कम हुए हैं दिवाली पर झुलसने के मामले
सलमान रावी बीबीसी संवाददाता, दिल्ली सामाजिक संगठनों और प्रशासन के लिए इस बार दिवाली के दौरान राहत की बात यह रही कि पटाखों से लोगों के झुलसने के मामलों में कमी आई है. पिछले कुछ सालों में इन संगठनों और सरकार ने मिलकर दिवाली के दौरान पटाखों के इस्तेमाल को कम करने का अभियान छेड़ […]
सामाजिक संगठनों और प्रशासन के लिए इस बार दिवाली के दौरान राहत की बात यह रही कि पटाखों से लोगों के झुलसने के मामलों में कमी आई है.
पिछले कुछ सालों में इन संगठनों और सरकार ने मिलकर दिवाली के दौरान पटाखों के इस्तेमाल को कम करने का अभियान छेड़ रखा है.
राजधानी दिल्ली में पटाखों से ज़ख़्मी होने वाले लोगों की तादाद में पिछले कुछ सालों की तुलना में इस बार कमी भी देखी गई.
दिल्ली के प्रमुख अस्पतालों में तैनात डॉक्टरों का कहना है कि जो घटनाएं पटाखे जलाने के दौरान हुईं भी, वे उतनी गंभीर नहीं थीं.
सलमान रावी की पूरी रिपोर्ट
दिल्ली के लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल के ‘बर्न वार्ड’ में दिवाली का अगला दिन अमूमन काफ़ी गहमा गहमी वाला रहता है, क्योंकि हर साल यहाँ आतिशबाज़ी करने के दौरान ज़ख़्मी हुए लोगों का तांता लगा रहता है.
मगर यह पहला साल है जब दिवाली की रात के बाद पहुँचने वाले मरीज़ों की संख्या में काफ़ी कमी दर्ज की गई है.
दिवाली की रात के बाद इस अस्पताल में दोपहर के 12 बजे तक पटाखों से ज़ख़्मी होकर पहुँचने वाले लोगों की तादाद सिर्फ 32 थी.
अस्पताल के सर्जन डाक्टर अरुण गोयल ने बीबीसी हिन्दी को बताया कि हर साल इससे चार गुना ज़्यादा लोग पटाखों से ज़ख़्मी होकर अस्पताल पहुंचा करते थे.
तैयारी
गोयल ने कहा, "जो 32 ज़ख़्मी मरीज़ आए भी उनमें से सिर्फ पांच ही ऐसे थे जिन्हे भर्ती करना पड़ा. ज़्यादातर मरीज़ों को ‘ओपीडी’ में उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई. निस्संदेह, घटनाओं में काफ़ी कमी आई है."
गोयल कहते हैं, "लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में पहले से ही स्थिति से निपटने के लिए तैयारियां पूरी कर ली गयी थीं. सामाजिक संगठनों और सरकार के स्तर पर चलाए गए अभियान ने भी इसमें काफ़ी मदद की है."
हालांकि दिल्ली में बर्न के मरीज़ों के सबसे बड़े अस्पताल यानी सफदरजंग अस्पताल में इस साल भी पटाखों से ज़ख़्मी हुए काफ़ी मरीज़ पहुंचे.
बर्न विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर करुण अग्रवाल का कहना था कि अच्छी बात यह है कि ज़ख़्मी होने वाले ज़्यादातर लोगों को गंभीर चोटें नहीं आई हैं.
जागरूकता
अग्रवाल कहते हैं, "सफदरजंग अस्पताल राजधानी में बर्न का सबसे बड़ा अस्पताल है और ज़्यादातर ज़ख़्मी लोग यहीं आते हैं. इस बार भी यह तादाद काफ़ी थी. मगर अच्छी बात यह है कि इस बार गंभीर रूप से झुलसने वालों की तादाद में काफ़ी हद तक कमी आई है."
ह्यूमैन सोसाइटी इंटरनेशनल के एनजी जयसिम्हा का कहना है कि इस दिवाली सड़क पर घूमने वाले जानवरों के घायल होने की घटनाएं भी कम हुई हैं.
हालांकि दिल्ली के दमकल विभाग का कहना है कि इस बार दिवाली की रात हुई आग लगने की घटनाएं पिछले पांच सालों में सबसे ज़्यादा हैं.
दिवाली की रात विभाग के पास 293 मामले पहुंचे जिसमें से आधे मामले पटाखों की वजह से हुए. लेकिन विभाग का कहना है कि इनमें किसी की जान का नुक़सान नहीं हुआ.
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