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संपूर्ण गांधी वाड्मय की सुगम ऑनलाइन प्रस्तुति : गांधी हेरिटेज पोर्टल

गांधीजी के कार्यो और दर्शन को जानने-समझने के लिए अब किसी लाइब्रेरी या संग्रहालय में जाकर वहां उनसे जुड़े दस्तावेज, लेखों और किताबों को तलाशना जरूरी नहीं रह गया है. पांच लाख से ज्यादा पेजों वाले ‘गांधी हेरिटेज पोर्टल’ पर एक क्लिक से आप संपूर्ण गांधी वा्ग्मय यानी गांधीजी के कार्यो, लेखों, पत्रों, भाषणों आदि […]

गांधीजी के कार्यो और दर्शन को जानने-समझने के लिए अब किसी लाइब्रेरी या संग्रहालय में जाकर वहां उनसे जुड़े दस्तावेज, लेखों और किताबों को तलाशना जरूरी नहीं रह गया है. पांच लाख से ज्यादा पेजों वाले ‘गांधी हेरिटेज पोर्टल’ पर एक क्लिक से आप संपूर्ण गांधी वा्ग्मय यानी गांधीजी के कार्यो, लेखों, पत्रों, भाषणों आदि तक कभी भी और कहीं से भी पहुंच सकते हैं. इस अत्यंत महत्वपूर्ण पोर्टल के बारे में पूरी जानकारी दे रहा है नॉलेज.
नयी दिल्ली : गांधीजी के पौत्र गोपाल कृष्ण गांधी की अध्यक्षता में भारत सरकार की ओर से गठित गांधी विरासत स्थल समिति ने पूर्व में यह सिफारिश की थी कि गांधीजी के मूल लेखों के संरक्षण, अनुरक्षण, प्रचार-प्रसार और उनकी मूल कृतियों के विशाल भंडार को देश-दुनिया के लोगों को उपलब्ध कराने के मकसद से एक ‘गांधी हेरिटेज पोर्टल’ की स्थापना की जाये.
गांधीजी के जीवन और दर्शन के विस्तृत अध्ययन के लिए इसे जरूरी बताया गया. इस सिफारिश को मूर्तरूप देने के लिए भारत सरकार ने संस्कृति मंत्रालय के माध्यम से इस पोर्टल की संकल्पना, डिजाइन, विकास और रख-रखाव की जिम्मेवारी ‘साबरमती आश्रम संरक्षण और स्मारक न्यास’ को सौंप दी. न्यास ने इस दायित्व को बखूबी पूरा किया और पिछले वर्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने ‘गांधी हेरिटेज पोर्टल’ को राष्ट्र को समर्पित किया था. उसके बाद से इसमें समय-समय पर अनेक सुधार भी किये गये हैं और आगे भी यह प्रक्रिया जारी रहेगी.
पोर्टल के प्रमुख अनुभाग
इस पोर्टल को ‘द कलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ महात्मा गांधी’ (अंगरेजी में/ 100 खंड), संपूर्ण गांधी वा्ग्मय (हिंदी में/ 97 खंड) और ‘गांधीजी नो अक्षरदेह (गुजराती भाषा में/82 खंड) के आधार पर विकसित किया गया है. पोर्टल की मूल रचनाओं में गांधीजी की प्रमुख मूल रचनाओं के पहले संस्करण हैं. ये हैं- हिंद स्वराज, दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह, आत्मकथा या सत्य के साथ मेरे प्रयोगों की गाथा, यरवदा मंदिर से, आश्रम ऑब्जरवेंसेज इन एक्शन, रचनात्मक कार्यक्रम : उनका उद्देश्य और स्थान, स्वास्थ्य की कुंजी और अनासक्ति योग के रूप में गीता का अनुवाद. मूल रचनाएं वे हैं, जिनके आधार पर ‘द कलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ महात्मा गांधी’ (सीडब्ल्यूएमजी) की रचना की गयी. जैसे गुजराती भाषा में महादेवभाई की डायरी.
कलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ गांधी
भारत सरकार ने 1956 में एक महात्वाकांक्षी परियोजना की शुरुआत की. यह परियोजना थी- गांधीजी के उपलब्ध सभी लेखों का प्रामाणिक रूप से संकलन करना. ‘द कलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ महात्मा गांधी’ इसी गंभीर और विवेकपूर्ण प्रयास का परिणाम है, जो 1994 में पूरा हुआ. यह निर्णय लिया गया कि गांधीजी के लेखों को तीन भाषाओं में उपलब्ध कराया जाये- गुजराती, अंगरेजी और हिंदी. परिणामस्वरूप ‘गांधी नो अक्षरदेहा’ (गुजराती) और संपूर्ण गांधी वांग्मय (हिंदी) उसी संपादन शैली के आधार पर तैयार किये गये, जिस पर द कलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ महात्मा गांधी (सीडब्ल्यूएमजी) का निर्माण हुआ था. सीडब्ल्यूएमजी के इस समय 100 खंड, ‘गांधीजी नो अक्षरदेहा’ के 82 खंड और संपूर्ण गांधी वांग्मय के 97 खंड हैं.
