंट के लॉग-इन क्रिडेंशियल को हासिल करने के बाद सुरक्षा में सेंध लगाते हैं. ‘डेली मेल’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘द नेक्स्ट वेब’ ने सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट साइट जीआइटीएचयूबी पर कोड का पता लगाने में कामयाबी पायी है.
इसकी मदद से हैकर्स एप्पल आइक्लाउड (विशेषकर फाइंड माइ आइफोन सर्विस) पर ‘ब्रूट फोर्स’ को इस्तेमाल कर एकाउंट का पासवर्ड चोरी कर लेते हैं. दरअसल, ब्रूट फोर्स, जिसे ‘ब्रूट फोर्स क्रैकिंग’ के भी नाम से जाना जाता है, एक ट्रायल एंड एरर मेथड होता है.
इसका इस्तेमाल कर हैकर्स असुरक्षित डाटा से प्लेन टेक्स्ट पासवर्ड चोरी कर लेते हैं. हैकर्स संभावित पासवर्ड ब्रेक करने के लिए संभावित समुच्चयों (कॉम्बिेनशन) का इस्तेमाल करते हैं. ब्रूट फोर्स क्रैकिंग से सभी संभावित संकेतकों का अनुक्रम (सीक्वेंस) बनाने का प्रयास किया जाता है. ‘डेली मेल’ के मुताबिक, खासकर छह संकेतकों वाले पासवर्ड में हैकर्स ‘ए’ से शुरू करके ‘आइआइआइआइ’ पर खत्म करते हैं. हालांकि, स्मार्टफोन चोरी होने की स्थिति में ‘फाइंड माइ आइफोन’ उपभोक्ताओं की आइफोन, आइपैड, आइपॉड टच या मैक को सुरक्षित और स्थान का पता लगाने में सहायता करता है.
हैकर्स एप्पल आइडी और पासवर्ड को हासिल करने के लिए ‘सोशल इंजीनियरिंग’ तकनीक का भी सहारा लेते हैं. इस तकनीक में पासवर्ड ब्रेक करने के लिए इ-मेल एड्रेस, यूजर्स की माता का नाम, जन्म तिथि या संभावित अन्य तथ्यों से जुड़ी जानकारियों के लिए प्रयास करते हैं. सेलीब्रेटी तकरीबन सभी एकाउंट के लिए एक जैसे ही पासवर्ड का इस्तेमाल करते हैं. सही जानकारी होने पर किसी के लिए यह एकाउंट हैक करना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है. खराब पासवर्ड मैनेजमेंट का नतीजा है कि हैकर्स आसानी से गोपनीय जानकारियों तक पहुंच जाते हैं.
जानकारी व खुद की सतर्कता अहम
वेब सिक्योरिटी एक्सपर्ट और एनसीसी ग्रुप के सीइओ रॉब कॉटन के एक साक्षात्कार के अनुसार, साइबर अपराध से पीड़ित लोग आमतौर पर तकनीक पर ही उंगली उठा देते हैं, जबकि इसके पीछे आसान पासवर्ड का चयन और असुरक्षित रूप से इ-मेल का इस्तेमाल सबसे बड़ा कारण होता है. उनका मानना है कि ज्यादातर मामलों में उपभोक्ता द्वारा की गयी गलती ही जिम्मेवार होती है.
इएमइए सीटीओ मैके एफी, इंटेल सिक्योरिटी के राज सामानी ने मेल ऑनलाइन को दिये एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया है कि आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली सभी ऑनलाइन सेवाओं के लिए पासवर्ड प्रोटेक्शन जरूरी होता है. पासवर्ड सुरक्षित और हैकर्स की पहुंच से दूर हो, इसके लिए जरूरी है कि पासवर्ड में जटिल संकेतकों का अनुक्रम बनाया जाये. जटिल पासवर्ड बनाना कठिन काम नहीं है, लेकिन सुरक्षित ब्राउजिंग करना आज के दौर में मुश्किल है.
अगर आप क्लाउड पर कुछ संवेदनशील जानकारियों को स्टोर करते हैं, तो यह हर हाल में सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि आपको अल्ट्रा-सिक्योर क्लाउड का इस्तेमाल करना होगा, जिसके लिए बायोमीट्रिक सत्यापन की प्रक्रिया से गुजरना होगा. इससे ऑनलाइन आपके पर्सनल डाटा को सुरक्षित करने में अतिरिक्त मदद मिलेगी.
