छह साल का बच्‍चा बोल नहीं पा रहा है

मेरे भाई की उम्र 30 साल है. आजकल बात-बात पर गुस्सा व चिड़चिड़ापन उसका स्वभाव बन गया है. बाजार जाता है, तो आधा सामान लेकर आता है, कुछ सामान भूल जाता है. हमलोग जानना चाहते हैं कि उसे क्या बीमारी है? राम दास, खूंटी, रांची यह अर्ली डिप्रेशन के लक्षण हैं. काम के प्रेशर या […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 23, 2014 7:44 AM

मेरे भाई की उम्र 30 साल है. आजकल बात-बात पर गुस्सा व चिड़चिड़ापन उसका स्वभाव बन गया है. बाजार जाता है, तो आधा सामान लेकर आता है, कुछ सामान भूल जाता है. हमलोग जानना चाहते हैं कि उसे क्या बीमारी है?

राम दास, खूंटी, रांची

यह अर्ली डिप्रेशन के लक्षण हैं. काम के प्रेशर या अन्य किसी तनाव के कारण यह समस्या शुरू हो सकती है. इसमें उदासीनता के साथ मरीज में एकाग्रता की कमी हो जाती है. इसके उपचार में मरीज की काउंसेलिंग हो सकती है. सीवियर हो तो दवाई भी दी जा सकती है.

मेरा एक भतीजा है, जिसकी उम्र छह साल है. वह बोल नहीं पा रहा है और पढ़ भी नहीं पा रहा है. छोटी-छोटी बात पर गुस्सा करता है. क्या बच्चे को कोई समस्या है?

भारती राय, दुमका

बच्चे को स्पीच डिले की समस्या है. किसी साइकोलॉजिस्ट या स्पेशल एजुकेटर को दिखाएं. पैरेंट्स की काउंसेलिंग की जा सकती है. बच्चे का आइक्यू टेस्ट लेकर भी उसकी समस्या पता लगायी जा सकती है.

कुछ समय पहले मेरे पति का एक्सीडेंट हुआ था. इस घटना के बाद वह उस रास्ते से जाने व गाड़ी चलाने में काफी घबराते हैं. थोड़ी भी आवाज पर वे सहम जाते हैं. रिलैक्स नहीं हो पाते हैं. उपचार बताएं.

मधु मिश्र, भागलपुर

इस समस्या को पोस्ट ट्रामापिक स्ट्रेस डिसऑर्डर कहते हैं. इसका उपचार संभव है. किसी मनोचिकित्सक से सलाह लें.

मेरा छोटा भाई 24 साल का है. उसे सिगरेट व अल्कोहल की आदत पड़ गयी है. पता नहीं क्या तनाव है. कैसे आदत छूटेगी?

रमेश हलधर, जमशेदपुर

कई युवा आजकल स्ट्रेस से बाहर निकलने के लिए सिगरेट व शराब का सेवन कर रहे हैं. उसे भावनात्मक सहारा दें. आमने-सामने बैठ कर उसकी समस्या पर बात करें. पास के नशामुक्ति केंद्र में भी जा सकते हैं. यह आदत फैशन सिंबल भी बन रही है.

प्राइवेट नौकरी में हूं. स्थिरता की कमी है. घबराहट रहती है. मुझसे कोई खुश नहीं. लगता है कि जिंदगी खींच रहा हूं, क्या करूं?

हिमांशु सिन्हा, पटना सिटी

आप नकारात्मक विचारों से घिरे हैं. अकेलापन दूर करना ही इलाज है. परिवार के साथ कहीं बाहर घूमने जाएं. छोटी-छोटी बातों में खुशियां तलाशें और खुश रहें.

डॉ संजय गर्ग

मनोचिकित्सक फोर्टिस हॉस्पिटल, कोलकाता

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