इन खंडों में इन लेखों के स्नेत की जानकारी के साथ-साथ उस भाषा के बारे में भी बताया गया है, जिसमें ये मूलरूप से लिखे गये थे. द कलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ महात्मा गांधी के एक से लेकर 90 खंड कालानुक्रम में हैं, जबकि 91-97 खंड अतिरिक्त खंड हैं, जिनमें इस श्रृंखला के प्रकाशन के बाद मुहैया करायी गयी नयी जानकारियों को शामिल किया गया. खंड 98 में विषयों की सूची और खंड 99 में व्यक्तियों की सूची है. खंड 100 में पूर्व के खंडों की प्रस्तावनाओं का संकलन है.
पोर्टल में इन खंडों को पूरा का पूरा शामिल किया गया है. यह दो प्रारूपों में है- अभिलेख प्रारूप और विस्तृत प्रारूप. ये खंड एक डाटाबेस के जरिये आपस में जुड़े हुए हैं. कोई भी व्यक्ति इसे तीनों भाषाओं में देख सकता है और अपनी जानकारी को खोज सकता है. इस्तेमाल करनेवाला व्यक्ति उनके पाठों के विवरण का अध्ययन कर सकता है. इनमें खोज का तरीका वही है, जो द कलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ महात्मा गांधी के खंड 98 और खंड 99 में दिया गया है. पोर्टल का उद्देश्य द कलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ महात्मा गांधी की खोजने योग्य पुस्तक उपलब्ध कराना है.
लाइफ एंड टाइम्स ऑफ महात्मा गांधी
इस अनुभाग में गांधीजी के जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण चीजों को बिंदुवार दर्शाया गया है. इसमें उनका जीवन, दांडी मार्च, विभिन्न घटनाओं के विरोध में किये गये व्रत-अनशन, जेल में गुजारे गये समय, यात्रा ओं, सत्याग्रहों, गांधीजी पर क्या-क्या मुश्किलें आयीं यानी उन पर किये गये हमलों के बारे में जानकारी मुहैया करायी गयी है. प्रत्येक घटना के बारे में इसमें विस्तारपूर्वक बताया गया है.
पत्रिका (जर्नल्स) खंड
इस खंड में इंडियन ओपीनियन, नवजीवन, यंग इंडिया, हरिजन, हरिजन बंधु और हरिजन सेवक के इलेक्ट्रॉनिक निरूपण हैं. इस समय पोर्टल में गांधी मार्ग (हिंदी और अंगरेजी), भूमि पुत्र, कस्तूरबा दर्शन, साबरमती और प्यारा बापू (गुजराती भाषा में), सत्याग्रह आश्रम मधपुडो की एक हस्तलिखित पत्रिका भी है, जिसमें अन्य बातों के अलावा प्रभुदास गांधी की गुजराती में ‘जीवन नू परोध’ और काका साहेब कालेलकर स्मरण यात्रा का वर्णन है. इसके अलावा, इसमें सेमिनार (अंगरेजी) और अंतिम जन भी शामिल हैं.
विरासत स्थल और फैमिली ट्री
इस अनुभाग में उन स्थलों का विस्तृत वर्णन दिया गया है, जहां महात्मा गांधी ठहरे थे. इसमें शामिल जानकारी में महात्मा गांधी की यात्रा ओं से संबंधित मूल स्नेतों का भी उल्लेख किया गया है. साथ ही इसमें राज्यवार विवरण दिया गया है. इसके अलावा, ‘फैमिली ट्री’ में गांधीजी की पूरी वंशावली दर्शायी गयी है.
