किशोरों को क्यों आता है इतना गुस्सा!

किशोर मन रोज नये सवालों से घिरा होता है. हर पल कुछ नया जानना चाहता है, पढ़ाई के बारे में या अन्य किसी विषय पर, लेकिन घर में किसी को फुरसत ही नहीं बताने की. पापा अपने काम में मशगूल हैं, मां अपने. भैया या दीदी अगर हैं, तो उनकी अपनी अलग ही दुनिया है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 21, 2014 1:10 AM

किशोर मन रोज नये सवालों से घिरा होता है. हर पल कुछ नया जानना चाहता है, पढ़ाई के बारे में या अन्य किसी विषय पर, लेकिन घर में किसी को फुरसत ही नहीं बताने की. पापा अपने काम में मशगूल हैं, मां अपने. भैया या दीदी अगर हैं, तो उनकी अपनी अलग ही दुनिया है. ऐसे में बस रह जाता है इंटरनेट. गूगल में एक क्लिक किया और पूरे जहान की जानकारी सामने होती है. ऐसा ही कुछ बोर होने पर होता है. आप बोर हो रहे होते हैं और अपनी बोरियत को खत्म करने के लिए घर में लोगों से बातचीत करने, अपने हमउम्र लोगों के साथ खेलने की बजाय मोबाइल गेम ज्यादा सरल और सहज ढंग से आपके सामने उपलब्ध होता है. यानी इंटरनेट आपको ज्ञान दे रहा है और मनोरंजन भी. जाहिर है यह आपके इंटेलिजेंस को भी बढ़ाता है. इस बात में कोई दोराय नहीं कि इसने आपकी जिंदगी को आसान किया है.

लेकिन, आपने कभी सोचा है कि आप इससे जो पा रहे हैं उसके बदले क्या खो रहे हैं? आपका अवचेतन किस तरह का खामियाजा उठा रहा है? आपके स्वभाव में किस तरह की तब्दीलियां आ रही हैं? आप अपने मन की बात औरों से साझा करने या समझा पाने में अकसर असफल क्यों रहते हैं? बात-बात पर आपको इतना अधिक गुस्सा क्यों आता है? आप इतने आक्रामक क्यों हैं? नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो सांइस (निमहांस) के नये अध्ययन की मानें तो इंटरनेट और गेम्स आपको गुस्सैल और आक्रामक बना रहे हैं. इसलिए ऐसे सभी किशोर जो अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त इंटरनेट सर्फिग या कंप्यूटर और मोबाइल में गेम खेलते हुए बिताते हैं, उन्हें ठहर कर अपने स्वभाव तथा बर्ताव पर गौर करने की जरूरत है. कहीं उपरोक्त बातें आपके स्वभाव का हिस्सा तो नहीं बन रही हैं! नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो सांइस के अध्ययन में सामने आया है कि भारत में 80 फीसदी किशोर लगातार अत्याधिक गुस्से, खीज और आक्रामकता की समस्या से जूझ रहे हैं.

कौन सी चीजें बना रही हैं किशोरों को गुस्सैल और आक्रामक?

एक 14 वर्षीय किशोरी अपनी भावनाएं ठीक से व्यक्त नहीं कर पाती थी, तो गुस्से में घर की चीजें फेंकने लगती थी. एक बार वह अपने माता-पिता को कुछ बताना चाहती थी, लेकिन अपनी बात ठीक से उन्हें समझा नहीं पा रही थी. इस वजह से उसे इतना गुस्सा आ गया कि उसने अपना सिर दीवार पर मार लिया. निमहांस में कांउसलिंग के दौरान पता चला कि वह भावनात्मक रूप से बेहद कमजोर हो गयी है. उसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करना नहीं आता और ऐसे में वह भावनात्मक रूप से टूट जाती है. यह पीड़ा गुस्से में तब्दील हो जाती है और वह खुद को ही नुकसान पहुंचाने लगती है. परिवार ने उसे मोबाइल फोन और इंटरनेट तो दिया, लेकिन लंबे समय तक इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि आखिर उसे इतना गुस्सा क्यों आता है!

