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नयी संभावनाओं की राजनीति:नया गणित और नया समीकरण

अनुराग चतुर्वेदी चुनावों के पूर्व आये राजनीतिक भूकंप ने महाराष्ट्र का चुनावी गणित बदल दिया है. महाराष्ट्र में पिछले दो दशकों से नये राजनीतिक चेहरे, नया राजनीतिक सोच व नया राजनीतिक नेतृत्व समाप्त-सा हो गया था, दलों का गंठबंधन, निहित स्वार्थ और धन के गंठबंधन में बदल गया था, ऐसे में पांच कोणीय चुनावी संघर्ष […]

अनुराग चतुर्वेदी

चुनावों के पूर्व आये राजनीतिक भूकंप ने महाराष्ट्र का चुनावी गणित बदल दिया है. महाराष्ट्र में पिछले दो दशकों से नये राजनीतिक चेहरे, नया राजनीतिक सोच व नया राजनीतिक नेतृत्व समाप्त-सा हो गया था, दलों का गंठबंधन, निहित स्वार्थ और धन के गंठबंधन में बदल गया था, ऐसे में पांच कोणीय चुनावी संघर्ष राजनीति में कई नये चेहरों को लायेगा और रुका हुआ जल, कुछ प्रवाहमान होगा.
इस नये बदलाव का नया गणित भी बनता दिखायी दे रहा है. मुंबई की 36, ठाणे की 24 और कोंकण की 15 सीटों पर भाजपा अब तक शिव सेना के कारण जीतती रही है. कोंकण में शिव सेना और राष्ट्रवादी में चुनावी मुकाबला होता रहा है. भाजपा को विश्वास है कि शहरी इलाके में मोदी लहर के चलते, विकास को मुद्दा बना कर और शेतकरी संगठन, रिपब्लिकन पार्टी, शिव संग्राम और राष्ट्रीय समाज पक्ष को युति में शामिल रख, उसे महायुति का नाम दे सकते हैं. पर, ‘लड़ाकू’ शिवसैनिक न केवल अपने गढ़ को बचाने के लिए निर्णायक लड़ाई लड़ेंगे, बल्कि भाजपा को बहुत सीमित कर देंगे. यदि प्रधानमंत्री मोदी महाराष्ट्र में धुंआधार प्रचार करते हैं, तब भी बोरिबली और मूलुंड से भाजपा आगे बढ़ती नजर नहीं आती. पश्चिम महाराष्ट्र राष्ट्रवादी और कांग्रेस का पुराना गढ़ रहा है.
इस क्षेत्र में राष्ट्रवादी आगे रह सकती है. कांग्रेस दूसरे नंबर के लिए मैदान में है. भाजपा और शिवसेना दोनों को इस क्षेत्र में झटका लग सकता हैं. मराठवाड़ा में 54 सीटें हैं, जहां शिव सेना, राष्ट्रवादी व कांग्रेस अलग-अलग इलाकों और शहरों में सक्रिय है. बीड में सांसद भाजपा का है, लेकिन विधायक राष्ट्रवादी का. नांदेड़, औरंगाबाद में कांग्रेस के विधायक हैं और ‘लोकमत’ जैसा ताकतवर अखबार है. उसमानाबाद में राष्ट्रवादी है. भाजपा के लिए इस क्षेत्र में चुनौती है. विदर्भ की 62 सीटों में दक्षिण विदर्भ जिसे वराड़ कहा जाता है, वहां शिव सेना का नेटवर्क है, जबकि उत्तर विदर्भ में भाजपा सक्रिय है और कांग्रेस उसके मुकाबले में है. इस टूट के बाद वोटों का विभाजन होनेवाला है. 25 सीटों वाला उत्तर महाराष्ट्र भाजपा का गढ़ है, यहां के कुछ इलाके जैसे नंदूरवार आदिवासी बहुल है, वहां कांग्रेस का प्रभाव अभी भी है.
वरना नासिक जैसे शहरों में भाजपा लोकप्रिय है. इस इलाके के प्याज और गन्ना किसान नाराज हैं. यहां पर भाजपा, कांग्रेस, राष्ट्रवादी, मनसे और शिव सेना क्रमानुसार जीत सकते हैं. स्टार प्रचारकों को लें, तो राष्ट्रवादी और शिव सेना ही अपने प्रांत के नेताओं पर आश्रित हैं, जबकि भाजपा को मोदी व कांग्रेस को सोनिया गांधी पर निर्भर रहना होगा. महाराष्ट्र में बंटे मतदाता यह भी देखेंगे कि चुनावों के बाद 80-85 सीटों के लक्ष्य तक पहुंचनेवाली पार्टी मुख्यमंत्री बनाने और सरकार बनाने की होड़ में होगी. 15 से 17 प्रतिशत मत पानेवाला उम्मीदवार भी विधायक बनेगा. इस गणित के अनुसार, शिव सेना और राष्ट्रवादी को गंठबंधनों के टूटने का लाभ मिलना दिखायी दे रहा है. भाजपा और कांग्रेस थोड़े पिछड़े दिख रहे हैं. भाजपा और शिव सेना की महायुति टूटने के कारण नये समीयकण बनेंगे.