गैलरी
गैलरी में गांधीजी के जीवन और समय के बारे में ऑडियो-विजुअल रूप में अभिलेख दर्शाये गये हैं. इन्हें फोटो चित्रों, फिल्मों, पोस्टरों आदि काटरूनों के रूप में दर्शाया गया है. एक और उप-अनुभाग में डाक टिकटें शामिल की गयी हैं और इनमें चित्रकलाओं तथा वास्तुशिल्प कृतियों को भी शामिल करके इसका विस्तार किया जा रहा है. ऑडियो अनुभाग में गांधीजी की 1947 और 1948 में प्रार्थना सभाओं के समय के उनके भाषणों की रिकॉर्डिग को शामिल किया गया है. प्रार्थनाओं के समय के ये भाषण ऑल इंडिया रेडियो से पूरे उप-महाद्वीप में रिले किये गये थे. वीडियो अनुभाग में गांधीजी पर फिल्में हैं. इनमें विट्ठल दास झावेरी द्वारा निर्मित साढ़े पांच घंटे का वृत्तचित्र भी है. पोर्टल में कई अन्य फिल्में भी हैं, जिनमें अभिलेखों से फुटेज ली गयी है.
प्रकाशन से जुड़े कार्य
गांधीजी ज्यादा से ज्यादा लोगों से संवाद कर उनकी राय जानना चाहते थे. विभिन्न भाषाओं में पत्रिकाओं का प्रकाशन संवाद के प्रयासों में से एक था. पोर्टल में उन सभी पत्रिकाओं को शामिल किया गया है, जो उन्होंने शुरू की थीं, संपादित की थीं या प्रकाशित की थीं. इनमें इंडियन ओपीनियन, नवजीवन, यंग इंडिया, हरिजन, हरिजन बंधु और हरिजन सेवक शामिल हैं.
‘जनरल्स बाइ अदर्स’ में संस्थाओं और आंदोलनों द्वारा प्रकाशित चुनी हुई पत्रिकाओं को शामिल किया गया है, जो गांधीजी के विचारों और कार्य-व्यवहारों या रिकॉर्ड दस्तावेज और समय-समय पर उनकी गतिविधियों के बारे में जानकारी देती हैं. इनमें गांधी मार्ग (हिंदी और अंगरेजी), भूमि पुत्र, प्यारा बापू, कस्तूरबा दर्शन और सत्याग्रह आश्रम मधपुडो की हस्तलिखित पत्रिका शामिल है. इन पत्रिकाओं के पूरे विस्तृत विवरण पोर्टल में मुहैया कराये गये हैं, जिससे यह अनुभाग गांधीजी की परिकल्पना और विद्वत्ता का संपूर्ण अभिलेखागार बन गया है.
अन्य पुस्तकें (अदर बुक्स)
इसमें गांधीजी और संबद्ध आंदोलनों तथा संस्थाओं के बारे में लगातार बढ़ती जानकारी के साथ पूरी जानकारी, बिना संक्षिप्त किये गये विवरण या संदर्भ ग्रंथों की जानकारी देने का प्रयास किया गया है. इसमें गांधीजी के वार्ताकार रहे व्यक्तियों की वार्ताओं को भी शामिल किया गया है.
(सूचना स्नेत : पीआइबी)
दशहरा में तो हमें संयम सीखना है
अब दशहरा आ रहा है और पीछे बकरीद आ रही है. दोनों करीब-करीब एक साथ मिलते हैं. हम हिंदू-मुसलमान दोनों भयभीत रहते हैं, हमेशा रहते हैं, आज तो ज्यादा ही भयभीत हैं.. दशहरा क्या है? रामजी की जीत मनाने के लिए ही दशहरा है. कहते हैं इसके पीछे एकादशी है, उस दिन राम का भरत के साथ मिलाप होगा. उसमें तो हमें संयम सीखना है, भलमनसाहत सीखनी है, धर्म क्या चीज है उसको सीखना है. अगर वह सीख लें तो हम दशहरा सच्चे अर्थ में मनाते हैं.
दशहरे के दिन दुर्गा-पूजा भी होती है. वह क्या चीज है? हम सब खून के प्यासे रहें, वह दुर्गा का अर्थ नहीं है. दुर्गा का अर्थ यह है कि वह एक बड़ी शक्ति पड़ी है, उसकी उपासना करके हम ऊंचे चढ़ सकते हैं. इसी तरह से दशहरा का यह मतलब नहीं है कि हम सारे दिनभर रूप, रंग, राग उड़ाएं. उसको हमारे गुजरात में नवरात्रि कहते हैं. जब हम बच्चे थे, तब मेरी मां कहती थी कि नवरात्रि को नहीं खाना चाहिए. अगर खाना ही है तो फल खाओ, ज्यादा से ज्यादा दूध पियो, लेकिन अनाज न खाओ. अगर सचमुच पूरा का पूरा उपवास करो, तो सबसे अच्छा है. मेरी मां तो बड़ी उपवास करनेवाली थी, जिसका मैं कोई मुकाबला नहीं कर सकता था. मेरे बड़े भाई तो मुकाबला कर ही नहीं सकते थे- मैं थोड़ा-सा मुकाबला करता था. लेकिन उसमें उपवास करने की जो शक्ति थी उसके सामने मैं एक खिलौना हूं, बच्च हूं. दशहरा को हम इस तरह से मनाते हैं.
