समस्तीपुर : छठ पर्व मनाने वालों में हर जगह महिलाओं की भागीदारी अधिक होती है, पर एक ऐसा भी गांव है, जहां भुवन भास्कर की उपासना केवल पुरुष करते हैं और वे ही घाट पर भी जाते हैं. यहां के छठ घाटों पर महिलाएं नहीं जाती हैं. मोरवा प्रखंड मुख्यालय से दस किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है यह गांव रघुनाथपुर. यहां परंपरागत रूप से पुरुष ही छठ पूजा की जिम्मेदारी का वहन करते रहे हैं.
सवाल आस्था का है, इसलिए इस परंपरा के टूटने की संभावना आने वाले वर्षों में दिखती भी नहीं है. ररियाही पंचायत के रघुनाथपुर गांव के 80 वर्षीय राजेश्वर प्रसाद सिंह उर्फ डाक बाबू बताते हैं कि उन्हें भी पता नहीं कि पुरुष ही इस गांव में कब से छठ पूजा करते आ रहे हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि छठ पूजा की महत्ता को देखते हुए और नियम में परिवर्तन से किसी अनिष्ट की आशंका के कारण इस परंपरा को तोड़ने का साहस किसी में नहीं है.
जानकी रमण सिंह और राम विनय सिंह ने अनुमान के आधार पर बताया कि महिलाओं के लिए पूर्व में परदा प्रथा भी पुरुषों द्वारा छठ पर्व किये जाने का कारण हो सकता है. उन्होंने कहा कि अब गांव की बच्चियां पढ़ रही हैं. परदा प्रथा टूट रही है. लेकिन परंपरा बरकरार है. तालाब पर केवल पुरुष ही पहुंचते हैं. पूजा देखने के लिए भी वहां परदानशी महिलाएं नहीं पहुंचतीं.
उन्होंने यह भी कहा कि छठ पर्व की जिम्मेदारी पुरुषों से पुरुषों तक ही पहुंचती है. जब कोई व्रती पुरुष अशक्त हो जाता है, तो वह अपने पुत्र या पौत्र को यह जिम्मेदारी सौंपता है. इस बार भी रघुनाथपुर में पुरुषों द्वारा ही छठ पर्व के अवसर पर सूर्य की उपासना की जा रही है. जब वे अर्घ देने गांव के तालाब पर पहुंचते हैं तो वहां एक अलग ही दृश्य होता है.