मोदी का कश्मीर दौरा और कुछ सवाल..

ज़ुबैर अहमद बीबीसी संवाददाता पहले पांच सितम्बर को शिक्षक दिवस, फिर दो अक्तूबर को गांधी जयंती और अब 23 अक्तूबर को दिवाली के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र की ख़ूब चर्चा रही है. शिक्षक दिवस पर उनका प्रयास देश भर के विद्यार्थियों और शिक्षकों से जुड़ने का था और इस अनोखे प्रयोग के कारण वो मीडिया में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 25, 2014 3:37 PM
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पहले पांच सितम्बर को शिक्षक दिवस, फिर दो अक्तूबर को गांधी जयंती और अब 23 अक्तूबर को दिवाली के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र की ख़ूब चर्चा रही है.

शिक्षक दिवस पर उनका प्रयास देश भर के विद्यार्थियों और शिक्षकों से जुड़ने का था और इस अनोखे प्रयोग के कारण वो मीडिया में छाए रहे.

गांधी जयंती के दिन स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की वजह से उन्होंने भारत में ही नहीं, विदेशी मीडिया में भी सुर्ख़ियों बटोरीं.

अब दिवाली के दिन सियाचिन की ऊंची चोटियों पर सैनिकों के साथ और बाद में श्रीनगर में बाढ़ पीड़ितों के साथ दिन गुजारने पर वो चर्चा में रहे.

ज़ुबैर अहमद का ब्लॉग:

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प्रधानमंत्री बनने के बाद एक भी प्रेस कांफ्रेंस किए बग़ैर और भारतीय मीडिया को कोई बड़ा इंटरव्यू दिए बिना भी नरेंद्र मोदी का चर्चा में होना ज़ाहिर करता है कि पत्रकारों के कलम-माइक की जगह अपने ट्वीट का इस्तेमाल करने वाला ये व्यक्ति 21वीं सदी का प्रधानमंत्री है.

ईद के बजाए दिवाली के दिन मुस्लिम बहुसंख्यक भारत प्रशासित कश्मीर का दौरा करके बाढ़ पीड़ितों से सहानुभूति दिखाना क्या एक नया मास्टरस्ट्रोक है?

अगर वो ईद में ये दौरा करते तो उनके हिंदुत्व समर्थकों को ये बात शायद पसंद नहीं आती.

लेकिन यही दौरा दिवाली के दिन करने से शायद ये संदेश जाता है कि वे कश्मीर के ‘भाई बहनो’ के दुख दर्द में शामिल होने गए.

श्रीनगर से बीबीसी संवाददाता रियाज़ मसरूर ने राहत शिवरों में रह रहे कुछ लोगों से मुलाकात की. उनमें से एक बिलाल ने मोदी के इस फैसले पर खुशी ज़ाहिर की. उनका कहना था कि प्रधानमंत्री ने हमारी तकलीफ बांटने के लिए अपनी त्यौहार की छुट्टी भी कुर्बान कर दी.

शायद प्रधानमंत्री मोदी ने भी ऐसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद की होगी और इसीलिए ये फैसला लिया होगा.

पर शायद उन्हे अब्दुल राशिद का पता नहीं था.

अब्दुल राशिद भी एक राहत शिविर में रह रहें हैं. अब्दुल राशिद कहते हैं, "हमने ईद नहीं मनाई तो दीपावली के बारे में कैसे सोचें? उम्मीद है वे हमारे शिविरों में भी आएंगे और हमारे हालात देखेंगे."

अब्दुल राशिद की मुलाकात प्रधानमंत्री से नहीं हो पाई.इस यात्रा पर राजनीतिक छीटा कंशी होनी थी सो हो रही है.कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने इस य़ात्रा पर निशाना साधा है.

जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने कुछ इसी अंदाज़ में एक ट्वीट भी किया.

उन्होंने कहा कि इस दौरे से बाढ़ पीड़ितों को ये उम्मीद बंधी कि प्रधानमंत्री उनके पुनर्वासन के लिए एक आर्थिक पैकेज का एलान करेंगे.

बीजेपी ने इन सभी बातों के जवाब में कहा कि ये प्रधानमंत्री का सराहनीय कदम है और इसमे राजनीति देखना गलत होगा.

आम कश्मीरी

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पर कई आम कश्मीरी सवाल उठा रहे हैं कि ईद के कई दिनों बाद दिवाली के दिन कश्मीर जाने के पीछे मंशा क्या विधान सभा चुनाव है?

अटकलें लगाई जा रही हैं कि राज्य में चुनाव दिसंबर या जनवरी में कराया जा सकता है.

बाढ़ पीड़ितों के शिविरों में जाकर बदहाल लोगों के कंधों को थपथपाने से पीड़ितों पर गहरा असर होता है.

इससे ये पैग़ाम मिलता है कि देश का प्रधानमंत्री उनके दुख दर्द में उनके साथ है.

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लेकिन क्या ये उस समय अधिक असरदार नहीं होता गर प्रधानमंत्री ईद के दिन ये दौरा करते?

महाराष्ट्र और हरियाणा विधान सभाओं में ज़बर्दस्त जीत के बाद मोदी और बीजेपी खेमे में आत्मविश्वास आसमान को छू रहा है.

ज़ाहिर है अब उनकी निगाहें जम्मू-कश्मीर के चुनाव पर हैं. लेकिन आम कश्मीरी प्रधानमंत्री के दौरे के असल मकसद पर आश्वस्त नज़र नहीं आता है.

प्रधानमंत्री के कश्मीर के दौरे से उनकी पार्टी को चुनावी फायदा होगा, इसका जवाब आसान नहीं.

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