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गुमनाम होता ये ताज

एक वो ताजमहल जिसे सैलानियों का प्यार भी मिला और सरंक्षण का दुलार भी. दूसरा ताज जिसे मिले बस गुमनामी के अंधेरे और अनदेखी के जख्म. एक मुगल शहंशाह की बेगम जिसकी कब्र पर हर रोज हजारों का सजदा होता है, दुनिया जिसके नाम की कसमें खाती है. दूसरी तरफ, एक अन्य मुगल शहंशाह की […]

एक वो ताजमहल जिसे सैलानियों का प्यार भी मिला और सरंक्षण का दुलार भी. दूसरा ताज जिसे मिले बस गुमनामी के अंधेरे और अनदेखी के जख्म. एक मुगल शहंशाह की बेगम जिसकी कब्र पर हर रोज हजारों का सजदा होता है, दुनिया जिसके नाम की कसमें खाती है. दूसरी तरफ, एक अन्य मुगल शहंशाह की बेगम का मकबरा, जिसे एक चिरागी तक मयस्सर नहीं, लोगों को यह तक नहीं पता कि वहां कोई रानी भी दफन है.

उपेक्षा और अनदेखी की शिकार यह प्राचीन इमारत बोदला चौराहे के नजदीक आवास विकास कॉलोनी के सेक्टर एक में स्थित है. इस पर पहली निगाह पड़ते ही जेहन में विश्वदाय स्मारक ताजमहल के मुख्य मकबरे के गुंबद का खयाल आता है. यह इमारत लगभग उसकी प्रतिकृति नजर आती है.
मुगलिया स्थापत्य शैली में लाखौरी ईटों से बनी इस इमारत में चार दरवाजे हैं. छत पर एक विशाल गुंबद बना है, हालांकि इस पर कलश नहीं है. हालांकि इसे देखने पर अहसास होता है कि कभी इस पर कलश लगा होगा. छत के चारों कोनों पर भी कभी सुंदर बुर्ज बने होंगे, लेकिन अब यह टूट कर नष्ट हो चुके हैं. छत के कोनों पर बस उनके होने के निशान नजर आते हैं.

इमारत के अंदर भी मुगलकालीन अंदाज में डिजाइन बनी हुई हैं. माना जाता है कि यह मुगल शहंशाह अकबर की पहली रानी रुकइया बेगम का मकबरा है. हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग या अन्य किसी विभाग ने इस प्राचीन स्मारक को अब तक संरक्षित इमारतों की सूची में शामिल नहीं किया. इसके चलते यह इमारत अब जर्जर हालात में पहुंच चुकी है.

छत के कोनों पर बनी बुर्जियां तो ढह ही चुकी हैं, साथ ही गुंबद की चमक भी फीकी पड़ गई है. जबकि अनुमान के मुताबिक इस पर कभी विशेष प्लास्टर हुआ करता होगा, जिससे वह संगमरमर की तरह चमकता होगा. स्मारक की दीवालें भी दिनों-दिन कमजोर हो रही हैं और उसमें ईटें निकल रही हैं. वहीं बीते कुछ माह से एक व्यक्ति ने इस प्राचीन इमारत में कब्जा भी कर लिया है. दरवाजे पर परदे लगा दिए हैं. अब बाहर उसके दुधारू जानवर बंधे रहते हैं. वह किसी को अब अंदर भी नहीं जाने देता.

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