कांग्रेस का गौरव अभी तुरंत वापस होने वाला नहीं है : एलपी शाही

कांग्रेस केबुजुर्गनेता एलपी शाही से हाल में प्रभात खबर डॉट कॉम के लिए रवि शंकर ने कांग्रेस के भविष्य, परिवारवाद, बिहार की राजनीति, बिहार में लालू प्रसाद व नीतीश कुमार की राजनीति सहित कई बिंदुओं पर विस्तृत बात की. हाल में अपना 95वां जन्मदिन मनाने वाले एलपी शाही ने माना कि देश की राजनीति में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 4, 2014 5:43 PM

कांग्रेस केबुजुर्गनेता एलपी शाही से हाल में प्रभात खबर डॉट कॉम के लिए रवि शंकर ने कांग्रेस के भविष्य, परिवारवाद, बिहार की राजनीति, बिहार में लालू प्रसाद व नीतीश कुमार की राजनीति सहित कई बिंदुओं पर विस्तृत बात की. हाल में अपना 95वां जन्मदिन मनाने वाले एलपी शाही ने माना कि देश की राजनीति में कांग्रेस के अच्छे दिन तुरंत नहीं आने वाले हैं. वे मानते हैं कि राजनीतिक नेतृत्व हासिल करने के लिए किसी मुद्दों को प्रमुखता व पूरे दमखम से उठाना जरूरी है. उनका आकलन है कि बिहार की राजनीति जल्द जाति के चक्र से बाहर नहीं आयेगी और लालू प्रसाद व नीतीश कुमार का साथ बहुत लंबे समय तक नहीं चलेगा. पढिए बातचीत कासंपादितअंश :

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस आज क्यों राष्ट्रीय राजनीति में हाशिये पर है?

नेतृत्व की कमी. नेतृत्व एक भावनात्मक मुद्दा है. जब पाकिस्तान और बांग्लादेश एक साथ थे तब कैसे मुजीबुर रहमान बहुमत मे आ गए . नेतृत्व जब एक मुद्दा उठाती है और जब वह मुद्दा अपना प्रभाव दिखाता है तब ही जनता उसे वोट देती है.

क्या आपको लगता है कि कांग्रेस अब अपने सिद्धांतों पर कायम नहीं रही?

कांग्रेस की जो अभी राजनीति है वह अभी अपने सिद्धांतों से थोडी दूर हो गयी है

इसका मुख्य कारण क्या है?

किसी व्यक्ति विशेष को आगे लाने में मुद्दे नजरअंदाज हो जाते हैं. चुकी बिहार में कांग्रेस 24 साल से शासन से दूर है और यह मान लेना की कांग्रेस में जो समर्पित लोग हैं वह 60 वर्ष की उम्र सीमा पार चुके हैं और आप खोज रहे हैं नया. जो नया है वो तो अपने अपने काम मे लगा हुआ है. वो बगल से राजनीति में आ जाता है. इसलिए कांग्रेस में युवा तुर्क की दिक्कत है बिहार में.

आखिर क्यों कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले बिहार में कांग्रेस का कोई नामलेवा नहीं है? और उसे राजद जैसी पार्टियों के साथ समझौता करना पड़ रहा है?

केंद्र ने अपने बने रहने के लिए बिहार में राजद जैसे पार्टी से समझौता किया है और राजद अपना बहुरु पिया रूप धारण किये हुए है. लालू जब दिल्ली में नरसिम्हा राव के सामने जाते थे कहते थे की सब आपही का है सब बेटा बेटी को बोलते थे की प्रणाम करो बाबा को. और जब कांग्रेस को जरूरत पडी तब किसी ने साथ नहीं दिया. कांग्रेस ने उस वक्त जनता दल के कुछ लोग और छोटानागपुर के कुछ लोगों को मिला कर अपनी सरकार बचाई थी.

क्या आप को ऐसा नहीं लगता है की इसमें मोदी लहर का असर है?

हाँ, अभी जो मजबूरी है वह वाकई मोदी लहर की वजह से है.

कांग्रेस का गौरव किस तरह पुन: प्राप्त किया जा सकता है?

अभी तुरंत प्राप्त होने वाला नहीं है.

वंशवाद की परंपरा ने कांग्रेस को कितना नुकसान पहुंचाया है?

देखिये वंशवाद केवल अखबारी शब्द है. कश्मीर जब तक आपके साथ है जब तक शेख अब्दुल्लाह का परिवार आपके साथ है. वंशवाद का सवाल है तो उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव हैं तो उनके पुत्र भी हैं. खुद अध्यक्ष हैं तो बेटा मुख्यमंत्री है. हरियाणा मे देवीलाल थे उनके पुत्र ओमप्रकाश चौटाला भी हैं. भजन लाल थे तो आज उनका बेटा है. महाराष्ट्र में शरद पवार हैं तो उनकी बेटी है. वंशवाद इस भारत देश में यूरोपीय देशों के नजरिये से नहीं देखा जा सकता. हां यहाँ वंशवाद है. सिर्फ कांग्रेस में ही नहीं है सभी पार्टियों में है. बीजू पटनायक थे तो आज नवीन पटनायक हैं. हाँ बंगाल इससे अछूता है.

