छात्रों को तनावमुक्त करेगा मोबाइल ऐप
तनाव को आप आधुनिक जीवनशैली का अभिन्न अंग कहें या दुष्परिणाम, पर अब इससे अछूता कोई नहीं है. छात्र तो कुछ ज्यादा ही दबाव में हैं. ऐसे में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की शोध छात्रा नित्या कनूरी भारत में छात्रों के लिए लेकर आ रही हैं एंग्जाइटी मैनेजमेंट के लिए एक मोबाइल ऐप, जिसे उन्होंने खुद तैयार […]
तनाव को आप आधुनिक जीवनशैली का अभिन्न अंग कहें या दुष्परिणाम, पर अब इससे अछूता कोई नहीं है. छात्र तो कुछ ज्यादा ही दबाव में हैं. ऐसे में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की शोध छात्रा नित्या कनूरी भारत में छात्रों के लिए लेकर आ रही हैं एंग्जाइटी मैनेजमेंट के लिए एक मोबाइल ऐप, जिसे उन्होंने खुद तैयार किया है. आप्रवासी भारतीयों की कोशिश पर केंद्रित इस शृंखला की चौथी कड़ी में जानिए, नित्या कनूरी और उनके काम के बारे में.
।। सेंट्रल डेस्क ।।
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सा एवं व्यवहार विज्ञान विभाग में शोध छात्रा नित्या कनूरी ने ह्यएंग्जाइटी मैनेजमेंटह्ण का ऐसा मोबाइल ऐप (अप्लीकेशन) तैयार किया है जो छात्रों में तनाव के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है. इसकी शुरुआत उन्होंने अमेरिका में की और इसकी सफलता के प्रति आश्वस्त होने के बाद भारत में इसे उतारने की योजना बनायी है. वह भारत में स्ट्रेस और एंग्जाइटी मैनेजमेंट के आपसी संवाद पर आधारित कई सत्रों में भाग ले चुकी हैं.
मूल रूप से हैदराबाद से ताल्लुक रखनेवाली नित्या बताती हैं, मैंने पहले यह पढ़ रखा था कि चिंता और तनाव कई बीमारियों की जड़ हैं, लेकिन सैन फ्रांसिस्को में खुदकुशी रोकने के लिए एक हेल्पलाइन में काम करने के दौरान मैंने जाना कि विद्यार्थियों के बीच स्थिति कितनी भयावह है.
उसी दौरान नित्या को भारत सहित कई देशों के संस्थानों से विशेषज्ञ के तौर पर अपनी बात रखने के लिए आमंत्रण भी मिले. इस प्रक्रिया में उन्हें यह भी समझने का मौका मिला कि कौन-कौन से संस्थान लोगों के बीच चिंता, तनाव और अवसाद का इलाज करते हैं और उनके इलाज का तरीका क्या है.
नित्या बताती हैं कि मैंने इस क्षेत्र में सेवा करनेवाले होप ट्रस्ट के कामकाज के तरीके को जाना. नशामुक्ति के लिए यह एक पुनर्वास केंद्र है, जहां दवाओं से इलाज से पहले दूसरे ढंग से समस्या का निवारण किया जाता है. लेकिन मुश्किल यह है कि मरीज या उनके परिवारवालों को ऐसी जगहों पर जाने से पहले यह सोचना पड़ता है कि समाज क्या सोचेगा! इन जगहों पर जाने को लेकर एक असमंजस और असुरक्षा का भाव घर कर जाता है.
भारत में चिकित्सकीय मनोविज्ञान और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने का इरादा रखनेवाली नित्या कहती हैं, कुल मिला कर यह कह सकते हैं कि तनाव और अवसाद से निबटने के लिए भारत में गिने-चुने ही सही, साधन तो हैं, लेकिन लोग उन्हें आजमाना नहीं चाहते हैं.
ऐसे में उन्हें फोन आधारित एक ऐसे स्ट्रेस मैनेजमेंट ऐप बनाने का आइडिया आया, जिसकी मदद से लोग आसानी से अपने तनाव पर काबू पा सकेंगे. एक फोन ऐप के रूप में होने से यह ज्यादा लोगों की पहुंच में होगा और इससे उनकी निजता भी सुरक्षित रहेगी.
नित्या बताती हैं कि भारत मे आये दिन छात्रों द्वारा आत्महत्या की खबरें सामने आती हैं. इस नाजुक उम्र में पढ़ाई और अभिभावकों की उम्मीदों के बोझ तले तनाव होना लाजिमी है. नित्या आगे कहती हैं कि हम इस ऐप के जरिये अक्तूबर माह में आइआइटी चेन्नई और बीआइटी सहित कुछ संस्थानों में पढ़नेवाले छात्रों में तनाव और चिंता का स्तर जानने के लिए कैंप लगाने जा रहे हैं.
नित्या बताती हैं, इस ऐप के जरिये हम छात्रों के बीच चिंता के स्तरों का पता लगायेंगे और इसके आधार पर उन्हें अलग-अलग समूहों में बांटेंगे. इसी आधार पर उन्हें सलाह-मशविरा दिया जायेगा या फिर इलाज किया जायेगा. नित्या का दावा है कि एंग्जाइटी के मामले में इलाज 75 फीसदी तक सटीक काम करता है.
नित्या कहती हैं कि अमेरिका के बाद भारत में भी इस कार्यक्रम को लेकर ऐसा उत्साह है कि जहां कहीं भी मैं जाकर लोगों को इसके बारे में बताती हूं, आधे से अधिक लोग खुशी-खुशी इसमें भाग लेने के लिए तैयार हो जाते हैं. आजकल तो मुझे हर रोज लगभग आठ से दस बच्चों के ई-मेल मिल रहे हैं जो ये पूछते हैं कि आप हमारे स्कूल कब आ रही हैं? हमें भी आपके तनाव प्रबंधन कार्यक्रम की जरूरत है.
अमेरिका के बाद आपने अपने इस कार्यकम के लिए भारत को ही क्यों चुना, इस सवाल के जवाब में नित्या कहती हैं कि मेरे परिवार की जड़ें हैदराबाद से जुड़ी हैं और भारतीय व तेलुगु संस्कृति में आज मेरा मन बसता है. शादी-विवाह के मौकों पर मैं अब भी भारत आती रहती हूं और कुछ समय यहां बिताती हूं. मैं इस देश के लोगों के लिए कुछ करना चाहती हूं और यही वजह है कि मैंने अमेरिका में विकसित किये अपने इस प्रोग्राम को भारतीय विश्श्वविद्यालयों में पेश करनी की चाहत रखती हूं.
छात्रों को चिंता और तनाव से दूर रहने के लिए नित्या उन्हें स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की सलाह देती हैं. साथ ही वह इस बात पर भी जोर देती हैं कि तनाव से बचने के लिए दवाइयों की नहीं, संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा (कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी) की मदद लेनी चाहिए, जिनका असर लंबे समय के लिए होता है.
(इनपुट : रेडिफ)