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जीवन का उपहार दीजिए

विश्व रक्तदाता दिवस (वर्ल्ड ब्लड डोनर डे) प्रत्येक वर्ष 14 जून को मनाया जाता है. इस बार का स्लोगन है ‘गिव द गिफ्ट ऑफ लाइफ : डोनेट ब्लड’. यानी रक्त दान करके जीवन का उपहार दीजिए. इस बार के रक्तदाता दिवस का फोकस इस बात पर है कि जो रक्त दान किया जाता है, उससे […]

विश्व रक्तदाता दिवस (वर्ल्ड ब्लड डोनर डे) प्रत्येक वर्ष 14 जून को मनाया जाता है. इस बार का स्लोगन है ‘गिव द गिफ्ट ऑफ लाइफ : डोनेट ब्लड’. यानी रक्त दान करके जीवन का उपहार दीजिए.

इस बार के रक्तदाता दिवस का फोकस इस बात पर है कि जो रक्त दान किया जाता है, उससे न केवल मरीज की जान बचती है, बल्कि इसके कई सामाजिक निहितार्थ भी हैं.

इस बार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सभी देशों से अपील की है कि 2020 तक सभी देश यह तय कर लें कि ब्लड बैंकों को मिलने वाली रक्त की शत प्रतिशत आपूर्ति स्वैच्छिक दानदाताओं द्वारा हो, जिसके बदले में कोई मूल्य नहीं चुकाया गया हो. इससे एक बात स्पष्ट है कि अगर स्वैच्छिक और बिना मूल्य चुकाये रक्त दान की परिपाटी विकसित होती है, तो फिर किसी भी ब्लड बैंक में रक्त की कमी नहीं होगी.

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यह बेहद खुशी की बात है कि 2004 में जहां बिना पैसा प्राप्त किये रक्त दान करने वाले स्वैच्छिक दानदाताओं की संख्या महज 80 लाख थी, वह 2011 में बढ़कर 8 करोड़ 30 लाख हो गयी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के ब्लड ट्रांसफ्यूजन सोसाइटी में कोआर्डिनेटर डॉ नीलम धींगरा के अनुसार, दुनिया के सभी देशों में सुरक्षित और पर्याप्त रक्त आपूर्ति के लिए स्वैच्छिक रक्तदाता सबसे बढ़िया माध्यम हैं.

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हालांकि जरूरतों के हिसाब से बड़ी संख्या में स्वैच्छिक दानदाताओं को आगे आना होगा. उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि किसी भी हाल में रक्त और रक्त अवयवों की गुणवत्ता को लेकर समझौता नहीं करना चाहिए, क्योंकि सवाल किसी की जिंदगी से जुड़ा होता है. बिहार-झारखंड में प्राय: ऐसी खबरें छपती हैं, जिनमें बताया जाता है कि अमुक अस्पताल में पैसे के बदले लोग खून दे रहे हैं.

यह केवल इन राज्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कई गरीब मुल्कों में ऐसा देखा जा सकता है. बिहार में मां वैष्णव देवी सेवा समिति के संस्थापक मुकेश हिसारिया बताते हैं कि जो पेशेवर दानदाता हैं, वे प्राय: ड्रग लेने वाले गरीब लोग होते हैं, जो महज सौ रुपये में भी खून देने के लिए तैयार रहते हैं.

वे हर पंद्रह दिन पर खून देने के लिए तैयार मिलेंगे. जबकि हम-आप सभी जानते हैं कि ब्लड डोनेट करने के बाद अगली बार तीन माह के बाद ही ब्लड डोनेट करना चाहिए. यह समिति एक स्वैच्छिक संगठन है, जहां स्वैच्छिक रक्तदाताओं का नाम दर्ज होता है. जिन जरूरतमंद लोगों को खून की जरूरत होती है, उन्हें वे डोनर उपलब्ध कराने पर खून देते हैं. पर वास्तव में स्थिति बहुत खराब है.

