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झारखंड के विकास के लिए कुछ जरूरी कदम

सुनील सिन्हा,अर्थशास्त्री विकास सिर्फ संसाधनों की उपलब्धता से हासिल नहीं हो सकता है, इसके लिए दूसरे कारकों पर भी गौर करना होता है. झारखंड तीन क्षेत्रों को प्राथमिकता देकर काफी आगे जा सकता है. पहला, राज्य सरकार को शिक्षित वर्ग के लिए रोजगार के अवसर मुहैया कराने होंगे. इसके लिए मौजूदा शिक्षा नीति में बदलाव […]

सुनील सिन्हा,अर्थशास्त्री
विकास सिर्फ संसाधनों की उपलब्धता से हासिल नहीं हो सकता है, इसके लिए दूसरे कारकों पर भी गौर करना होता है. झारखंड तीन क्षेत्रों को प्राथमिकता देकर काफी आगे जा सकता है. पहला, राज्य सरकार को शिक्षित वर्ग के लिए रोजगार के अवसर मुहैया कराने होंगे.
इसके लिए मौजूदा शिक्षा नीति में बदलाव करना होगा, ताकि अधिक से अधिक छात्रों को रोजगारपरक शिक्षा हासिल हो सके.
किसी भी राज्य के विकास में कई महत्वपूर्ण कारक काम करते हैं, लेकिन इनमें सबसे बड़ा कारक है कानून-व्यवस्था की बेहतर स्थिति. कोई भी निवेशक सबसे पहले अपनी संपत्ति की सुरक्षा चाहता है. इसलिए कानून-व्यवस्था की स्थिति को सुधार कर निवेशकों को सुरक्षा के प्रति आश्वस्त करना जरूरी होता है. सिर्फ माहौल बना कर निवेश नहीं बढ़ाया जा सकता है.
बेहतर कानून-व्यवस्था के बिना कोई भी राज्य आर्थिक पैमाने पर विकास की रफ्तार नहीं पकड़ सकता है, चाहे निवेश के लिए वहां की सरकारी नीतियां कितनी भी आकर्षक क्यों न हों. जाहिर है, मौजूदा समय में विकास के लिए जरूरी है निजी पूंजी निवेश और निजी पूंजी निवेश को आकर्षित करने के लिए जरूरी है चुस्त प्रशासन.
झारखंड में कानून-व्यवस्था का मसला बेहद गंभीर है, इसलिए निवेश के लिए माहौल नहीं है. उम्मीद थी कि बिहार से अलग होने के बाद झारखंड विकास की नयी ऊंचाइयों पर पहुंचेगा, लेकिन गठन के कुछ वर्षो के बाद ही उम्मीदें टूटने लगीं. प्राकृतिक संसाधनों के मामले में देश का सबसे अव्वल राज्य सबसे गरीब राज्यों की कतार में खड़ा हो गया है. यह पिछड़ापन सिर्फ आर्थिक पैमाने पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी साफ दिखाई देता है.
इसलिए यह पड़ताल जरूरी है कि आखिर खनिज संपदा के मामले में सबसे अमीर राज्य की दुर्दशा की वजह क्या है? इसका सबसे बड़ा कारण है राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार. अपने गठन के बाद से ही राज्य में स्थायी सरकार का गठन नहीं हो पाया है. राजनीतिक अस्थिरता के कारण नीतियों में समग्रता नहीं आ पाती है और विकास पर असर पड़ता है.
विकास का मतलब सिर्फ औद्योगिक नीतियों का निर्माण करना नहीं होता है, बल्कि पूंजी को आकर्षित करने के उपायों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है. झारखंड में पिछले डेढ़ दशक में जो सरकारें बनीं, उनमें दिशाहीनता दिखती रही है. राजनीतिक अस्थिरता के कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता रहा है. भ्रष्टाचार के कारण झारखंड में निवेश प्रभावित हुआ है.
