बैंगलुरू में एक ऐसे व्यक्ति को गिरफ़्तार किया गया है जिसकी पत्नी को शादी के एक साल बाद पता चला कि उसका पति समलैंगिक है.
गिरफ़्तार व्यक्ति पेशे से इंजीनियर है और उसकी पहचान सार्वजनिक नहीं की गई है.
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत व्यक्ति की गिरफ़्तारी हुई है.
153 साल पुराने ब्रिटिश औपनिवेशक काल के इस क़ानून में समलैंगिक संबंधों के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान है.
पढ़िए पूरी रिपोर्ट
पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के एक फ़ैसले को पलट दिया था, जिसमें इस क़ानून को ग़ैर संवैधानिक करार दिया गया था.
बैंगलुरू के पुलिस उपायुक्त संदीप पाटिल ने बीबीसी हिंदी को बताया, "हमें ऐसा लगता है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद यह पहला मामला है."
गिरफ़्तार व्यक्ति ने नवंबर 2013 में शादी की थी. उसकी पत्नी पेशे से दंत चिकित्सक है.
लेकिन पति-पत्नी पहले छह महीने तक साथ नहीं रहे. वह मैसूर में थे और उनकी पत्नी बैंगलुरू में काम करती थीं.
सीसीटीवी फ़ुटेज
पुलिस के मुताबिक़ छह महीनों बाद उनका स्थानांतरण बैंगलुरू होने के बाद पति-पत्नी एक ही छत के नीचे रहने लगे. लेकिन वे अलग-अलग कमरों में सोते थे.
संदीप पाटिल ने कहा, "पत्नी को पति के शारीरिक संबंध न बनाने पर उसके व्यवहार पर संदेह हुआ. पत्नी का यह संदेह और बढ़ गया जब उसको लगा कि उसकी ग़ैर मौजूदगी में पति अपने पुरुष दोस्तों के साथ घर आता है."
उन्होंने कहा, "पत्नी ने घर में सीसीटीवी कैमरे लगा दिए, अप्राकृतिक सेक्स के सबूत जुटाए और पुलिस के पास अपनी शिकायत दर्ज़ कराई. हमने उसके पति को गिरफ़्तार कर लिया है."
व्यक्ति के माता-पिता के ख़िलाफ़ भी धोखाधड़ी की शिकायत की गई है. लेकिन पुलिस अधिकारियों ने कहा, "हमने उनकी गिरफ़्तारी नहीं की है क्योंकि अभी जाँच हो रही है."
दोषी कौन?
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (निमहांस) में मनोरोग चिकित्सक डॉक्टर विवेक बेनेगल को इस मामले को लेकर कोई हैरानी नहीं है.
उन्होंने कहा, "बहुत से ऐसे लोग हैं जिनको सामाजिक दबाव के चलते शादी के लिए मजबूर किया जाता है. वास्तव में समाज उनको कोई विकल्प नहीं देता."
वह कहते हैं, "इसमें पुरुष की भी ग़लती नहीं है. न ही महिला को दोषी ठहराया जा सकता है. हम केवल सामाजिक संरचना को दोष दे सकते हैं."
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता से जुड़े क़ानून में संशोधन करने या इसको रद्द करने का फ़ैसला संसद पर छोड़ दिया है. इस फ़ैसले पर काफ़ी बहस हुई थी.
कांग्रेस चाहती थी कि इस क़ानून को रद्द किया जाए लेकिन तब विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने इसका विरोध किया था.
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