राजनीति में राजपरिवार भी दिखा चुके हैं दम
रांची : झारखंड का राज घराना आजादी के बाद से ही सक्रिय राजनीति में हिस्सेदार रहा है. हजारीबाग का पदमा राजघराना, रामगढ़ घराना, सरायकेला, खरसावां गढ़, पालकोट महाराज, रातू महाराज, कतरासगढ़, चक्रधरपुर राज परिवार, नगर ऊंटारी गढ़ के प्रभावी सदस्यों ने 1951 के चुनाव से लेकर 2005 तक के चुनाव में अपनी सक्रियता दिखा कर […]
रांची : झारखंड का राज घराना आजादी के बाद से ही सक्रिय राजनीति में हिस्सेदार रहा है. हजारीबाग का पदमा राजघराना, रामगढ़ घराना, सरायकेला, खरसावां गढ़, पालकोट महाराज, रातू महाराज, कतरासगढ़, चक्रधरपुर राज परिवार, नगर ऊंटारी गढ़ के प्रभावी सदस्यों ने 1951 के चुनाव से लेकर 2005 तक के चुनाव में अपनी सक्रियता दिखा कर विधानसभा की दहलीज पर कदम रखा. अधिकतर चुनाव में राजघराने की नजदीकी कांग्रेस पार्टी के साथ ही रही. अविभाजित बिहार में 1990, 1995 और 2000 के चुनाव में राजघराने का प्रतिनिधित्व नहीं हो सका था. पर सबसे अधिक भागीदारी हजारीबाग के पदमा राजघराने की रही है.
1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी की टिकट से कामख्या नारायण सिंह ने बड़कागांव, बगोदर, पेटरवार और गोमिया विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी. चार विधानसभा सीट से निर्वाचित होकर इन्होंने कई रिकार्ड भी बनाये थे. इनके भाई बसंत नारायण सिंह ने हजारीबाग विधानसभा सीट से सदन तक पहुंचने में सफलता हासिल की थी. 1957 में सरायकेला घराने से आये आदित्य प्रताप सिंह देव और छोटानागपुर राज परिवार के चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव ने रांची सदर से जीत हासिल की थी. इस चुनाव में जनता पार्टी से कामाख्या नारायण सिंह ने गिरिडीह और चतरा से, बगोदर से विजय राजे ने चुनाव जीता था.हजारीबाग के पदमा राजघराने का यह प्रदर्शन 1962 में भी जारी था. 1962 के चुनाव में कामख्या नारायण सिंह ने बरही, नंद किशोर सिंह ने चौपारण से जीत हासिल की.
छोटानागपुर राज परिवार घराने के अंबिका नाथ शाहदेव, सरायकेला घराने के प्रभात कुमार आदित्य देव और नृपेंद्र नारायण सिंह देव तथा नगरऊंटारी गढ़ के शंकर प्रताप देव और देव लाल जगधारी नाथ शाहदेव ने पांकी से जीत हासिल कर राज घराने के प्रभुत्व को बरकरार रखा था. सरायकेला विधानसभा सीट को छोड़ सभी ने स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था. 1967 में भी नगर ऊंटारी गढ़, हजारीबाग घराना और सरायकेला घराने का असर जारी रहा. ईचागढ़ से सरायकेला घराने के आरएके देव ने कांग्रेस की सीट से चुनाव जीता. बरही से आइजेएन सिंह ने झारखंड क्रांति दल के नाम से चुनाव जीता. चतरा से कामख्या नारायण सिंह ने चौथी बार चुनाव जीता. 1972 में एक बार फिर ईचागढ़ से सरायकेला घराने के शत्रु आदित्य देव, नगरऊंटारी गढ़ के शंकर प्रताप देव ने कांग्रेस और हजारीबाग घराने के बसंत नारायण सिंह ने चुनाव जीता था.
1977 में बरही से हजारीबाग घराने की ललिता राज्य लक्ष्मी ने चुनाव में जीत हासिल की थी. 1980 में नगर ऊंटारी गढ़ के शंकर प्रताप देव और बरही से निरंजन प्रसाद सिंह ने राज परिवार की लाज बचायी. 1985 में सरायकेला घराने के प्रभात केए देव ने ईचागढ़ से चुनाव जीता. इसके बाद छोटानागपुर महाराज से जुड़े गोपाल शरण नाथ शाहदेव ने 2000 और 2005 में लगातार दो बार निर्वाचित होकर राजनीति में अपनी भूमिका निभायी. इसी घराने के अजय नाथ शाहदेव ने चुनाव लड़ा, पर सफलता नहीं मिली. इन दोनों चुनाव में हजारीबाग के पदमा राज घराने के सौरभ नारायण सिंह ने भी बाजी मारी थी. एक बार फिर नगर ऊंटारी गढ़ के अनंत प्रताप देव ने भवनाथपुर से कांग्रेस की टिकट पर जीत हासिल की.