दरअसल, भारत में अधिकतर अभिभावक बच्चों से बातचीत को तवज्जो नहीं देते. अगर उनका बच्च बहुत ज्यादा गुस्सा करता है या असामान्य व्यवहार कर रहा होता है, तो वे उसका कारण तलाशने की बजाय बच्चे को ही थप्पड़ लगा देते हैं. ऐसे में भी बच्च अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाता. यह स्थिति एक समय के बाद या तो गुस्से में या फिर नफरत में तब्दील हो जाती हैं. इसी तरह एक 13 वर्षीय किशोर को अपने माता-पिता पर किसी बात को लेकर गुस्सा आया तो उसने माता-पिता से असम्मानजनक शब्दों में बहस करने के बाद खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया और वीडियो गेम खेलने लगा. निमहांस में काउंसलिंग के बाद पता चला कि वीडियो गेम खेलने के कारण उसकी आक्रामकता में इजाफा हुआ है. वहीं संवेदना के स्तर पर भी उसका विकास ठीक से नहीं हो पाया है.

इन सारे मामलों को देखें तो जाहिर होता है कि पहले परिवार में लोग एक-दूसरे को पर्याप्त समय देते थे. आपस में बातचीत करते थे. इस वजह से सभी में एक भावनात्मक जुड़ाव होता था. लेकिन, अब समय का अभाव और तकनीक के हावी होने के चलते न तो उस तरह से बातचीत होती है, ना ही आपस में वैसा जुड़ाव है. किशोरों का ज्यादा से ज्यादा वक्त अब इंटरनेट में कुछ सर्च करते हुए या गेम खेलते हुए बीत रहा है. लेकिन इन चीजों से आप बोल-बतिया नहीं सकते. इनसे अपनी भावनाएं नहीं साझा कर सकते. ये आपकी पीठ नहीं थपथपा सकते, मुश्किल घड़ी में आपमें भरोसा नहीं जाता सकते.

इसलिए आप संवेदनहीन होते जा रहे हैं. आप अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाते. आप दुख-सुख समझ नहीं पाते. आप अपनी एक दुनिया रच लेते हैं और उसी में सिमटे रहते हैं. बाहर की दुनिया यानी आस-पड़ोस से भी आपका किसी तरह का संवाद कायम नहीं हो पाता. इंटरनेट आपको इंटेलिजेंट तो बना रहा है, लेकिन आपको अकेला और भावनात्मक रूप से कमजोर भी कर रहा है. ऐसे में जब आप खुद को अभिव्यक्त करने की अनुकूल परिस्थिति नहीं पाते, तो आपके अंदर क्रोध पनपता है. विचारों को जाहिर नहीं कर पाने पर खीझ होती है. इस तरह गुस्से में कई बार आप चीजें पटकते हैं, चीखते-चिल्लाते हैं या सबसे बातचीत बंद कर देते हैं. अगर आपके साथ ऐसा हो रहा है, तो इसे पहचानें और इससे उबरने के रास्ते अपनाएं.

गुस्सा आये तो..

-अगर आपको बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा है तो अपने परिवार के सदस्यों या दोस्तों से अपने मन की बात करें.

-गुस्सा जताने के लिए चीखने-चिल्लाने, चीजें फेंकने, बड़ों से बेरुखी से बात करने और खुद को नुकसान पहुंचाने से बचें.

-आप जब खुद में गुस्से का अहसास महसूस करने लगें तो 100 तक गिनती गिनें, फिर 10 बार गहरी सांस लें.

-गुस्सा आने पर कहीं आसपास घूमने चले जाएं और सरपट चाल से चलें.

-अगर आपको योग करना आता है तो उसे शुरू कर दें.

-मुंह पर ठंडे पानी के छीटें मारें. पानी पिएं और अपने बिखरे बालों को संवारने के लिए आईने के सामने आ जाएं

-मन को शांत करनेवाला संगीत सुनें. इससे आपका ध्यान भी बंटेगा.

-पोषण से भरपूर भोजन करें. पोषक तत्वों की कमी किशोरों में गुस्से और खीज को बढ़ाती है.

-अपने आप को बहुत सारी चीजों में ना उलझाएं. अपने दिमाग को थोड़ा आराम दें और शांत रखने का प्रयास करें.

-इस बात को हमेशा अपने जेहन में रखें कि दुनिया का कोई भी व्यक्ति पूरी तरह परफेक्ट नहीं हो सकता है. अपनी जिंदगी में कमियों के लिए भी थोड़ी सी जगह रखें.

-अगर आपका अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रहता है तो चिकित्सक से अपने हार्मोनल बैलेंस की जांच कराएं. विटामिन बी3, बी2, थायरॉइड, एनिमिया की भी जांच कराएं.

-जिंदगी को तनावमुक्त कर जीने की कोशिश करें.

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