क्या आपको ऐसा नहीं लगता है कि भाजपा में वंशवाद नहीं है?

अभी तक भाजपा में वंशवाद नहीं है आगे का पता नहीं.

गांधी-नेहरू परिवार से इतर किसी व्यक्ति की कांग्रेस में क्यों नहीं चलती?

गांधी चले गए बहुत से मूल्यों को साथ ले कर चले गए. उनके बाद नेहरू आये. नेहरू प्रधानमंत्री से ज्यादा एक दार्शनिक थे. मेरी समझ से इस देश में प्रभावी प्रधानमंत्री केवल इंदिरा गांधी ही रहीं. शायद आप जानते हो या पढे भी हों निक्सन का सलाहकार एक यहूदी था. उसने अमेरिका और चीन को बातचीत के लिये तैयार भी कर लिया था. इंदिरा गांधी बांग्लादेश गठन से पहले रूस और फ्रांस के अधिकारियों और मंत्रियों से मिली थीं, उन्हे फ्रेंच और रूसी भाषा की अच्छी जानकारी थी. और, वह अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन से भी मिलना चाहती थी, पर निक्सन का व्यवहार एक पुलिस अधिकारी जैसा था. इंदिरा गांधी निक्सन से मिलने तय समय पर पहुंचीं. निक्सन ने उन्हें मिलने के लिए इंतजार करवाया. उन्होंने खबर भी किया फिर भी निक्सन ने उन्हें इंतजार करवाया. यह बात समझ कर वह एक खूंखार शेरनी की तरह मुडी. यह किसी और नहीं बल्किनिक्सन के सहायक की भाषा थी और फिर बांग्लादेश का निर्माण किया. जहां तक वंशवाद का सवाल है वो भी तो नेहरू की ही बेटी थीं. उनके बेटे संजय और राजीव हुए. जब राजीव ने कंप्यूटर की चर्चा संसद में की तो उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी और भी बडे नेता ने राजीव को बच्चा कहा और जो राजनीति का कुछ नहीं जनता और कंप्यूटर की बात करता है. आज उसी कंप्यूटर के वजह से आप सुपर पावर के नाम से जाने जाते हैं.

जब आपकी बहू वीणा शाही ने जदयू ज्वाइन किया था, तो आपको कैसा महसूस हुआ था?

मेरी बहू ने जब जदयू या राजद ज्वाइन किया तो मेरे से पूछ कर ज्वाइन नहीं किया. वह स्वतंत्र राजनीति करती हैं. राजनीति में सब स्वतंत्र हैं.

आखिर एक कांग्रेसी की बहू को जदयू की शरण में क्यों जाना पड़ा?

यह तो उनसे ही पूछिये की उनको क्यों जाना पड़ा.

क्या बिहार को कभी जातिवादी राजनीति से मुक्ति मिलेगी?

नहीं बिहार को अभी निकट भविष्य में जातिवाद से छुटकारा नहीं मिल पायेगा.

क्या आपको ऐसा लगता है कि बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव की जोड़ी ज्यादा दिनों तक साथ चलेगी?

नहीं. लालू बोलेंगे की हमको ज्यादा सीट चाहिए. नीतीश के भी अपने दावे हैं. भाजपा को रोकने के लिए लोगों ने नीतीश कुमार को वोट किया. अगर लालू व नीतीश के बीच यही हाल रहा तो यह ज्यादा लम्बा चलने वाला मेल नहीं है. शायद एक चुनाव चल जाये तो चल जाये, लेकिन आगे नहीं चल पायेगा.

क्या नीतीश ने वाकई मे बिहार का विकास किया है?

देखिये सडकों का विकास नीतीश ने किया और स्कूल बनवाया. जहां तक सरकार का सवाल है एक जमीन आइआइटी को लॉ यूनिवर्सिटी के लिए दिया. एक मेडिकल कॉलेज को और एक लेकिन आपको सुनकर आश्चर्य होगा की बिहार से छोटा और गरीब राज्य ओडिसा है वहां 150 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं और बिहार में महेश बाबू ने मुजफ्फरपुर में खोला. मैंने भागलपुर में खोला उसके बाद सरकारी सेक्टर में कोई नहीं है. पटना का इंजीनियरिंग कॉलेज तो बहुत पहले से है और पटना इंजीनियरिंग कॉलेज भी क्या है ब्रिटिश सरकार ने 1887 में वहां जमीन सर्वे का इंस्टिट्यूट खोला था जमीन जांचने वालों के लिए आज उसी जगह पर पटना इंजीनियरिंग कॉलेज है. बेतिया मे मेडिकल कॉलेज खुला है उसमे आज तक स्टाफ नहीं है. पॉलीटेक्निक कॉलेज जो भी खुला वो 1952 से 1960 तक खुला उसके बाद सब कागज पर ही है.

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