हां, पीछे जो दिवाली है, उसमें खा-पी सकते हैं, थोड़ा मौज कर सकते हैं, लेकिन, दशहरा में तो बिल्कुल नहीं. यह जो नवरात्रि का अर्थ है, क्या उसको छोड़ कर हम काट-कूट करेंगे? पीछे बकरीद है.
जो मुसलमान भाई हैं उनको हमने डरा दिया है. उनमें हमारे अच्छे भाई हैं. जो राष्ट्रवादी भाई थे, वे भी आज परेशान पड़े हैं, लेकिन कहां जायें? हम ऐसे बेरहम बन जायें कि उनको भी भगा देंगे? तब शांति होगी? वह शांति कैसे हो सकती है?
महात्मा गांधी
(देश विभाजन के बाद के तनावपूर्ण माहौल में 22 अक्तूबर, 1947 को प्रार्थना सभा में दिये भाषण का अंश)
गांधीजी की मौलिक रचनाएं
मौलिक रचनाएं वे रचनाएं हैं, जो द कलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ महात्मा गांधी का स्नेत हैं. इनमें डायरियां, संस्मरण, पत्रों और जीवन चरित्रों से चुने हुए अंश शामिल हैं. 1917 से 1942 तक साथ रहे गांधीजी के निकटतम सहयोगी महादेव देसाई की असाधारण डायरियों के बिना ‘द कलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ महात्मा गांधी’ की कल्पना नहीं की जा सकती. मौलिक रचनाओं में ‘महादेव भाई नी डायरी’ की तीन भाषाओं में संस्करण उपलब्ध हैं. इसी प्रकार मनुबेन गांधी की प्रकाशित रचनाएं भी मौलिक रचनाओं का हिस्सा हैं. गांधीजी के जीवन के बारे में समझने के लिए बहुत ही समृद्ध जीवन कथाओं की लंबी परंपरा है, जो रेवरेंड जोसेफ डोक की पुस्तक- एम के गांधी : एन इंडियन पैट्रियट इन साउथ अफ्रीका- से शुरू होती है और इनमें प्यारे लाल की ‘द अर्ली फेज एंड द लास्ट फेज,’ डीजी तेंडुलकर द्वारा लिखी आठ खंडों की जीवन कथा महात्मा और नारायण देसाई की ‘मारू जीवन एज मारी वानी’ (गुजराती में) जैसी पुस्तकें शामिल हैं.
ये सभी मौलिक रचनाओं का हिस्सा हैं. इनमें गांधीजी के सहयोगियों सीएफ एंड्रज और मीराबेन की रचनाएं भी शामिल हैं. इस खंड में प्रमुख पुस्तकों के विभिन्न अनुवाद भी हैं. प्रयास इस बात का है कि इस खंड में गांधीजी द्वारा विभिन्न भाषाओं में लिखे लेखों के प्रामाणिक चुनाव शामिल हों. मौलिक कार्यो में द कलेक्टेड वर्क्‍स ऑफ महात्मा गांधी के अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवादित खंडों को शामिल किया जायेगा.
पुस्तकों की पांडुलिपि की प्रतिकृति
पुस्तकों के मुद्रण और अनुवादों के बारे में भी जानकारी दी गयी है. हिंद स्वराज से इसका स्पष्ट पता चलता है, जिसे गांधीजी मूल पाठ कहते थे. पोर्टल में उनकी पांडुलिपि की प्रतिकृति है, जिसे उन्होंने 13 से 22 नवंबर, 1909 के दौरान स्टीमर किलडोनन कैसल में जाते हुए लिखा था. इसके बाद पहला गुजराती संस्करण है, जो इंडियन ओपिनियन के दो अंकों में छपा था (11 दिसंबर, 1909 और 18 दिसंबर, 1909). गांधीजी ने 1910 में इंडियन होम रूल नाम से इसका अंगरेजी में अनुवाद किया था. इससे पहले मार्च, 1910 में बॉम्बे की सरकार ने गुजराती संस्करण में इसके प्रकाशन पर पाबंदी लगा दी थी. अंगरेजी अनुवाद के बाद हिंदी अनुवाद भी है. अन्य पाठों के मामले में भी यही क्रम अपनाया गया है. हालांकि, अन्य प्रमुख पुस्तकों के प्रतिकृति संस्करण उपलब्ध नहीं हैं.

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