एशियाई इतिहास में यह एक सुखद पहलू यह है कि दक्षिण एशिया के सभी देश मौजूदा समय में लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली के तहत चल रहे हैं.
हालांकि अफ़ग़ानिस्तान और नेपाल दो ऐसे देश हैं जहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था को वहाँ के अंदरूनी सियासी खींचतान से ख़तरा है वरना बाकी सभी देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिहाज से सूरतेहाल अपेक्षाकृत संतोषजनक है.
लेकिन कुछ समय से दक्षिण एशिया के सभी देशों में तेजी से उभरती धार्मिक कट्टरता और संकीर्णता का एक नया ख़तरा मंडराने लगा है.
इन देशों में धार्मिक कट्टरता लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर ख़तरा बनकर उभर रहा है. चिंताजनक बात यह है कि यह तेजी से बढ़ रहा है.
लोकतांत्रिक व्यवस्था
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान और उसके सहयोगी धार्मिक कट्टरपंथी संगठन अमेरिकी सैनिकों की वापसी का इंतज़ार कर रहे हैं.
काबुल की निर्वाचित सरकार बारूद के ढेर पर बैठी है. अफ़ग़ानिस्तान के लोकतंत्र को एक अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ रहा है.
नेपाल में एक लंबे संघर्ष के बाद जनता ने राजशाही का अंत किया और अपने लिए एक लोकतांत्रिक व्यवस्था चुनी.
लेकिन अब इस अनुभव को कुछ ही दिन हुए हैं कि देश के कई बड़े राजनीतिक दल नेपाल को एक हिंदू राज्य में बदलने की कोशिश कर रहे हैं.
भारत की आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद जैसे हिंदू समर्थक दल नेपाल के इस आंदोलन की मदद कर रहे हैं.
गतिरोध का शिकार
नेपाल के लिए एक नया संविधान तैयार किया जा रहा है. लोकतंत्र या धार्मिक राज्य, इस सवाल पर संविधान सभा गतिरोध का शिकार है.
श्रीलंका में अहिंसा में विश्वास रखने वाले बौद्ध धर्म के कई भिक्षुओं ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ आंदोलन चला रखा है.
मुसलमानों के धार्मिक स्थलों और उनके बस्तियों पर अक्सर हमले किए जाते हैं. देश में मुसलमानों के खिलाफ नफ़रत में तेजी से वृद्धि हुई है.
बर्मा में तो बौद्ध भिक्षु ही नहीं वहां की सरकार भी रोहिंग्या मुसलमानों के ख़िलाफ़ है.
सैकड़ों रोहिंग्या मुसलमान मारे जा चुके हैं और उनकी कई बस्तियां जला कर खाक कर दी गई हैं. हजारों रोहिंग्या भागकर बांग्लादेश और भारत में शरण ले रहे हैं.
गंभीर दबाव
बांग्लादेश में एक अर्से से मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन जोर पकड़ रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में धर्म के नाम पर कई प्रमुख आतंकवादी संगठन अस्तित्व में आए हैं.
देश के हिंदू अल्पसंख्यक गंभीर दबाव में है. धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव और शोषण के मामले धीरे-धीरे बढ़ते जा रहे हैं.
हर साल हज़ारों हिंदू बांग्लादेश छोड़कर भारत में शरण ले रहे हैं.
पाकिस्तान में लोकतंत्र को तो वहां के राजनीतिक दलों से ही कई बार ख़तरा पैदा हो जाता है लेकिन देश को सबसे बड़ा ख़तरा धार्मिक कट्टरपंथियों से है.
धार्मिक कट्टरपंथ का मुकाबला करने के सवाल पर सहमति न होने के कारण पाकिस्तान में यह चुनौती और भी जटिल है.
हिंदू संगठन
ईशनिंदा जैसे विषयों से जुड़े कानूनों ने धार्मिक चरमपंथ को बढ़ावा दिया है और अल्पसंख्यक पहले से अधिक असहाय और असुरक्षित हो गए हैं.
धार्मिक कट्टरपंथ अब देश के लोकतांत्रिक संस्थानों पर भी असर डालने लगे है. राजनीतिक दलों में धार्मिक कट्टरता का मुकाबला करने का संकल्प कमजोर पड़ रहा है.
दक्षिण एशिया में भारत सबसे स्थिर लोकतंत्र है. यहां पहली बार एक हिंदू समर्थक दक्षिणपंथी दल अपने बल पर सत्ता में आई है.
लेकिन वह हिंदुत्व के एजेंडे पर नहीं बल्कि विकास और एक सुशासन के नारे पर सत्ता तक पहुंची है. सरकार तो अपने एजेंडे पर कायम है लेकिन इससे जुड़े हिंदू संगठन पूरी तरह सक्रिय हो गए हैं.
मुहर्रम का जुलूस
पिछले दिनों राजधानी दिल्ली के एक इलाके में सत्ताधारी दल के कई नेताओं समेत हिंदू कट्टरपंथियों ने हजारों हिन्दुओं की एक पंचायत में घोषणा की कि वह इस इलाके से मुहर्रम का जुलूस नहीं निकलने देंगे.
सैकड़ों पुलिस की उपस्थिति और प्रशासन के दखल के बावजूद ताज़िया तभी निकला जब उसका रास्ता बदल दिया गया.
गुजरात की एक नगरपालिका ने एक प्रस्ताव के माध्यम शहर में मांसाहार पर रोक लगा दी है और छत्तीसगढ़ राज्य के कई गांवों की पंचायतों ने स्थानीय इसाइयों को सरकारी राशन की दुकानों से राशन देने पर पाबंदी लगा दी है.
लोकतंत्र में विश्वास
मानवाधिकार संगठनों के अनुसार कई क्षेत्रों में स्थानीय इसाइयों को अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
पूरे दक्षिण एशिया में इस समय धार्मिक कट्टरपंथ जोरों पर है.
धार्मिक कट्टरपंथ भी एक तरह की राजनीतिक पार्टी है जो बहुमत की ताक़त के जोर पर राजनीति में अपना हिस्सा हासिल करना चाहते हैं.
चूंकि यह लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखती इसलिए इसकी प्रक्रिया हमेशा अलोकतांत्रिक है.
लोकतंत्र के अस्तित्व और विकास के लिए यह जरूरी है कि लोकतंत्र विरोध विचारों और संगठनों को सख्ती के साथ सैद्धांतिक तौर पर हराया जाए और राज्य को धर्म से अलग रखा जाए.
गरीबी और पिछड़ापन
राज्य का काम धर्म चलाना नहीं है. धार्मिक कट्टरवाद से आम आदमी की सुरक्षा करना है.
दक्षिण एशिया गरीबी, अशिक्षा, बीमारी और पिछड़ेपन के आधार पर दुनिया के बदतरीन क्षेत्र में शुमार होता है.
धार्मिक कट्टरवाद उसे अधिक मुश्किलों में धकेल रहा है.
दक्षिण एशिया की गरीबी और कंगाली का समाधान धार्मिक कट्टरवाद में नहीं बल्कि केवल लोकतंत्र में निहित है.
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