बैगाओं के पास न जंगल है न ज़मीन

आलोक प्रकाश पुतुल बिलासपुर से बीबीसी हिन्दी डॉटकॉम के लिए सब तरफ जब पानी ही पानी था तो एक काली रंग की चट्टान में कहीं से बांस का पौधा उगा और उसी पौधे से निकले थे बैगा स्त्री व पुरुष. और फिर उस बांस से बना था जंगल. अपनी उत्पत्ति को लेकर बैगाओं के पास […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 13, 2014 10:12 AM
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सब तरफ जब पानी ही पानी था तो एक काली रंग की चट्टान में कहीं से बांस का पौधा उगा और उसी पौधे से निकले थे बैगा स्त्री व पुरुष. और फिर उस बांस से बना था जंगल.

अपनी उत्पत्ति को लेकर बैगाओं के पास ऐसे और इससे मिलते-जुलते कई किस्से हैं. लेकिन मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, कोरबा, सरगुजा और कबीरधाम में रहने वाले बैगा आदिवासियों के हिस्से अब न तो जल है, न जंगल और ना ही उनके हिस्से की ज़मीन.

बेहद शर्मीले स्वभाव के बैगाओं की हालत ये है कि अब छत्तीसगढ़ में इनकी आबादी केवल 43 हज़ार के आसपास रह गई है.

यह तब जब 80 के दशक से ही बैगाबहुल इलाक़ों में बैगाओं के लिये परिवार नियोजन के किसी भी साधन के इस्तेमाल पर रोक के सरकारी आदेश हैं.

खेती और जंगल ही इन बैगाओं की आजीविका के साधन हैं.

‘नहीं मिला हक़’

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लेकिन, अचानकमार के जंगल से इन आदिवासियों को यह कह कर बेदखल कर दिया जाता है कि उनकी उपस्थिति जंगली जानवरों को डराती है.

कबीरधाम ज़िले के दलदली इलाक़े में उनका क़सूर यह है कि वे जहां रहते हैं, उस ज़मीन के नीचे बॉक्साइट पाया जाता है.

देश भर की 74 आदिम जनजातियों में शामिल अधिकांश बैगाओं को न तो वन अधिकार क़ानून उनका हक़ दिला सका है और ना ही इनके नाम पर बनाया गया बैगा अभिकरण.

साक्षरता की कमी

शिक्षा के लाख दावों के बाद भी बैगाओं में साक्षरता दर 20 फ़ीसदी के आसपास ही है.

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बैगा जनजाति के लोग मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में हैं

छत्तीसगढ़ के अलग-अलग ज़िलों में हज़ारों की संख्या में ऐसे बैगा आदिवासी मिल जाएंगे, जो हर साल किसी नई ज़मीन पर अपना घर बनाते हैं और खेती करते हैं और फिर बेदख़ल कर दिए जाते हैं.

बैगा महापंचायत की संयोजक रश्मि कहती हैं, "बैगाओं के साथ सरकार का व्यवहार ऐसा है, जैसे वो इस धरती के लोग नहीं हैं. यह दुर्भाग्यजनक है कि जंगल का राजा कहे जाने वाले बैगा अपनी ज़मीन से बेदखल हो रहे हैं."

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