27 अक्तूबर, 2014 को पटना ब्लास्ट का एक साल पूरा हो गया. आतंकियों के बम धमाके से साल भर पहले 10 लोगों की मौत का रहस्य सुरक्षा एजेंसियां भले ही खोज निकालने का दावा कर रही हों, लेकिन जिन कारणों से गांधी मैदान में हादसा हुआ, वे आज भी मैदान में हैं. बिना रोक-टोक आज भी कोई व्यक्ति मैदान में प्रवेश कर सकता है. मैदान में सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं. किसी घटना के बाद ही पुलिस और प्रशासन की नींद टूटती है.
हमारी उपलब्धि : देश का एकमात्र आतंकी मामला जिसका पूरा खुलासा
पटना : 27 अक्तूबर,2013 को पटना में हुआ आतंकी हमला कई मायने में देश में हुए अन्य आतंकी हमलों से बिल्कुल अलग था. देश में नब्बे के दशक में शुरू हुए आतंकी हमलों के इतिहास में यह पहला आतंकी हमला है, जिसकी जांच में आइबी और नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआइए) की टीम को साजिशकर्ताओं से लेकर हमले को अंजाम देने वालों तक के उद्भेदन में कामयाबी मिली. यही कारण है कि हमले की साजिश रचने से लेकर अंजाम तक पहुंचाने में जिन आतंकियों ने अपनी भूमिका निभायी थी,वे गिरफ्तार किये जा चुके हैं और उनके खिलाफ पटना स्थित एनआइए की विशेष अदालत में दो-दो चार्जशीट भी दाखिल किये गये हैं. कुछ ही दिनों में इसका ट्रायल भी शुरू होने वाला है.
एनआइए ने किये कई खुलासे
ऐसे उदाहरण देश में अन्य आतंकी हमलों को लेकर कहीं नहीं मिलता. हमले की जांच में एनआइए ने कुछ ऐसे खुलासे भी किये हैं, जो न केवल देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बल्कि विदेश में बैठे आतंकवादी संगठनों की भूमिका को स्पष्ट करने वाले हैं. पटना सीरियल ब्लास्ट की साजिश पड़ोसी राज्य झारखंड के कुछ ऐसे युवकों ने रची थी, जिन्हें शायद ही यह अंदेशा रहा होगा कि देश की जांच एजेंसी उनकी साजिश से परदा उठाने में सफल हो सकती है. हालांकि पटना ब्लास्ट की साजिश के तार छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से भी जुड़े मिले. जांच में हाल के दिनों में यह भी खुलासा हुआ कि आतंकी घटना के पीछे पश्चिम बंगाल के भी कुछ आतंकी हैं, जिन्होंने हमले के लिए विस्फोटक और अन्य जरूरी सामान उपलब्ध कराये थे.
अब तक 10 आतंकी गिरफ्तार
एनआइए ने आतंकी हमले में अबतक दस आतंकियों को गिरफ्तार किया है. इन आतंकियों ने गांधी मैदान में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (वर्तमान प्रधानमंत्री)को निशाना बनाने की साजिश रची और उसे अंजाम देने की कोशिश की. यह बिहार की धरती पर पहला आतंकी हमला था, जिसमें प्रधानमंत्री पद की रेस में शामिल किसी शख्सियत को निशाना बनाने की कोशिश की गयी थी. हमला इस मायने में भी खास है कि साजिश रचने से लेकर अंजाम देने वाले सभी आतंकियों के संबंध बिहार और झारखंड से थे. मुख्य साजिशकर्ता हैदर अली के तार बिहार के औरंगाबाद जिले के मदनपुर से भी जुड़े हैं. वह मूल रूप से औरंगाबाद का ही निवासी है.
हमारी नाकामी : गांधी मैदान के हालात वही दशहरे पर फिर भगदड़
पटना : 27 अक्तूबर,2014 को पटना ब्लास्ट के एक साल पूरे हो गये. आतंकियों के बम धमाके से साल भर पहले 10 लोगों की मौत का रहस्य सुरक्षा एजेंसियां भले ही खोज निकालने का दावा कर रही हों, लेकिन जिन कारणों से गांधी मैदान में हादसा हुआ. वे आज भी मैदान में हैं. बिना रोक टोक आज भी कोई व्यक्ति मैदान में प्रवेश कर सकता है. मैदान में सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं. किसी घटना के बाद ही पुलिस और प्रशासन की नींद टूटती है.
27 अक्तूबर,2013 को सुरक्षा के भारी तामझाम के बावजूद कैसे आतंकियों का पूरा दस्ता गांधी मैदान पहुंच गया.घटना के बाद भी अधिकारियों की नींद नहीं टूटी. मैदान में असामाजिक तत्वों के प्रवेश पर नजर,भीड़ प्रबंधन के दावे, रोशनी, माइक सिस्टम तथा पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था कागजी कार्रवाई तक ही सीमित रही. यही कारण रहा कि करीब साल भर बाद 33 लोगों की मौत गांधी मैदान से बाहर निकलते समय गेट पर मची भगदड़ से हो गयी. एक बार फिर सरकारी दावा जोरों पर है. हाइ मास्क लाइट, माइक सिस्टम और सुरक्षा के इंतजामों को दुरुस्त करने के दावे किये गये हैं.
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक हुई. बैठक में तय किया गया कि गांधी मैदान की सुरक्षा बढ़ायी जायेगी. मैदान में प्रवेश और निकास द्वार पर पुलिस की नजर रहेगी. मैदान में बड़े-बड़े वाच टावर लगाये जायेंगे. एक सोसायटी गठित करने की बात हुई, लेकिन इनमें से कुछ भी नहीं हो सका. सिवाय मैदान की बाउंडरी को ऊंचा करने के. एक साल बाद जब रावण वध कार्यक्रम में हादसा हुआ, तो मैदान की दीवार को ऊंचा और नुकिला बनाये जाने पर सवाल उठने लगा. अब सवाल सभी प्रवेश द्वार खोलने को लेकर है. गांधी मैदान रखरखाव व भीड़ के समय सुरक्षा की जिम्मेवारियों से अधिकारी भाग रहे हैं. किसी भी घटना के लिए सरकार आयोजकों को जिम्मेवार बना देती है जबकि मैदान आरक्षित करने के एवज में आयोजकों को भारी रकम भी चुकानी पड़ती है. इसके अतिरिक्त नगर निगम और पेसू की खींचतान के कारण गांधी मैदान में लगे बल्ब और ट्यूब लाइट जलते नहीं है. रावण वध हादसे की जांच रिपोर्ट सरकार को अब तक नहीं मिली, लेकिन हादसे का यह भी एक प्रमुख कारण बन कर सामने आया है.
10 लोगों की हुई थी मौत
27 अक्तू बर, 2013 की सुबह आठ बजे पटना जंकशन के प्लेटफॉर्म 10 पर विस्फोट के तार जब गांधी मैदान से जुड़ने लगे,तो प्रशासन की नींद हराम होने लगी. तीन घंटे बाद गांधी मैदान में नरेंद्र मोदी की चुनावी सभा होने वाली थी. लोग धीरे-धीरे मैदान तक पहुंचने लगे थे. नरेंद्र मोदी के सभा स्थल पहुंचने के पहले आतंकियों ने गांधी मैदान को अपने निशाने पर ले लिया था. करीब आधा दर्जन जगहों पर 20 से अधिक बम लगाये गये थे.