।।प्रवीण प्रभाकर।।
21 सितंबर का दिन झारखंड आंदोलन के इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तिथियों में शामिल है, इसी दिन बिहार विधानसभा में झारखंड विधेयक के खिलाफ मत पड़े थे और इसी दिन के संपूर्ण झारखंड बंद ने केंद्र सरकार को झारखंड की जन भावना से अवगत करा दिया था. झारखंड आंदोलन के इतिहास में यह अंतिम बंद था, जो मील का पत्थर साबित हुआ. न्यायमूर्ति एलपीएन शाहदेव ने 1998-99 के दौर में अलग राज्य के आंदोलन का नेतृत्व किया था. न्यायमूर्ति शाहदेव हमारे बीच नहीं रहे, मगर झारखंड आंदोलन में इनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा.
इस दौर में अलग राज्य के आंदोलन में जान फूंकना अत्यंत कठिन कार्य था, परंतु वही झारखंड आंदोलन का ‘करो या मरो’ वाला भी दौर था. केंद्र सरकार झारखंड अलग राज्य का विधेयक लाना चाहती थी, वहीं बिहार की तत्कालीन लालू सरकार झारखंड आंदोलन को कुचल कर बंटवारा रूकवाना चाहती थी.
न्यायमूर्ति शाहदेव ने इस विषम परिस्थिति में आंदोलन की कमान संभाली थी, आजसू, कांग्रेस, जेपीपी और झारखंड पार्टी सहित अन्य सभी दलों ने उस समय न्यायमूर्ति शाहदेव के नेतृत्व में साझा लड़ाई लड़ी थी और आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाया था. 21 सितंबर 1998 को बिहार मंत्रिमंडल में झारखंड विधेयक पर वोटिंग होनी थी. लालू प्रसाद ने विधेयक का विरोध किया था. इसके विरोध में आजसू ने 21 सितंबर को झारखंड बंद का आह्वान किया, जिसके समर्थन में न्यायमूर्ति शाहदेव के नेतृत्व में 16 सितंबर को ‘ सर्वदलीय अलग राज्य निर्माण समिति ’ का गठन किया गया.
इस समिति में भाजपा, कांग्रेस, आजसू सहित 16 राजनीतिक दल शामिल थे. इसी के बैनर तले बंद का आह्वान किया गया. अभूतपूर्व झारखंड बंद हुआ. जुलूस का नेतृत्व न्यायमूर्ति शाहदेव ने किया. राज्य सरकार के निर्देश पर न्यायमूर्ति शाहदेव को शहीद चौक के पास एसपी ने गिरफ्तार कर लिया. उन्हें कोतवाली थाने ले जाया गया, जहां उन्हें आठ घंटे तक पुलिस हिरासत में रखा गया.
बंद को सफल बनाने के क्रम में मेरे साथ विधायक कमल किशोर भगत, एनई होरो, भुवनेश्वर महतो, बनमाली मंडल, आलोक दुबे आदि को गिरफ्तार कर लिया गया. देर शाम बिहार विधानसभा में अलग राज्य का विधेयक भारी बहुमत से गिर गया. हम सारे लोग इसके लिए तैयार थे. ऐसे भी कानूनी तौर पर इस विधेयक पर संबंधित राज्य के मंतव्य का कोई असर न होना था. फिर भी 21 सितंबर के ऐतिहासिक बंद ने एक तरह से जनमत संग्रह का कार्य किया.