मोबाइल अटैक की हाल की घटना में हैकरों ने गैजेट को नियंत्रित करने के लिए आइ-क्लाउड एकाउंट के पासवर्ड को ब्रेक करने के साथ ही ‘फाइंड माय आइफोन’ फीचर का प्रयोग करते डिवाइस को लॉक भी कर दिया.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सुरक्षा की जिम्मेवारी क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर पर भी होती है. किसी प्रकार का डाटा या फोटो किसी अन्य को ट्रांसफर करने के बाद इस बात को लेकर सतर्क हो जाना चाहिए कि उस डाटा या फोटो पर एक हद तक आपका नियंत्रण खत्म हो जाता है. ऑनलाइन अपलोड करने की प्रक्रिया में भी यह स्थिति उत्पन्न होती है.
क्लाउड स्टोरेज टूल इस्तेमाल में सावधानी
वाइ-फाइ से जुड़ते ही आइ-क्लाउड का माय फोटो फीचर नये फोटो को क्लाउड पर अपलोड करना शुरू कर देता है. आपकी सभी डिवाइसेस में एक ही बार में ये फोटो पहुंच जाते हैं. इस विकल्प को बंद करने पर ही फोटो अपलोड करने की प्रक्रिया थमती है. फोन से फोटो डिलीट करने के बावजूद ये फोटो ऑनलाइन स्टोरेज से खत्म नहीं होते. आइ-क्लाउड के अलावा ऐसे फोटो यूजर की फोटो स्ट्रीम में भी मौजूद होते हैं.
ऐसी डिवाइसेस के आइपैड या आइपॉड-टच के संपर्क में आने पर ये फोटो शेयर हो सकते हैं. इसीलिए तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि क्लाउड स्टोरेज सोल्यूशंस का नियमों व शर्तो का बेहद सावधानीपूर्वक पालन करना चाहिए. दूसरे मामलों में आइ क्लाउड एकाउंट के बजाय डाटा या इमेज गूगल ड्राइव या ड्रॉप बॉक्स या किसी अन्य माध्यम से चोरी हो सकता है. ‘डेली मेल’ की रिपोर्ट के अनुसार, जून माह में गूगल ने ड्राइव सर्विस पर खतरे की आशंका जतायी थी, यानी गोपनीय जानकारियों के लीक होने के बारे में आगाह किया गया था.
सिक्योरिटी फ्लॉप की स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब फाइल मूल प्रारूप में गूगल ड्राइव पर अपलोड की जाती है और थर्ड पार्टी वेबसाइट से यह लिंक हो जाती है.इस स्थिति में यदि यूजर एंबेडेड (सन्निहित) लिंक पर क्लिक करता है, तो साइट क्लाउड का एडमिनिस्ट्रेटर मूल डाक्यूमेंट या फाइल यूआरएल (यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर) हासिल कर लेता है और इसकी मदद से हैकर्स सेंध लगाने में कामयाब हो जाते हैं. अभी कुछ महीने पहले ड्रॉप बॉक्स से लीकेज की संभावना जतायी गयी थी.
फोटो को रखें सुरक्षित और बचाएं डाउनलोड होने से
हैकिंग या लीकेज की समस्या से बचने के लिए जरूरी है मजबूत पासवर्ड का चयन करना. विशेषज्ञों का मानना है कि हमेशा अंकों और अक्षरों के संयोजन से पासवर्ड बनाना चाहिए. पासवर्ड जटिल होने पर हैकरों के लिए इसे ब्रेक कर पाना आसान नहीं होगा. एप्पल, ड्रॉप बॉक्स और गूगल यूजरों को ‘टू फैक्टर ऑथेंटिफिकेशन’ की सुविधा मुहैया कराते हैं.
