जम्मू-कश्मीर की 12वीं विधानसभा के लिए 25 नवंबर से चुनाव होंगे. चुनाव आयोग के अनुसार राज्य की कुल 87 सीटों के चुनाव पाँच चरणों में संपन्न होंगे.
राज्य में सत्तारूढ़ दल नेशनल कांफ्रेंस सहित कई अन्य समहूों की अनिच्छा के बावजूद चुनाव आयोग ने राज्य में चुनाव की घोषणा कर दी.
राज्य में बहुत से लोगों का मानना है की बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा के कुछ ही दिन बाद चुनाव कराना उचित नहीं है.
वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राज्य में अपने दम पर सरकार बनाने का मंसूबा जाहिर किया है.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी ने आम चुनाव में मिली जीत का रिकॉर्ड महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों में भी क़ायम रखा है.
देश की बदली हुई राजनीतिक फिजा के चलते इस चुनाव में कई चीज़ें राज्य में पहली बार होती दिख रही हैं.
पढ़ें रिपोर्ट विस्तार सेः सभी सीटों पर भाजपा
भाजपा पहली बार जम्मू-कश्मीर की सभी विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी उतार रही है.
यानी कश्मीर घाटी की 46, जम्मू की 37 और लद्दाख की चार सीटों पर भाजपा इस बार चुनावी मैदान में होगी.
कश्मीर की सभी सीटें मुस्लिम बहुसंख्यक हैं तो जम्मू की कुछ सीटों को छोड़कर बाक़ी सीटें हिंदू बहुसंख्यक हैं.
पार्टी के इस निर्णय पर भाजपा के जम्मू-कश्मीर इकाई के प्रवक्ता निर्मल गुप्ता कहते हैं, "लोग वर्तमान सरकार से बहुत दुखी हैं. उन्होंने बाक़ी सभी विकल्प आजमा लिए हैं. इसलिए इस बार भाजपा ने राज्य में मिशन 44+ (बहुमत के लिए ज़रूरी सीटें) का नारा देते हुए सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने का फ़ैसला किया."
2002 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 58 उम्मीदवार खड़े किए थे और एक सीट पर उसे जीत मिली थी. 2008 में पार्टी ने 64 उम्मीदवार उतारे जिनमें से 11 सीटों पर जीत मिली. भाजपा ने 2002 और 2008 के चुनाव में जम्मू की सभी 37 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए गए थे.
दिसंबर 2008 में चुनाव से कुछ पहले ही अमरनाथ स्थापना बोर्ड को आवंटित सरकारी ज़मीन को वापस लेने के विरुद्ध हिन्दू बहुल जम्मू क्षेत्र में तीन महीने तक आंदोलन चला था.
आंदोलन के बाद हुए चुनाव में भाजपा ने जम्मू में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए यहाँ की 11 सीटों पर जीत हासिल की.
निर्मल गुप्ता कहते हैं, "नरेंद्र मोदी की लहर की वजह से हम राज्य में पहली भाजपा सरकार बनाने को तैयार हैं."
हालाँकि पार्टी के कुछ सूत्रों का कहना है कि राज्य में कुछ अन्य राजनीतिक दलों के साथ गठजोड़ की बात भी चल रही है.
फारुख़ अब्दुल्लाह की ग़ैर-मौजूदगी
राज्य में प्रमुख दल और सत्ताधारी गठबंधन का नेतृत्व कर रही नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) के अध्यक्ष फारुख़ अब्दुल्लाह इन चुनाव में प्रचार नहीं करेंगे. वह लंदन में अपना इलाज करवा रहे हैं.
फारुख़ अब्दुल्लाह तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. फारुख़ अपने दल में एक करिश्माई नेता माने जाते हैं जो आसानी से वोट जुटा सकते हैं.
उनकी ग़ैर-मौजूदगी में उनके बेटे और राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह को अकेले दम पर चुनावी समर में उतरना होगा.
उमर कहते हैं, "मैं अपने पिता से टेलीफ़ोन पर सलाह लेता हूँ लेकिन उनका चुनाव के समय मौजूद न होना हमारे लिए बहुत बड़ी कमज़ोरी है. ऐसी स्थिति में मुझे ख़ुद सभी 87 निर्वाचन क्षेत्रों में जाना पड़ेगा."
राज्य में गठबंधन सरकार चलाने वाले नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं.
नरेंद्र मोदी की रैलियाँ
इस विधानसभा चुनाव में पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग भागों में चार-पांच चुनावी रैलियाँ करेंगे.
निर्मल गुप्ता कहते हैं, "अभी इन रैलियों की तारीख तय नहीं हुई है लेकिन प्रधानमंत्री राज्य के अलग-अलग क्षत्रों में चार-पाँच रैलियाँ करेंगे."
निर्मल गुप्ता का कहना है कि मोदी की रैलियों से पार्टी को ताकत और वोट दोनों मिलेंगे.
मोदी के अलावा केंद्र और राज्यों के कई भाजपा नेता यहाँ चुनाव प्रचार से जुड़े हैं.
त्रासदी के बाद
जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव किसी प्राकृतिक त्रासदी के कुछ ही समय बाद हो रहे हैं. सितंबर के पहले सप्ताह में आई भीषण बाढ़ ने राज्य में लगभग 300 लोगों की जान ली और विशाल तबाही कर दी.
हज़ारों मकान क्षतिग्रस्त हो गए, जिससे हज़ारों लोग बेघर हो गए. हर तरफ तबाही का दृश्य था. सरकार के सामने इस त्रासदी से उत्पन्न राहत और पुनर्वास की चुनौतियों के चलते चुनाव के बारे में सोचना भी मुश्किल था.
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह चाहते थे कि चुनाव टाल दिए जाएं लेकिन अन्य राजनीतिक पार्टियों का कहना था की उमर अपनी अलोकप्रियता के चलते बहाने बना रहे हैं और चुनाव समय पर होने चाहिए.
चुनाव आयोग ने भी अपने कई दौरों के बाद निर्णय लिया कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव हो सकते हैं. इस दिशा में उच्चतम न्यायालय ने भी हाल ही में आदेश दिया है कि चुनाव प्रक्रिया के साथ-साथ राहत और पुनर्वास का काम भी चलते रहना चाहिए और इसे आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन नहीं मानना चाहिए.
गाँधी परिवार
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव प्रचार में शायद पहली बार ऐसा हो रहा है कि कांग्रेस की राज्य इकाई अपने केंद्रीय नेताओं, ख़ासकर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को प्रचार के लिए बुलाने की बात नहीं कह रही.
अभी तक चुनाव प्रचार का ज़िम्मा मुख्य रूप से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य सभा में विपक्ष के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद पर है.
प्रचार मुहिम में आज़ाद का साथ दे रहे हैं प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सैफुद्दीन सोज़ और अन्य नेता एवं मंत्री.
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