जब डल ने सब कुछ निगल लिया

फ़ैसल मोहम्मद अली बीबीसी संवाददाता, श्रीनगर से झेलम नदी का पानी जब सैलाब बनकर शहर में घुसा तो बाद में उसका कुछ हिस्सा डल झील में भी जाने लगा. जिससे वो अपने खतरे के निशान के बहुत ऊपर चली गई. फिलहाल डल में हर तरह बर्बादी दिखती है. डल झील के सामने की सड़क इतने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 17, 2014 12:27 PM

झेलम नदी का पानी जब सैलाब बनकर शहर में घुसा तो बाद में उसका कुछ हिस्सा डल झील में भी जाने लगा. जिससे वो अपने खतरे के निशान के बहुत ऊपर चली गई.

फिलहाल डल में हर तरह बर्बादी दिखती है.

डल झील के सामने की सड़क इतने गहरे पानी में डूबी है कि उस पर शिकारे चल रहे हैं.

एक स्थानीय डॉक्टर ने हमारी मदद की और हम शब्बीर अहमद के शिकारे में बैठ डल में आगे की तरफ हो लिए.

डल की भयावह तस्वीर

श्रीनगर की डल झील जो सारी दुनिया में अपनी खूबसूरती और हाउसबोटों के लिए जानी जाती है, इस बाढ़ की वजह से तबाही की एक भयावह तस्वीर बन गई है.

शिकारे और हाउस बोट, कश्मीरी कालीन और स्थानीय चीजों की दुकानें और शिकारा खेने वाले मछुआरों के झील पर तैरते घर, इन सब की तमन्नाएं, रोज़ी-रोटी सब के सब बाढ़ की वजह से झील की गहराइयों की भेंट चढ़ गए हैं.

फारुख़ अहमद एक टैक्सी ड्राइवर हैं. उनका घर तो डूबा ही साथ ही उनके जैसे दसियों लोगों की टैक्सियां अब भी पानी में हैं, बस उन सबकी छत दिखती है.

वह कहते हैं, "जान बच गई, हम उसके लिए अल्लाह के शुक्रगुजार हैं. वर्ना मोहताजी के हालात हैं."

जब मैं शिकारे में बैठकर अंदर की तरफ जा रहा होता हूं तो रास्ते में पड़ने वाले शहंशाह पैलेस होटल के पहले तले पर खड़े लोग हमें देख रहे हैं.

पांच सितारा होटल होलीडे-इन के सामने के गेट का बस नुकीला तार ही दिखता है हमें.

डूबीं हाउस बोट

साठ से ऊपर के अब्दुर्रहीम करनाही एक हाउसबोट के मालिक हैं और अपने शिकारे पर ही कहीं जा रहे थे कि डल में हमारी मुलाकात हो जाती है.

करनाही कहते हैं कि उन्होंने जिंदगी में इस तरह की तबाही नहीं देखी थी.

उन्होंने बताया कि झील में कुल मिलाकर तकरीबन 1500 हाउस बोट हैं जिनमें से कई डूब गए हैं.

हाउस बोट ‘एचबी तैमूर’ उनमें से एक है. उसके ऊपर फाइनांस करने वाले बैंक का नाम हालांकि अब भी दिख रहा है.

शायद उसके मालिक को याद दिलाने के लिए कि उसे बैंक का कर्ज चुकाना है.

इन सबको देखने के बाद निशात बाग या चश्माशाही की ओर जाने का भला क्या दिल करता!

इस खूबसूरत बाग़ के बड़े सारे किस्से सुन रखे थे मगर उसकी बर्बादी किस तरह देख पाए कोई.

हर तरफ़ फैला पानी बार-बार याद दिला रहा था कि मुझे तैरना नहीं आता.

हालांकि मैंने लाइफ जैकेट पहन रखी थी, लेकिन फिर भी वापस आ गया.

(बीबीसी हिंदी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

Next Article

Exit mobile version