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नवरात्र में दुर्गाष्टमी और महानवमी पूजन का महत्व

भविष्य पुराण के उत्तर-पूर्व में महानवमी व दुर्गाष्टमी पूजन के विषय में भगवान श्रीकृष्ण से धर्मराज युधिष्ठिर का संवाद मिलता है, जिसमें नवमी व दुर्गाष्टमी पूजन का स्पष्ट उल्लेख है. यह पूजन प्रत्येक युगों- सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग तथा कल्पों व मन्वंतरों आदि में भी प्रचलित था. मां भगवती संपूर्ण जगत में परमशक्ति अनंता, सर्वव्यापिनी, […]

भविष्य पुराण के उत्तर-पूर्व में महानवमी व दुर्गाष्टमी पूजन के विषय में भगवान श्रीकृष्ण से धर्मराज युधिष्ठिर का संवाद मिलता है, जिसमें नवमी व दुर्गाष्टमी पूजन का स्पष्ट उल्लेख है. यह पूजन प्रत्येक युगों- सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग तथा कल्पों व मन्वंतरों आदि में भी प्रचलित था.

मां भगवती संपूर्ण जगत में परमशक्ति अनंता, सर्वव्यापिनी, भावगम्या, आद्या आदि नाम से विख्यात हैं, जिन्हें माया, कात्यायिनी, काली, दुर्गा, चामुण्डा, सर्वमंगला, शंकरप्रिया, जगत-जननी, जगदम्बा, भवानी आदि अनेक रूपों में देव, दानव, राक्षस, गंधर्व, नाग, यक्ष, किन्नर, मनुष्य आदि अष्टमी व नवमी को पूजते हैं. मां भगवती का पूजन अष्टमी व नवमी को करने से कष्ट, दुख मिट जाते हैं और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. यह तिथि परम कल्याणकारी, पवित्र, सुख को देनेवाली और धर्म की वृद्धि करनेवाली होती है.

भगवती महागौरी की आराधना सभी मनोवांछित फल पूर्ण करनेवाली और भक्तों को अभय, रूप व सौंदर्य प्रदान करनेवाली है अर्थात् शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के विष व्याधियों का अंत कर जीवन को सुख-समृद्धि व आरोग्यता से पूर्ण करती है. मां की शास्त्रीय पद्धति से पूजा करनेवाले सभी रोगों से मुक्त हो जाते हैं और धन वैभव संपन्नता को प्राप्त करते हैं.

दुर्गा सप्तसती के मंत्रोचार से विधि पूर्वक पूजा करते हुए भगवती से सुख, समृद्धि, यश, कीर्ति, विजय, आरोग्यता की कामना करनी चाहिए. मां दुर्गा की आराधना से व्यक्ति जीवन के अनेक शुभ लक्षणों धन, ऐश्वर्य, पत्नी, पुत्र, पौत्र व स्वास्थ्य से युक्त जीवन के अंतिम लक्ष्य रूपी मोक्ष को भी सहज ही प्राप्त कर लेता है. बीमारी, महामारी, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक उपद्रव व शत्रु से घिरे हुए किसी राज्य, देश व संपूर्ण विश्व के लिए मां भगवती की आराधना परम कल्याणकारी है.

इस प्रकार अष्टमी को विविध प्रकार से भगवती जगदम्बा का पूजन कर रात्रि को जागरण करते हुए भजन, कीर्तन, नृत्य आदि उत्सव मनाना चाहिए और नवमी को विविध प्रकार से पूजा-हवन कर नौ कन्याओं को भोजन खिलाना चाहिए. हलवा आदि प्रसाद वितरित करना चाहिए और पूजन-हवन की पूर्णाहुति कर दशमी तिथि को व्रती को व्रत खोलना (पारण करना) चाहिए.

संदिग्ध व्रत निर्णय

3 अक्तूबर शुक्रवार को प्रात: 6:34 बजे तक ही नवमी तिथि है. अत: नवरात्र समाप्ति का हवन पूजन इसके पूर्व होगा. व्रत का पारण भी प्रात: 6.35 के बाद होगा. विजयदशमी का शुभ कार्य दशमी तिथि एवं श्रवण नक्षत्र के योग में 3 अक्तूबर शुक्रवार को मनाया जायेगा. साथ ही दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन धूम-धाम से संपन्न होगा. दशमी में नवरात्र व्रत की पारण, मूर्ति विसर्जन, विजयादशमी, शमिपूजन, अपराजिता पूजा, सिमोलंन्घन, जयंती-ग्रहण, नीलकंठ दर्शन करने से अत्मोन्नति, सुख-समृधि में वृद्धि एवं संतान-संपति आदि की वृद्धि होती है.

पं. श्रीपति त्रिपाठी ज्योतिषाचार्य (आचार्य द्वय), पीएचडी रिसर्च फेलो,

संपर्क : 09430669031

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