सार्थक का मोबाइल खराब हो गया था. वह नया मोबाइल लेना चाह रहा था. उसने करीब 10 दिन जैसे-तैसे निकाले, फिर तंग आ कर अपना बजट देख कर 10 हजार रुपये का एक मोबाइल खरीद लिया. नया मोबाइल पा कर वह बहुत खुश था. अब उसे कोई समस्या नहीं थी. वह बड़े मजे में था.
कुछ दिनों बाद ही सार्थक के एक दोस्त ने 25 हजार का फोन खरीद लिया. उसने दोस्तों के ग्रुप में सभी को यह फोन दिखाया. दोस्तों ने सार्थक को ताना मारते हुए कहा, ‘यार, तुङो भी यही फोन लेना चाहिए था. क्या घटिया फोन उठा लाया तू भी.’ सार्थक को यह बात बहुत बुरी लगी. उसके भीतर जलन की भावना आ गयी. अब उसे अपना फोन खराब लगने लगा. वह बार-बार कहने लगा, ‘यार, इससे तो अच्छे फोटो भी नहीं आते. यह तो बार-बार हैंग होता है.’
दो महीने के अंदर सार्थक ने 27 हजार का फोन ले लिया. इसके लिए उसने अपना मोबाइल बेचा, अपने अकाउंट में बड़ी मेहनत से जमा किये 10 हजार रुपये मिलाये और कुछ रुपये दोस्त से उधार लिये. अब वह भी दोस्तों के बीच मोबाइल दिखाने ले गया. सभी ने यह महंगा मोबाइल हाथ में ले-लेकर देखा, उससे फोटो खींचे और उसकी खूब तारीफ की. अब सार्थक बड़ा खुश था. उसने 25 हजार के मोबाइल वाले दोस्त को हरा दिया था.
उसके पास दोस्तों के ग्रुप में सबसे बेहतरीन फोन था. दो दिन बाद ही सार्थक के पिता का एक्सीडेंट हो गया. उन्हें अस्पताल में एडमिट करना पड़ा. पिता के अकाउंट से पूरे रुपये खर्च हो गये. अब बारी सार्थक के रुपये खर्च करने की थी, लेकिन उसके पास महंगे मोबाइल के अलावा कुछ भी नहीं था. जिस एकमात्र दोस्त से वह रुपये मांग सकता था, उससे वह पहले ही मोबाइल के लिए उधार ले चुका था. जब उसे कुछ सूझा नहीं, तो सार्थक ने अपना मोबाइल बेचा और पिता का इलाज करवाया. अब उसके पिता ठीक है और सार्थक के पास तीन हजार रुपये वाला सिंपल मोबाइल है.
ऐसे कई लोग आपको भी अपने आसपास दिख जायेंगे, जो दूसरों की देखा-देखी महंगी चीजें खरीदते हैं. फिर भले ही उसके लिए उन्हें उधार ही क्यों न लेना पड़े.
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