धान के लिए तरस रहा सीता मइया का मायका
!! अजय कुमार !! लखनदेई नदी की धारा बदली, तो बदली इकोनॉमी नदी की धारा लौटाने के लिए सीतामढ़ी में 28 से 30 तक जल सत्याग्रह पटना : धान उत्पादन में बिहार ने भले ऊंची छलांग लगायी हो, पर सीता मैया का मायका धान के लिए तरस गया है.मान्यता है कि सीता जब श्रीराम के […]
!! अजय कुमार !!
लखनदेई नदी की धारा बदली, तो बदली इकोनॉमी
नदी की धारा लौटाने के लिए सीतामढ़ी में 28 से 30 तक जल सत्याग्रह
पटना : धान उत्पादन में बिहार ने भले ऊंची छलांग लगायी हो, पर सीता मैया का मायका धान के लिए तरस गया है.मान्यता है कि सीता जब श्रीराम के साथ विदा होने लगीं, तो खोइंछा का धान निकाल कर अपनी धरती को यह कहते हुए लौटा दिया था कि यहां धान की कभी कमी नहीं होगी. उस सीता की धरती पर धान की ऐसी किल्लत हुई कि इलाके की 19 राइस मिलें बंद हो गयीं.
यह कहानी है सीतामढ़ी की. सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर के आठ ब्लॉक की खेती लखनदेई नदी से होती थी. यह हिमालय से निकलनेवाली नदी है. भारतीय क्षेत्र में इसकी लंबाई 77 किलोमीटर है. ऐसा कहा जाता है कि सीता का जब आगमन हुआ था, तब उनकी आठ सखियों में यह नदी भी थी.
लखनदेई को महालक्ष्मी स्वरूपा लक्ष्मण गंगा भी पुकारा जाता है. नेपाल क्षेत्र में इस नदी पर पुलबन जाने के चलते इसकी धारा बदल गयी. पुराने रास्ते से करीब दो किलोमीटर दूर इसने अपना नया रास्ता बना लिया.
नदी की मूल धारा बदलने से सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर जिलों के सोनबरसा, मेजरगंज, बथनाहा, सीतामढ़ी, डुमरा, परसौनी, रून्नीसैदपुर और औराई ब्लॉक की खेती चौपट हो गयी. अब साल में एक बार गेहूं की फसल होती है. धान की पैदावार बुरी तरह मारी गयी. इस इलाके को धान का नैहर भी कहा जाता है. धान की अनेक प्रजातियां थीं, जो अब लोगों की स्मृतियों में केवल महक की तरह बसी हैं.
अब इस नदी को पुरानी धारा की ओर लौटाने की लड़ाई चल रही है. लोगों का मानना है कि लखनदेई अपने पुराने स्वरूप में नहीं आयेगी, तो हजारों एकड़ जमीन को एक बूंद पानी नहीं मिलेगा. नदी को पुरानी धारा की ओर लौटाने के लिए स्थानीय लोगों ने जल सत्याग्रह करने का फैसला किया है. 28 से 30 अक्तूबर तक लोग लखनदेई घाट पर सत्याग्रह और उपवास रखेंगे.
इस संदर्भ में बनायी गयी संघर्ष यात्रा के शशि शेखर ने कहा कि यह लोगों के जीवन से जुड़ी नदी है और इसे पुराने स्वरूप में नहीं लाया गया, तो लाखों लोग भुखमरी के शिकार होंगे. इसलिए जरूरी है कि पुरानी धारा में पानी के प्रवाह के लिए कदम उठाये जाएं. भारतीय भू भाग में नदी पर जहां-तहां अतिक्र मण कर लिया गया है.
सीतामढ़ी शहर का गंदा पानी इसी नदी में गिरता है. इसको रोकने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट का होना अनिवार्य है. इस सिलसिले में उन्होंने अपनी बात राज्यपाल डीवाइ पाटील तक भी पहुंचायी है. उन्होंने कहा कि बीते ढाई दशक में बांध और पुल बन जाने के चलते नदियों की अविरल धारा बाधित हुई है. उनके मुताबिक इस दौरान सीतामढ़ी की 19 राइस मिलें धीरे-धीरें दूसरी जगहों पर शिफ्ट हो गयीं. इसकी वजह स्थानीय स्तर पर धान के पैदावार में साल-दर-साल गिरावट थी.
क्यों हुई समस्या : नेपाल क्षेत्र में इस नदी पर पुल बन जाने के चलते इसकी धारा बदल गयी. पुराने रास्ते से करीब दो किलोमीटर दूर इसने अपना नया रास्ता बना लिया.
नदी की धारा बदलने से आठ प्रखंडों की खेती चौपट
नदी की मूल धारा बदलने से सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर जिलों के सोनबरसा, मेजरगंज, बथनाहा, सीतामढ़ी, डुमरा, परसौनी, रून्नीसैदपुर और औराई ब्लॉक की खेती चौपट हो गयी.