बिहार-झारखंड में स्थिति

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वैच्छिक रक्तदाता (जो बदले में पैसे न लें) बनाने पर जोर दिया है. इस नीति को सबसे अधिक बिहार-झारखंड जैसे प्रदेशों में अमल में लाने की जरूरत है. बिहार का उदाहरण देखिए. बिहार में प्रतिवर्ष 10 लाख यूनिट ब्लड की जरूरत है, लेकिन स्वैच्छिक रूप से संग्रह महज एक लाख यूनिट ही हो पाता है.

रेड क्रास सोसाइटी, बिहार के डायरेक्टर बीबी सिन्हा के अनुसार, कुल मिलाकर 90 प्रतिशत रक्त की कमी होती है. यह नहीं बताया जा सकता कि बाकी का खून कहां से आता है. राज्य में स्वैच्छिक रक्तदान के बारे में लोग जागरूक नहीं हैं. यही कारण है कि ड्रग लेने वाले नशेड़ी अस्पतालों के बाहर खून देने के लिए चक्कर काटते रहते हैं.

इसलिए कइयों का मानना है कि मांग-आपूर्ति का जो गैप है वह इन्हीं पेशेवर दानदाताओं द्वारा पूरा किया जाता है. मजे की बात यह है कि पेशेवर रक्तदान पर प्रतिबंध है, फिर भी यह धंधा भली-भांति फल-फूल रहा है. इसलिए पटना, रांची जैसे शहरों में खून एक उत्पाद की तरह खरीदा-बेचा जाता है, वह भी खुलेआम. और तो और बाकायदा इसको लेकर मोलभाव भी होता है.

इन देशों से सीख लें

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया है कि दुनिया में 60 देशों में ब्लड बैंकों में होने वाली रक्त की शत प्रतिशत आपूर्ति स्वैच्छिक दानदाताओं द्वारा नि:शुल्क की जाती है. इनमें 35 उच्च आय वाले देश, 18 मध्यम आय वाले देश और सात निम्न आय वाले देश हैं.

जबकि दुनिया में 73 देश ऐसे हैं, जहां 50 प्रतिशत रक्त की आपूर्ति पेशेवर दानदाताओं द्वारा होती है. हमारे सामने फ्रांस का उदाहरण है. फ्रांस में प्रतिवर्ष 30 लाख यूनिट ब्लड का संग्रह किया जाता है. वहां शत-प्रतिशत रक्त की आपूर्ति स्वैच्छिक दानदाताओं द्वारा नि:शुल्क की जाती है.

श्रीलंका भारत से काफी आगे

पड़ोसी देश श्रीलंका भी स्वैच्छिक रक्तदान के मामले में भारत से बेहतर है. इस बार जहां फ्रांस वर्ल्ड ब्लड डोनर डे को होस्ट कर रहा है, अगले साल यह जिम्मेवारी श्रीलंका को मिलेगी. ऐसा इसलिए कि श्रीलंका ने पिछले दस सालों में स्वैच्छिक रक्तदान में अभूतपूर्व तरक्की की है.

जहां 2003 में स्वैच्छिक रक्तदान 37 प्रतिशत पर था, वह बढ़कर 97 प्रतिशत हो गया है. नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन सर्विस, श्रीलंका के मेडिकल अफसर डॉ नमल बंदारा के अनुसार, श्रीलंका में लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं, इसलिए वे धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से रक्त दान को बेहद अच्छा मानते हैं. प्रत्येक माह पूर्णिमा के अवसर पर लोगों को रक्त दान के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.

सामाजिक संगठन मंदिरों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों आदि में अपना कैंप लगा कर रक्त संग्रह करते हैं. ब्लड डोनेशन को लेकर श्रीलंका में अनूठे प्रयोग हो रहे हैं. जैसे ब्लड डोनेट करने वालों के लिए गोल्ड, सिल्वर और प्लैटिनम कार्ड शुरू किये गये हैं. इसी तरह फेसबुक पर इससे संबंधित पेज है, जो लोगों को रक्त दान के लिए प्रोत्साहित करता है. चुने हुए रक्त दानदाताओं की मुफ्त चिकित्सीय जांच की जाती है. पर दुर्भाग्य से भारत में रक्तदान को लेकर जागरूकता का घोर अभाव है.
।। संजय कुमार सिन्हा ।।

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