बेहाल है उग्रवाद के खिलाफ खड़ा होनेवाला गांव कटासारू

गुमला : दो राज्य के बॉर्डर पर स्थित कटासारू मौजा राज्य के उन गांवों में है, जो उग्रवाद के खिलाफ सबसे पहले खड़े हुए थे. आजादी के बाद से आज तक यह गांव विकास की बाट जोह रहा है. आज तक किसी विधायक या सांसद के चरण इस गांव तक नहीं पहुंचे हैं. रायडीह प्रखंड […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 31, 2014 12:18 PM

गुमला : दो राज्य के बॉर्डर पर स्थित कटासारू मौजा राज्य के उन गांवों में है, जो उग्रवाद के खिलाफ सबसे पहले खड़े हुए थे. आजादी के बाद से आज तक यह गांव विकास की बाट जोह रहा है. आज तक किसी विधायक या सांसद के चरण इस गांव तक नहीं पहुंचे हैं. रायडीह प्रखंड के अंतर्गत पड़नेवाला यह गांव चारों ओर जंगल व पहाड़ से घिरा है. यह छत्तीसगढ़ व झारखंड का सीमावर्ती गांव है. यहां से ओड़िशा राज्य की सीमा भी निकट है. कटासारू के पड़ोस में छत्तीसगढ़ के कुस्तुबा, तेतरटोली व कठलडाड़ गांव है. ये तीनों गांव जशपुर जिले के आरा थाना में पड़ते हैं.

कटासारू और उसके पड़ोसी गांवों के बीच जमीन-आसमान का अंतर है. पड़ोसी गांवों में चकाचक सड़क है. कटासारू में सड़क की जगह गड्ढे हैं. कटासारू के लोग अपने विधायक व प्रशासनिक अधिकारियों तक पहुंच ही नहीं पाते. गांव के ओहमा तिग्गा व ऑरेन मिंज ने बताया कि 700 आबादीवाले कटासारू मौजा में केउंदडाड़, अंबाडाड़, टिपकापानी, कोइनारडाड़ व नवाटोली गांव आता है. यहां पानी, बिजली, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, सिंचाई साधन मुख्य समस्या है.

ग्रामीण विद्युतीकरण के तहत गड्ढा खोदा गया है, पर पोल व तार नहीं लगे. चापाकल है, तो खराब पड़े हैं. स्वास्थ्य उपकेंद्र नहीं है. कटासारू से सात किमी दूर कोंडरा गांव है. यहां डेढ़ करोड़ की लागत से नया अस्पताल बना है. लेकिन उसमें डॉक्टर नहीं रहते. किसी के बीमार होने पर कटासारू के लोग मरीज को 60 किमी दूर गुमला या फिर जशपुर जिला ले जाते हैं. गांव से कोई सार्वजनिक वाहन भी नहीं चलता. लोगों को बस लेने के लिए कोंडरा तक पैदल चल कर जाना पड़ता है.

मनरेगा योजना से बनी सड़क पर गड्ढे ही गड्ढे

कटासारू जाने के मार्ग पर मनरेगा से एकमात्र सड़क बना है. सड़क के ऊपर मोरम बिछा कर छोड़ दिया गया. बरसात में सड़क बह गया. अभी सड़क में गड्ढे हैं. पीएमजीएसवाइ से भी यहां सड़क बना है. वह भी टूटा हुआ है. गांव में आंगनबाड़ी केंद्र अधूरा है. लोगों का कहना है कि ठेकेदार ने काम नहीं किया पर पैसे ले लिए. आज आंगनबाड़ी गांव के स्कूल भवन में चलता है.

गांव के 50 परिवार चले गये दिल्ली

गांव के आनंद टोप्पो, पुनीत एक्का, ममता टोप्पो, पुरीयस टोप्पो, अजर टोप्पो, अभिषेक बाखला, सिलास, नीरोज तिग्गा सहित लगभग 50 परिवार गांव से पलायन कर गये हैं. इस कारण गांव के कई घरों में ताला लटका हुआ है. स्थानीय लोगों ने बताया कि सभी दिल्ली में मजदूरी कर आजीविका चला रहे हैं.

एक ही कुआं बुझाता है पूरे गांव का प्यास

गांव में सबसे बड़ी समस्या पानी की है. चापाकल लगाये गये थे, परंतु सभी खराब हैं. ग्रामीण खेत में स्थित दाड़ी कुआं से पानी पीते हैं. उसी कुंआ में कपड़ा व बर्त्तन भी धोया जाता है और बैलों को पानी पिलाया जाता है.

उग्रवाद के खिलाफ ग्रामीण एकजुट हैं

पांच छह माह पहले से इस क्षेत्र में उग्रवादियों की आवाजाही ज्यादा हो रही है. इसके बाद गांव के लोगों ने एकजुट होकर बैठक भी की है. लोगों ने फैसला किया है कि उग्रवादियों को गांव में नहीं घुसने देंगे. हालांकि प्रशासन को अब भी इसकी सुध नहीं है.

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