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झारखंड में नये शिक्षण संस्थानों की है दरकार

झारखंड में राज्य निर्माण के बाद विकास को आधार प्रदान करने के लिए न तो नये संस्थान खोलने पर ध्यान दिया गया और न ही पुराने संस्थानों के रिवाइवल का कोई प्रयास किया गया. राज्य में भ्रष्टाचार की जड़ें इतने कम दिनों में ही इतनी गहराई तक पहुंच गयीं, जिसका किसी को भी अनुमान न […]

झारखंड में राज्य निर्माण के बाद विकास को आधार प्रदान करने के लिए न तो नये संस्थान खोलने पर ध्यान दिया गया और न ही पुराने संस्थानों के रिवाइवल का कोई प्रयास किया गया. राज्य में भ्रष्टाचार की जड़ें इतने कम दिनों में ही इतनी गहराई तक पहुंच गयीं, जिसका किसी को भी अनुमान न था. इसका एक कारण लगातार अस्थिर सरकार, तो दूसरा एक सशक्त नेतृत्व का अभाव रहा है.

राजनीतिक स्थिरता के बिना किसी भी राज्य का विकास मुश्किल है. कौटिल्य से लेकर एडम स्मिथ तक ही नहीं, आधुनिक अर्थशास्त्रियों तक ने विकास के लिए स्थिर सरकार होना जरूरी बताया है. सारे अर्थशास्त्रियों और विद्वानों ने किसी भी देश-प्रदेश में निवेश और प्रगति के लिए शांति और स्थिरता को आवश्यक माना है. आज के संदर्भ में देखें, तो यह और भी ज्यादा जरूरी दिखता है. विकास को सिर्फ एक राज्य के विकास से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता है. इसी तरह शांति, निवेश, स्थिरता और प्रगति को भी व्यापक अर्थो में देखना होगा. एक छोटी सी जगह पर भी अशांति होती है, तो उसका प्रभाव दूरगामी होता है. ठीक उसी तरह से किसी छोटी जगह पर निवेश और विकास होने का प्रभाव भी दूरगामी होता है.

हालांकि सरकार की स्थिरता का मतलब यह नहीं माना जाना चाहिए कि सिर्फ पांच साल तक सरकार गिरे नहीं. सरकार की स्थिरता का मतलब विकास के लिए दूरगामी सोच, नये-नये आइडियाज से भी है. जरूरत के मुताबिक इनोवेशन करने और विकास को आधार प्रदान करनेवाली संस्थाओं को मजबूत करने से है.

जिन सपनों के साथ अलग राज्य के रूप में झारखंड का गठन हुआ था, वे डेढ़ दशक बाद भी पूरे नहीं हो पाये हैं. खनिज संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद झारखंड में बेकारी, गरीबी और बेरोजगारी दूर होने का नाम नहीं ले रही है. जीविका की तलाश में राज्य से पलायन की समस्या अब भी बनी हुई है. ट्रैफिकिंग की खबरें भी लगातार पढ़ने को मिलती रही हैं.

इन कारणों के पीछे भी गरीबी और बेरोजगारी ही है. अलग राज्य बनने के बाद भी झारखंड में इस दिशा में कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया. नये संस्थान नहीं खोले गये. जो पुराने संस्थान थे, उनके रिवाइवल का कोई प्रयास नहीं किया गया. भ्रष्टाचार की जड़ें इतने कम दिनों में ही इतनी गहराई तक पहुंच गयीं कि किसी को इसका अनुमान भी नहीं रहा. इसका एक कारण अस्थिर सरकार, तो दूसरा एक सशक्त नेतृत्व का अभाव रहा है. सशक्त एवं दूरदर्शी नेतृत्व के अभाव में उन संस्थानों के पुनर्निर्माण की दिशा में कोई खास पहल नहीं हुई, जिससे राज्य की व्यवस्था को मजबूत किया जा सके.

आज विभिन्न तरह की संस्थाओं का महत्व बढ़ा है. संयुक्त बिहार में रांची में पढ़ाई का वातावरण अच्छा था. लोग वहां दाखिला लेने आते थे. लेकिन राज्य निर्माण के बाद पिछले डेढ़ दशक में नये स्तरीय संस्थान खोलने की दिशा में कोई खास प्रगति राज्य में नहीं हुई है. राज्य के विकास के लिए सबसे जरूरी है कि इसे आधार प्रदान करनेवाली संस्थाओं का विकास हो. नये-नये संस्थान खोले जायें, तथा उनमें रिसर्च सहित पढ़ाई की बेहतर व्यवस्था हो.

आज स्थिर सरकार का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है कि पूरी दुनिया में आर्थिक प्रगति और सामाजिक विकास हो रहा है. तमाम सुधारों के लिए स्थिर सरकार का होना जरूरी है. हालांकि मैं यह भी कहना चाहूंगा कि सरकार केवल स्थिर ही नहीं हो, बल्कि स्थिरता के साथ ही सरकार के पास इनोवेशन, नये विचार और आगे बढ़ने का विजन भी होना चाहिए.

सरकार की अस्थिरता के चलते ही अलग राज्य बनने के बाद भी झारखंड की स्थिति नहीं सुधरी है. गठन के समय से ही अस्थिरता का जो दौर शुरू हुआ, वह आज तक चल रहा है. इसके कारण विकास के काम में बाधा पहुंची. अस्थिरता के चलते ही राज्य में आधारभूत संरचनाओं के विकास में देरी हुई. हालांकि झारखंड की अपनी भगौलिक स्थिति भी अलग है. राज्य पूरी तरह से नक्सलवाद की चपेट में है. इन कारणों से भी विकास के कई काम अधूरे रह गये होंगे, फिर भी यदि राज्य में स्थिर सरकार के साथ ही मजबूत नेतृत्व होता, तो राज्य की यह दुर्गति नहीं देखने को मिलती. राज्य में जो ग्रोथ हुआ भी है, उसका कारण यहां अवसर और संसाधनों की उपलब्धता रही है. यहां पर मिनरल और माइंस है, इसके कारण भी ग्रोथ रेट थोड़ा ठीक-ठाक रहा है. लेकिन, यदि राज्य में प्रगतिशील सोच की सरकार रहती, स्थिर सरकार रहती, तो आज झारखंड की तसवीर कुछ दूसरी होती. तब राज्य की विकास दर और यहां के आर्थिक विकास का चेहरा अलग होता.

इसलिए अब जरूरी है कि आगामी विधानसभा चुनाव के बाद झारखंड में एक मजबूत और स्थिर सरकार बने. यह सरकार जिसकी भी बने, प्रयत्नशील होकर नयी व्यवस्था बनाये. जो संस्थान राज्य के विकास में बाधक हैं, उनमें सुधार लाया जाये. राज्य में शिक्षा और कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधरे.

(आलेख बातचीत पर आधारित)

प्रो अलख नारायण शर्मा

निदेशक, इंस्टीटय़ूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट

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