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राजनीति के मंच पर कलाकारों की हो रही अच्छी पूछ
विवेक चंद्र रांची : चुनावी मौसम में झारखंड में कलाकारों को महत्व मिल रहा है. न.. न.. किसी मुगालते में न रहें. यहां किसी मुंबइया कलाकार की बात नहीं हो रही. हम खालिस झारखंडी कलाकारों की बात कर रहे हैं. झारखंडी फिल्मों में दिखनेवाले चेहरे व नुक्कड़ नाटक करनेवाले कलाकारों की टोली की बात कर […]
विवेक चंद्र
रांची : चुनावी मौसम में झारखंड में कलाकारों को महत्व मिल रहा है. न.. न.. किसी मुगालते में न रहें. यहां किसी मुंबइया कलाकार की बात नहीं हो रही. हम खालिस झारखंडी कलाकारों की बात कर रहे हैं. झारखंडी फिल्मों में दिखनेवाले चेहरे व नुक्कड़ नाटक करनेवाले कलाकारों की टोली की बात कर रहे हैं. चुनाव के समय राजनीति के मंच पर इन कलाकारों की अच्छी पूछ है. सभा में भीड़ जुटाने के लिए नृत्य करवाना हो या फिर नुक्कड़ नाटक के माध्यम से गांव-गांव तक पहुंच बनानी हो, सभी राजनीतिक दल राज्य के कलाकारों का खूब उपयोग करते हैं.
नहीं मिलता दो वक्त पेट भरने लायक भी पैसा
चुनाव प्रचार के मौसम में जब बैनर-पोस्टर पर लाखों फूंके जा रहे हैं, तब भी राज्य के कलाकारों का भाव मिलनेवाला ही है. कई दिनों की मेहनत और विपरीत परिस्थितियों में काम करने के बावजूद कलाकारों को दो वक्त पेट भरने लायक भी रकम नहीं मिल पाती. गांव-गांव घूम कर राजनीतिक दलों का प्रचार करने के एवज में कलाकार को प्रतिदिन 100-150 रुपये ही मिलते हैं. वहीं छऊ या पारंपरिक झारखंडी नृत्य करने के लिए पूरे दल को कुल मिला कर हजार रुपये भी नहीं दिये जाते.
एड फिल्म में अभिनय के पांच सौ
चुनाव प्रचार के लिए लगभग सभी राजनीतिक दलों ने स्थानीय कलाकारों को लेकर एड फिल्म भी तैयार करायी है. 30 सेकंड से एक मिनट तक की इन एड फिल्मों के लिए कलाकार दो से तीन दिनों तक काम करते हैं. कलाकारों को उनके मेहनताने के रूप में प्रति एड फिल्म केवल पांच सौ रुपये मिलते हैं. कुछ सीनियर कलाकारों को हजार रुपये तक भी दिये जाते हैं. कोरस के रूप में काम करनेवाले कलाकार मुफ्त में काम कर रहे हैं. इन्हें सिर्फ ब्रेक देने का आश्वासन दिया जाता है.
चकाचक हैं एड, इवेंट और पीआर एजेंसियां
चुनावी मौसम में कलाकारों को भाड़े देनेवाले इवेंट, पीआर और एड एजेंसियों की चांदी हो गयी है. कलाकारों की डिमांड एजेंसियां खूब भुना रही हैं. हालांकि इसका लाभ कलाकारों को नहीं मिलता है. एड एजेंसियां राजनीतिक दलों से कलाकारों की डील फाइनल करती है. प्रचार और नुक्कड़ नाटक के लिए ज्यादा दिनों तक बाहर से लाकर कलाकारों को रखना काफी खर्च का काम है. इस वजह से कंपनियां स्थानीय कलाकारों की तलाश में निकलती हैं. स्थानीय कलाकार बिल्कुल रियायती दर पर काम करने को तैयार हो जाते हैं. इस तरह से राजनीतिक दलों से मिलने वाली मोटी रकम में से कलाकारों को केवल चंद रुपये का मेहनताना ही मिल पाता है.
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