अब तो मुझे तरस आने लगा है उन बेचारों पर जो चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के संबंध भले जैसे भी हों, वो उनके जीवन में ही सुधर जाएँ.
पर जब मैं पूछता हूँ कि मियाँ जी आप इतने उतावले क्यों हो रहे हो? अभी तो सिर्फ 67 बरस ही बीते हैं आपसी तनाव को, ऐसी भी क्या जल्दी. तो ये मित्र मुझे यूँ घूरते हैं जैसे मैं भी पागल हूँ.
देखो भाई, बात है सीधी-सीधी, न तो आपसे पूछ के ये संबंध ख़राब हुए, न आपके कहने से ठीक होंगे.
भले हर चौदह और पंद्रह अगस्त को वाघा-अटारी पर सौ छोड़ एक लाख दीये जला लें, भले हज़ार दफा तस्बीह घुमा लें कि हवन करा लें, भले ट्रैक टू डिप्लोमेसी का चक्कर चला लें कि सीमा पार से सेमिनारों और कॉन्फ्रेंसों के बहाने बुलाए जाने वाले मेहमानों के कल्ले से कल्ला मिलाकर चुम्मा फोटो खिंचवाएं, रत्ती बराबर फर्क नहीं पड़ने का.
कौन करता है घाटे का सौदा?
ऐ भोली फाख्ताओं, दुनिया का कौन सा ऐसा देश है जो जानबूझकर घाटे का सौदा करता है. तो ये क्यों न मान लिया जाए कि अभी जैसे-कैसे भी संबंध हैं, वो दोनों देशों के हित में हैं. और ये तभी सामान्य होंगे जब दोनों देशों को लगेगा कि अब फ़ायदे से ज़्यादा नुकसान हो रहा है.
देखिए, बुरे संबंध अच्छे होने के तीन ही कारण होते हैं. या तो आप एक-दूसरे के बिना मरे जा रहे हों. मगर इश्क मानव करते हैं, देश तो बस एक-दूसरे से फ्लर्ट ही करते हैं.
या फिर एक दूसरे को इतना मारकूट लें कि थक के चूर हो जाएं और फिर अहसास हो कि लड़ाई अच्छी चीज़ नहीं, इंसान के बच्चे बनकर रहने में ही फ़ायदा है.
मगर अभी तक न तो भारत सही से पाकिस्तान को कूटपीट सका और न ही पाकिस्तान की एक के बाद दूसरे बदले की भावना ठंडी हुई है.
जब आर्थिक फ़ायदा हो
या फिर तीसरा कारण ये है कि आज की दुनिया में एक देश दूसरे देश के लिए आर्थिक स्तर पर फ़ायदेमंद हो तभी आपस में मुट्ठीचापी शुरू होती है. इसका ज़िंदा उदाहरण भारत-चीन संबंध है.
जब एक दिन दोनों ने समझ लिया कि कोई किसी को नहीं पछाड़ सकता तो मुफ़्त में एक दूसरे की मंडी गोरों के हाथों क्यों गवाँएं?
दोनों ने किसी बिचौलिए के बग़ैर एक दूसरे से दिल ही दिल में समझौता कर लिया.
कहाँ 2002 में दोनों देशों ने एक दूसरे को पाँच खरब डॉलर का माल बेचा, कहाँ आज बात 70 खरब डॉलर तक पहुँच गई.
टिप बराबर रक़म
चीन इस वक़्त भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जबकि सीमा पर कौन सा इलाक़ा किसका, वो झगड़ा अपनी जगह ज्यों का त्यों.
पाकिस्तान और भारत को एक दूसरे से आर्थिक लाभ पहुँचने का अभी तक ऐसा कोई लालच नहीं जिसके होते दोनों कहें कि भाड़ में जाएं ऐतिहासिक झगड़े पहले मिलकर नोट कमा लें, झगड़े भी निपटते रहेंगे.
इस वक़्त दोनों देश लगभग ढाई अरब डॉलर का आपसी व्यापार करते हैं. अब इतनी सी रक़म कमाने के लिए आपसी संबंध क्या अच्छे करने, इतने तो कमाऊ देश वेटर को टिप में ही दे देते हैं.
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