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क्या मोदी का ‘ऐक्ट ईस्ट’ मंत्र नया है?

अंकुर जैन दिल्ली से, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए अपने म्यांमार दौरे के दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को आसियान सम्‍मेलन को संबोधित किया. भारत में नए आर्थिक विकास की बात कर उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान बनी ‘लुक ईस्ट पालिसी’ से एक कदम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 13, 2014 10:12 AM

अपने म्यांमार दौरे के दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को आसियान सम्‍मेलन को संबोधित किया.

भारत में नए आर्थिक विकास की बात कर उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान बनी ‘लुक ईस्ट पालिसी’ से एक कदम आगे चल ‘ऐक्ट ईस्ट’ की बात की है.

लेकिन क्या यह मोदी का पूरब से प्रेम नया है?

आसियान में मोदी

आसियान शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने म्यांमार को भारत का महान पड़ोसी बताया.

मोदी ने कहा कि पूर्वी देशों के साथ रिश्ते के लिए भारत गंभीर है. और यहां मौजूद सभी देशों से भारत का गहरा संबंध है.

उन्‍होंने कहा कि आसियान भारत के लिए बहुत ही महत्‍वपूर्ण है और उनकी सरकार ने ‘लुक ईस्‍ट पॉलिसी’ की जगह ‘ऐक्‍ट ईस्‍ट पॉलिसी’ को अपना लिया है.

सम्मेलन से पहले बुधवार सुबह 8.30 बजे मोदी ने मलेशिया के प्रधानमंत्री हाजी मोहम्मद नजीब से मुलाकात की.

इसके बाद वे थाईलैंड के प्रधानमंत्री प्रायुत चान ओचा और सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सियन लूंग से भी मिले.

पूर्व से लगाव

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वीज़ा को लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके नरेंद्र मोदी से कई पश्चिमी देशों ख़ासकर अमरीका के रिश्ते खट्टे रहे.

साल 2002 में हुए गुजरात दंगों के बाद अमरीका ने 2005 में मोदी का वीज़ा रद्द कर दिया था.

तब गुजरात में उनके कार्यकाल के दौरान होने वाले वाइब्रेंट गुजरात समिट के लिए उन्होंने चीन और जापान जैसे देशों की ओर देखना शुरू किया.

मोदी ने तब अपने मंत्रियों और अफसरों से अक़सर पूर्वी देशों के साथ रिश्ते बढ़ाने की बात की.

‘ऐक्ट ईस्ट’

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हालांकि विदेश नीति के विशेषज्ञ पुष्पेश पंत मानते हैं कि ‘ऐक्ट ईस्ट’ की बात कर रहे मोदी इन रिश्तों को अब नई तरह से देख रहे हैं. मोदी हर समिट में एक नए मुहावरा या जुमला ज़रूर देते हैं और चाहते हैं कि लोग उन्हें इसके लिए याद रखें.

उनका कहना है, "लेकिन मोदी जी को इस बात का गहरा अहसास है कि अंतरराष्ट्रीय संबंध किन्हीं दो व्यक्तियों या नेताओं के व्यक्तिगत संबंधों पर नहीं बनते. गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने बेशक पूर्व के प्रति दिलचस्पी दिखाई थी."

पंत कहते हैं, "जब-जब यूरोपीय देशों के भारत में तैनात राजदूत गुजरात जाकर मोदी की प्रशंसा करते थे तब अमरीका हो या ब्रिटेन उन पर मोदी को लेकर दबाव बनता था. लेकिन मोदी अब उस दौर को पीछे छोड़ आए हैं. एक ओर जहां वे पूर्वी देशों के साथ संबंध की बात कर रहे हैं, वे पश्चिम के साथ भी उतने ही प्रयास कर रहे हैं."

‘आज दुनिया बदली है’

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बांग्लादेश और मलेशिया में भारतीय उच्चायुक्त रह चुकी वीणा सीकरी मानती हैं कि मोदी के कार्यकाल के दौरान, सालों से सुस्त पड़ गए आसियान देशों के साथ भारत के संबंध सुधरेंगे.

सीकरी कहती हैं, "भारत के आसियान और कई पूर्वी देशों के साथ पौराणिक संबंध रहे हैं. पूर्व और दक्षिण पूर्वी एशिया के कई देश भारत से बहुत सारी उम्मीदें लगाए बैठे हैं. अब मोदी अगर पहल करेंगे तो न सिर्फ आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक रिश्ते भी एक बार फिर सुधरेंगे."

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लेकिन पंत मानते हैं कि पूरब में जापान, चीन, इंडोनेशिया, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया कई देश हैं और राष्ट्रों के साथ नज़रिए भी बदलने पड़ेंगे.

वह कहते हैं, "चीन और जापान के आपसी विवाद हैं. उनमें जब भारत पूर्व की ओर देखकर कुछ करने की कोशिश करेगा तब क्या चुनौतियां होंगी यह सोचना होगा. जब हम वियतनाम के साथ तेल शोधन करेंगे तो चीन के साथ कितना तनाव बढ़ेगा, यह मोदी को सोचना होगा."

लेकिन पंत कहते हैं कि सवाल यह नहीं है कि सिर्फ मोदी अवतरित हुए हैं भारत में. आज दुनिया बदली है और उसे एहसास हुआ कि भारत के साथ आज रिश्ते कितने ज़रूरी हैं?

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