वॉशिंगटन डायरीः मोनिका ने मुंह खोला नहीं कि..
ब्रजेश उपाध्याय बीबीसी संवाददाता, वॉशिंगटन से शर्म करो मोनिका. तुमने और बिल क्लिंटन ने जो भी किया उसकी असली शिकार तो हिलेरी क्लिंटन बनीं. लेकिन फिर भी जब वो उस पन्ने को पलट कर आगे बढ़ती हैं तो तुम वापस आकर फिर से उसी पन्ने को खोल देती हो. कुछ तो शर्म करो. ये मैं […]
शर्म करो मोनिका. तुमने और बिल क्लिंटन ने जो भी किया उसकी असली शिकार तो हिलेरी क्लिंटन बनीं.
लेकिन फिर भी जब वो उस पन्ने को पलट कर आगे बढ़ती हैं तो तुम वापस आकर फिर से उसी पन्ने को खोल देती हो. कुछ तो शर्म करो.
ये मैं नहीं कह रहा, यहां के एक पत्रकार ने बड़े ग़ुस्से में अपने कॉलम में लिखा है.
लेकिन भाई इसमें मोनिका लेविंस्की की क्या ग़लती.
अब वो अपनी पूरी ज़िंदगी गुमनामी में बिताए, कभी ख़बरों में ना आएं, कभी मुंह ना खोलें, हिलेरी के चाहने वाले ये उम्मीद क्यों लगा रहे हैं उससे.
वॉशिंगटन से ब्रजेश उपाध्याय की डायरी
अब इस हफ़्ते मोनिका ट्विटर पर आ गईं, बस चार बार मुंह खोला तो पचहत्तर हज़ार लोगों ने उन्हें फॉलो कर लिया. अगर थोड़ा बड़ा मुंह खोलेंगी तब तो बाढ़ आ जाएगी.
और हिलेरी के चाहने वालों को यही डर सता रहा है कि जब एक-दो महीनों में वो राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए अपनी टोपी डालती हैं तो कहीं मोनिका और बिल का सोलह साल पुराना क़िस्सा फिर से सुर्खि़यों में ना नज़र आने लगे और हिलेरी एक सताई हुई पत्नी की तरह नहीं नज़र आएं.
आख़िर दुनिया की सबसे ताक़तवर कुर्सी के लिए फंदा फेंक रही हैं हिलेरी तो ये तो न लगे कि जो अपने पति को काबू में नहीं रख सकी वो दुनिया क्या चलाएगी.
या फिर ये भी न लगे कि हिलेरी इतनी मौकापरस्त थीं, या व्हाइट हाउस में बने रहने का लालच इतना था कि बिल क्लिंटन को छोड़ नहीं पाईं.
हिलेरी
फ़िलहाल तो हिलेरी की गुड्डी चढ़ी हुई है. कांग्रेस के मिड टर्म चुनाव होने वाले हैं और डेमोक्रैट सांसद और सेनेटर अपने चुनाव प्रचार में हिलेरी और बिल क्लिंटन के लिए लाइन लगाए रहते हैं. डेमोक्रैट पार्टी को स्टार प्रचारकों की कमी महसूस हो रही है.
ओबामा व्हाइट हाउस की अपनी ही परेशानियों से जूझ रहे होते हैं. एक सरफिरा फिर से दीवार फांद कर अंदर घुस आया.
बचपन में स्कूल के पास एक बाबू मोशाय की चहारदिवारी लांघ कर हम नाशपाती चुराया करते थे. व्हाइट हाउस की दीवार तो उससे भी आसान लगने लगी है.
बेचारे इमरान ख़ान बेकार ही नवाज़ शरीफ़ के महल में घुसने के लिए हफ़्तों से धरना दे रहे हैं. थोड़ा बड़ा सोचते तो व्हाइट हाउस के अंदर छलांग लगाते, ओबामा से मान-मनोव्वल करते तो शायद वो व्हाइट हाउस छोड़ने को भी राज़ी हो जाते.
ओबामा
क्योंकि ओबामा की तो हालत ये है कि उनकी अपनी पार्टी वाले भी ऐसे कन्नी काट रहे हैं जैसे ओबामा नहीं इबोला हों.
और तो और सेनेट की रेस में शामिल एक डेमोक्रैट महिला उम्मीदवार जो ओबामा की पॉलिसी की ऐसी-तैसी कर रही थीं, उनसे पूछा गया कि आपने ओबामा के लिए वोट डाला था या नहीं, तो उनका कहना था कि ये वो नहीं बता सकतीं और संविधान के तहत उन्हें इसका हक़ है.
मुझे याद है 2009 के जनवरी की वो सर्द सुबह जब लाखों लोग वॉशिंगटन में उमड़ पड़े थे ओबामा को सुनने. बहुत ऐसे थे जिनकी आंखों से ख़ुशी के आंसू बह रहे थे.
और अब दिन ऐसे बदले हैं कि इसी हफ़्ते ओबामा एक सेनेटर की चुनावी रैली में जब भाषण दे रहे थे तो लोग भाषण ख़त्म होने से भी पहले वहां से निकलने लगे.
‘फल की चिंता’
वक़्त आ गया है जब ओबामा को मोदी की दी हुई गीता को ध्यान से पढ़ना शुरू कर देना चाहिए, कर्म करो फल की चिंता मत करो.
वैसे भी अमरीका में इसका प्रचलन रहा है. बुश ने कर्म किया और फल की चिंता कभी नहीं की. मज़े से ख़ुद रिटायर हो गए और दुनिया अभी तक फल भुगत रही है.
हाल ही में माइक्रोसॉफ़्ट के सीईओ बने सत्या नडेला ने भी महिलाओं को प्रवचन दे डाला कि कर्म करते रहो, सैलेरी बढ़ाने की मांग मत करो.
उनकी अपनी सालाना सैलेरी बिना मांगे ही शायद 84 मिलियन डॉलर यानि आठ करोड़ चालीस लाख अमरीकी डॉलर तक पहुंच गई होगी!
ख़ैर आप अपने काम में लगिए, मैं ज़रा देखूं मोनिका ने कोई नया ट्वीट किया या फिर चार पर ही अटकी हुई हैं.
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