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बिना मालिक के खनिज निकालती रही कंपनी
सुनील चौधरी रांची : खान विभाग के कारनामों का आलम यह है कि 18 वर्षो से अजिताबुरु माइंस बिना मालिक के ही करोड़ों रुपये का खनिज निकालता रहा. कंपनी के मालिक की मौत 18 वर्ष पहले ही हो चुकी है और इस दौरान बिना किसी उत्तराधिकारी के ही खनिजों का उत्खनन होता रहा. आखिर इतने […]
सुनील चौधरी
रांची : खान विभाग के कारनामों का आलम यह है कि 18 वर्षो से अजिताबुरु माइंस बिना मालिक के ही करोड़ों रुपये का खनिज निकालता रहा. कंपनी के मालिक की मौत 18 वर्ष पहले ही हो चुकी है और इस दौरान बिना किसी उत्तराधिकारी के ही खनिजों का उत्खनन होता रहा. आखिर इतने वर्षो तक इस माइंस को चला कौन रहा था, कौन इस खदान से लौह अयस्क निकालता रहा और सरकार को रॉयल्टी भी देता रहा. सरकार मौन रही, रॉयल्टी लेती रही. जबकि चाईबासा स्थिति अजिताबुरु माइंस की मालिक देबका बाई भेलजी का निधन 1996 में ही हो गया.
किसी प्रकार की पावर ऑफ एटॉर्नी भी नहीं
जब किसी खनिज का कोई मालिक नहीं होता तो उसका आवंटन रद्द कर सरकार के हवाले कर दिया जाता है. यह जानते हुए भी कि अजिताबुरु माइंस की मालिक का निधन हो चुका है, माइंस चलता रहा. फिर कौन लोग थे जो लौह अयस्क निकाल रहे थे. वह भी 18 साल से. खान विभाग के अधिकारी इसे जानते थे. सब कुछ आपसी सहमति से चलता रहा. चार लोग मिलकर जिसमें एक संजू शारदा नाम का व्यक्ति भी शामिल है, माइंस चलाते रहे. जबकि संजू शारदा से देबका बाई भेलजी का क्या संबंध है, यह स्पष्ट नहीं है. न ही किसी प्रकार की पावर ऑफ एटॉर्नी उन्हें मिली थी.
आचार संहिता लागू, विभाग पसोपेश में
इधर यह खबर चर्चा में आने के बाद अचानक खान विभाग हरकत में आया. विभाग द्वारा धीरज लाल भेलजी को देबका बाई भेलजी का उत्तराधिकारी बताते हुए मालिकाना हक हस्तांतरित करने की फाइल सीएम के पास भेजी गयी. समाचार लिखे जाने तक फाइल खान विभाग नहीं लौटी थी. बताया जा रहा है कि सोमवार को अजिताबुरु माइंस के लीज नवीकरण करने की तैयारी चल रही है. इसी दौरान चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की तिथि की घोषणा कर दी गयी. राज्य में आचार संहिता लागू हो गयी. अब विभाग पसोपेश में है.
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