इस तकनीक में पासवर्ड पिन नंबर या एप की मदद से मजबूत बनाया जाता है. ऐसी स्थिति में अगर कोई आपका पासवर्ड चुराना चाहता है, तो बिना फोन इस्तेमाल किये यह संभव नहीं है. जैसा कि हम जानते हैं कि क्लाउड पर फोटो अपलोड होने पर फोटो या डाटा पर यूजर का नियंत्रण खत्म हो जाता है. ऑटोमैटिक बैकअप सर्विस रोकने के लिए आइ-क्लाउड, ड्रॉप-बॉक्स और गूगल द्वारा यूजर्स के लिए फीचर उपलब्ध कराये जा रहे हैं. ‘मिरर डॉट सीओ डॉट यूके’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यदि आपके पास आइओएस डिवाइस या मैक है, तो आप फोटोस्ट्रीम को रोक सकते हैं.
– आइओएस में इसकी सेटिंग आइ-क्लाउड के तहत होती है जबकि मैक में यह सिस्टम प्रिफरेंस पर आधारित होती है. यदि आप एप्पल डिवाइसेस से फोटोस्ट्रीम ऑफ कर पाने में सफल होते हैं तो आइ-क्लाउड में स्टोर सभी फोटो खुद डिलीट हो जायेंगे.
– आइओएस और एंड्रॉयड के लिए ड्रॉपबॉक्स एप क्लाउड पर फोटो या वीडियो अपलोड करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. एप की विंडो सेंटिंग से इस ऑफ किया जाता है. लेकिन ड्रॉप बॉक्स से फोटो स्वत: डिलीट नहीं होते. इसके लिए आपको ड्रॉप बॉक्स के फोटो फोल्डर में जाकर मैनुअली फोटो डिलीट करना होगा. अगर आप प्रिमियम ड्रॉप बॉक्स यूजर हैं तो आपको ड्रॉप बॉक्स की वेबसाइट पर जाकर पर्मानेंटली डिलीट बटन का इस्तेमाल करना होगा.
– गूगल के ऑटोमैटिक फोटो बैकअप को रोकने के लिए एंड्रॉयड डिवाइस के फोटो एप्स की सेंटिग में जाकर ऑटो बैकअप में अनटिक करना होगा. मालूम हो कि क्लाउड से फोटो डिलीट करने के लिए गूगल बिन आइकन की सुविधा मुहैया कराता है.
ऐसा था दुनिया का पहला स्मार्टफोन
वर्ष 1994 में अमेरिकन सेल्युलर कंपनी बेलसेल्फ और कंप्यूटर निर्माता कंपनी आइबीएम ने पहला स्मार्टफोन बनाया था. इस तरह पहले स्मार्टफोन के बीस साल पूरे हो चुके हैं.
आइबीएम द्वारा निर्मित इस स्मार्टफोन का बैटरी बैकअप बहुत कम (लगभग एक घंटे तक) था. अमेरिकन सेल्युलर कंपनी ने वर्ष 1994 में इसकी बिक्री शुरू की थी. इस स्मार्टफोन में यूजरों को टच स्क्रीन की भी सुविधा उपलब्ध करायी गयी थी. हालांकि इस स्मार्टफोन में फीचर्स आज के जमाने स्मार्टफोन की तुलना में काफी कम थे. इस स्मार्टफोन में फैक्स आदि भेजने व रिसीव करने की सुविधा उपलब्ध थी. मैप व गेम आदि की सुविधा वाले इस स्मार्टफोन की कीमत 40 हजार रुपये से ज्यादा थी.
यह भी जानें
– एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम का निर्माण गूगल द्वारा नहीं किया गया था. वर्ष 2003 में एंड्रॉयड इंक नाम की एक कंपनी द्वारा यह विकसित किया गया था. गूगल ने वर्ष 2005 में इस कंपनी को अधिग्रहीत कर लिया था.
– आज के दौर में एंड्रॉयड एक बिलियन से ज्यादा डिवाइसेस पर ऑपरेट हो रहा है. एंड्रॉयड और आइओएस के मार्केट शेयर की तुलना करें तो गूगल और एप्पल की हिस्सेदारी क्रमश: 56 और 27.5 प्रतिशत है.
– पहली बार एंड्रॉयड एचटीसी ड्रीम या टी-मोबाइल जी1 मोबाइल हैंडसेट पर ऑपरेट किया गया. 2009 में यूएस में मोटोरोला ड्रॉयड पर चलाया गया.
– गूगल ने जून, 2012 में अपना टेबलेट ‘द नेक्सस 7’ लांच किया, जिस पर एंड्रॉयड 4.1 जेली बीन संचालित हो रहा है.
स्नेत : मिररडॉटसीओडॉटयूके