भाजपा मोदी लहर के सहारे रहेगी, तो शिव सेना बाल ठाकरे का नाम ले ‘मराठी अस्मिता’ का कार्ड खेलेगी. भाजपा-शिवसेना में चुनावी मुद्दों में ‘हिंदुत्व’ के लिए भी होड़ मचेगी. दोनों दल हिंदुत्व और शिवाजी को अपना आदर्श मानेंगे. शिव सेना अब उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री का भी उम्मीदवार घोषित कर सकती है, जबकि भाजपा के पास कोई ऐसी प्रभावी चेहरा नहीं है. भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है और वह क्षेत्रीय दलों को दरकिनार कर ताकतवर केंद्र बनाना चाहती है. शिव सेना क्षेत्रीय दल है और महाराष्ट्र से बाहर उसका कोई प्रभाव नहीं है. शिव सेना बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद पहली बार विस चुनाव लड़ रही है. महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा युति करनवाले बाल ठाकरे, प्रमोद महाजन, गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु हो चुकी है. शिवसेना में उद्धव, आदित्य का नेतृत्व है. भाजपा में नरेंद्र मोदी-अमित शाह की टीम राजनीतिक बने हैं. शिव सेना मराठी भाषियों बनाम गुजराती भाषियों के द्वेष को चुनावी मुद्दा बनायेगी.
शिव सेना को यह भी लग रहा है कि उसके पक्ष में महाराष्ट्र में सहानुभूति की लहर चलेगी. शिव सेना-भाजपा की युति टूटने का फायदा राष्ट्रवादी कांग्रेस को हो सकता है, क्योंकि वह भी राष्ट्रीय बनाम क्षेत्रीय दल के मुद्दे को उठा सकती है. मनसे नेता राज ठाकरे पिछले लोकसभा चुनावों में इतनी बुरी तरह हार गये थे कि उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता ही समाप्त होने लगी थी. उनकी पार्टी के विधायक भाजपा में जाने लगे थे और राज उनका विरोध भी नहीं कर रहे थे. ऐसे में भाजपा और राज ठाकरे की नजदीकियां भी बढ़ सकती हैं. युति टूटने से महाराष्ट्र में धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता की बहस भी कमजोर पड़ जायेगी.
कांग्रेस, भाजपा-शिव सेना दोनों के निशाने पर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नहीं घिर पायेगी. क्योंकि, ज्यादातर भ्रष्टाचार राष्ट्रवादी के खाते में गया. कांग्रेस को पृथ्वीराज चव्हाण की ईमानदारी का थोड़ा फायदा हो सकता है. वैसे पांच कोणीय चुनाव अब लगभग तय है. यह चुनाव शिव सेना के नये नेतृत्व की परीक्षा भी है. उद्धव ठाकरे चमत्कारिक नेता नहीं हैं, न भाषणवीर हैं, परंतु वे संगठक अच्छे हैं और पार्टी की मशीनरी पर उनका कब्जा है. उन्होंने जिस तरह 151 सीटों से कम सीटों पर समझौता नहीं किया, उससे उनके समर्थकों में उनकी दृढ़ता का सम्मान बढ़ा है.
राज ठाकरे के साथ निर्णायक परिवार युद्ध में विजय पाने के बाद शिव सेना के इस नेता की यह परीक्षा भी होगी कि वह पुराने मुद्दों को हवा देते हैं या विकास के नये सपने दिखाते हैं, चुनावों के पहले ‘युति’ टूटने के बाद शनिवार को महालक्ष्मी रेसकोर्स पर होनेवाली शिव सेना की सभा कितनी जानतार होती है, यह आगामी प्रचार का संकेत होगा.

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