विकास सिर्फ संसाधनों की उपलब्धता से हासिल नहीं हो सकता है, बल्कि इसके लिए दूसरे महत्वपूर्ण कारकों पर भी गौर करना होता है. झारखंड तीन क्षेत्रों को प्राथमिकता देकर काफी आगे जा सकता है. पहला, राज्य सरकार को शिक्षित वर्ग के लिए रोजगार के अवसर मुहैया कराने होंगे. इसके लिए मौजूदा शिक्षा नीति में बदलाव करना होगा, ताकि अधिक से अधिक छात्रों को रोजगारपरक शिक्षा हासिल हो सके. यही शिक्षित वर्ग वित्तीय, बैंकिंग और व्यापार की स्थिति को आगे बढ़ाने में सहायक होगा. दूसरा, बड़े उद्योगों को आकर्षित करने के लिए बिजली, सड़क जैसी बुनियादी जरूरतों को बेहतर करना होगा.
राज्य अपने यहां सर्विस क्षेत्र का भी विकास कर सकता है, लेकिन इसके लिए भी शिक्षित वर्ग की जरूरत होगी. तीसरा, समग्र विकास के लिए राज्य सरकार को कृषि के विकास पर भी ध्यान देना होगा, क्योंकि राज्य की अधिकतर आबादी कृषि पर ही आश्रित है. कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है. कृषि संबंधित उद्योगों के विकास की भी राज्य में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन संभावनाओं के दोहन के लिए बेहतर माहौल बनाना होगा.
फिलहाल झारखंड में हालात प्रतिकूल हैं. एक ओर नक्सलवाद है, तो दूसरी ओर खराब इंफ्रास्ट्रक्चर. ऐसे हालात में संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद बड़े उद्योगों की स्थापना नहीं की जा सकती है. राज्य के अधिकतर जिले नक्सलवाद से प्रभावित हैं. इन क्षेत्रों में विकास की रोशनी पहुंचा कर इसे काबू में किया जा सकता है. उदाहरण भी सामने हैं. झारखंड के साथ बने छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड ने तमाम परेशानियों के बावजूद बेहतर तरक्की की है.
छत्तीसगढ़ में भी नक्सली समस्या है, पर राजनीतिक स्थिरता के कारण कई पैमानों पर राज्य ने झारखंड के बरक्स अच्छी तरक्की की है. तमाम कठिनाइयों के बावजूद छत्तीसगढ़ बिजली और सड़क के मामले में झारखंड से काफी बेहतर स्थिति में है. उधर, उत्तराखंड भी अपने सीमित संसाधनों के बावजूद झारखंड के मुकाबले अच्छी स्थिति में है.
मेरा मानना है कि जिस उद्देश्य से झारखंड राज्य का गठन किया गया, वह हासिल नहीं हो पाया. इसके लिए वहां के राजनीतिक दल जिम्मेवार हैं. राज्य गठन के बाद से हजारों करोड़ रुपये के एमओयू पर हस्ताक्षर किये गये, लेकिन इनमें से अधिकतर धरातल पर नहीं उतर पाये. इसका नुकसान झारखंड को उठाना पड़ा है. सरकार की लेटलतीफी के कारण कई निजी कंपनियों ने अपनी योजनाओं को लागू करने से हाथ खींच लिये. सरकार किसी भी दल की हो, विकास योजनाओं से संबंधित नीतियों में निरंतरता होनी चाहिए.
दरअसल, गठन के बाद से ही झारखंड को राजनीतिक दूरदर्शिता की कमी का खामियाजा भुगतना पड़ा है. यह राज्य विकास की बजाय अन्य नकारात्मक कारणों से सुर्खियां हासिल करता रहा है. इन नकारात्मक खबरों का असर यहां के विकास पर पड़ा है. विकास को गति देकर झारखंड न सिर्फ अपने यहां से लोगों के पलायन को रोक पाने में कामयाब हो सकता है, बल्कि नक्सलवाद जैसी समस्या पर भी काबू पाने में सफल हो सकता है.
(आलेख बातचीत पर आधारित)

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