विकास योजनाओं का 16675 करोड़ खर्च नहीं हो पाया

राज्य सरकार पिछले 12 वर्षो के दौरान विकास योजनाओं के लिए निर्धारित राशि में से 16675.13 करोड़ रुपये खर्च नहीं कर सकी. इन 12 वर्षो में से किसी भी वित्तीय वर्ष में विकास योजनाओं के लिए निर्धारित (योजना मद की) पूरी राशि खर्च नहीं कर सकी. सरकार विकास के पर जोर देने के दावों के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 15, 2014 5:09 AM
राज्य सरकार पिछले 12 वर्षो के दौरान विकास योजनाओं के लिए निर्धारित राशि में से 16675.13 करोड़ रुपये खर्च नहीं कर सकी. इन 12 वर्षो में से किसी भी वित्तीय वर्ष में विकास योजनाओं के लिए निर्धारित (योजना मद की) पूरी राशि खर्च नहीं कर सकी. सरकार विकास के पर जोर देने के दावों के साथ ही योजना आकार बढ़ाती रही. दूसरी तरफ हर साल खर्च नहीं होनेवाली राशि (सरेंडर) भी बढ़ती गयी. खर्च कम होने की वजह से केंद्र ने सहायता भी घटा दी. इससे पिछले दो वर्षो के दौरान सरकार को अपना योजना आकार कम करना पड़ा.
राज्य गठन के समय की योजना आकार निर्धारित करते समय अधिकारियों व राजनीतिज्ञों के बीच योजना आकार को लेकर मत भेद पैदा हो गया था. राज्य के वरीय अधिकारी यह चाहते थे कि सरकार विकास योजनाओं के लिए उतनी ही राशि निर्धारित करे जिसे वह खर्च कर सके.इसके लिए अधिकारियों की ओर से यह तर्क पेश किया जाता था कि विकास को सही समय पर योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक कार्य बल नहीं है. इसलिए योजना आकार सरकार के कार्यबल के अनुरूप ही हो. पर,राजनीतिक स्तर पर इस तर्क को नकार दिया गया. साथ ही योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक डिजाइन आदि के काम लिए कंसल्टेंटसी का सहारा लेने की नीति तय की गयी. इससे सरकार के अधिकांश वर्क्‍स डिपार्टमेंट में कंसल्टेंटों की एक लंबी फौज खड़ी हो गयी.
कंसलटेंट को काम देने या नहीं देने के मुद्दे पर गंभीर राजनीतिक विवाद हुआ. विधानसभा में इससे संबंधित सवाल उठाये गये. पर, कोई हल नहीं निकला. इन विवादों के बीच ही एक ही काम के लिए अलग अलग नियुक्त हुए और उन्हें दी गयी फीस बेकार गयी.भागीरथी योजना, ड्रेनेज सिवरेज आदि के लिए कंसल्टेंसी के मामले इसके कुछ उदाहरण हैं. दूसरी तरफ राजनीतिक तौर पर विकास की जोरदार कोशिश दिखाने के उद्देश्य से सरकार योजना आकार भी बढ़ाती गयी. हालांकि काम नहीं होने की वजह से सरेंडर की जानेवाली राशि भी लगाता बढ़ती गयी. इसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2002-03 के मुकाबले 2013-14 का योजना आकार छह गुना हो गया. दूसरी तरह इसी अवधि में सरेंडर की जानेवाली राशि भी बढ़ कर करीब पांच गुनी हो गयी.
राज्य सरकार द्वारा सरेंडर की जानेवाली राशि में लगातार वृद्धि होने की वजह से केंद्र ने वर्ष 20012-13 में सहायता कम कर दी. इससे सरकार को अपना योजना आकार 16300 करोड़ रुपये से घटा कर 13774 करोड़ रुपये करना पड़ा. राज्य गठन के बाद ऐसा पहली बार हुआ. इस स्थिति के मद्देनजर राज्य के शीर्ष अधिकारियों ने 2013-14 का योजना आकार कम करने की सलाह दी. पर,राजनीतिक कारणों से इसे स्वीकार नहीं किया गया और 16800 करोड़ रुपये का योजना आकार निर्धारित किया गया. दूसरी बार भी वित्तीय वर्ष के अंतिम दिनों में इसे घटा कर 13795 करोड़ रुपये करना पड़ा.

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