नये पावर प्लांट कब लगेंगे, कोई नहीं जानता
झारखंड गठन के 14 वर्ष हो गये हैं. पर राज्य सरकार ने बिजली के क्षेत्र में 14 मेगावाट भी अतिरिक्त बिजली की व्यवस्था नहीं कर सकी है. तत्कालीन बिहार राज्य के समय से जो पावर प्लांट है, वही आज भी है और इस पर पूरे राज्य की बिजली आपूर्ति निर्भर करती है. राज्य के अपने […]
झारखंड गठन के 14 वर्ष हो गये हैं. पर राज्य सरकार ने बिजली के क्षेत्र में 14 मेगावाट भी अतिरिक्त बिजली की व्यवस्था नहीं कर सकी है. तत्कालीन बिहार राज्य के समय से जो पावर प्लांट है, वही आज भी है और इस पर पूरे राज्य की बिजली आपूर्ति निर्भर करती है. राज्य के अपने तीन पावर प्लांट हैं.
840 मेगावाट क्षमतावाले पतरातू प्लांट से मात्र 75 से 100 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. जबकि 130 मेगावाट के सिकिदिरी हाइडल से केवल बरसात में उत्पादन होता है. टीवीएनएल की क्षमता 420 मेगावाट है, पर यहां कभी पहली, तो कभी दूसरी यूनिट ठप होती रहती है. इस वजह से बिजली संकट गहराता जाता है. ये स्थितियां बताती हैं कि बिजली के मामले में राज्य अपने बल पर आत्मनिर्भर नहीं बन सकता.
बढ़ेगी मांग
राज्य में ग्रामीण विद्युतीकरण का कार्य पूरा हो जाने पर करीब 1500 मेगावाट अतिरिक्त बिजली की जरूरत होगी. यानी 2500 से तीन हजार मेगावाट की बिजली की जरूरत होगी. तब बोर्ड की निर्भरता निजी उत्पादकों पर बढ़ेगी.
अधर में प्रस्तावित पावर प्लांट
राज्य सरकार द्वारा छह पावर प्लांट की योजना तैयारी की गयी है. इसके लिए पूर्व में बनहरदी, उरमा पहाड़ी, मौर्या व बादाम कोल ब्लॉक आवंटित किये गये थे. पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सारे कोल ब्लॉक का आवंटन रद्द कर दिया गया है. जिसके चलते अब पावर प्लांट की योजना अधर में लटकती दिखाई दे रही है.
1320 मेगावाट का प्लांट पतरातू में
1600 मेगावाट का प्लांट पतरातू में
1320 मेगावाट का प्लांट तेनुघाट में (टीवीएनएल)
1320 मेगावाट का प्लांट गुमला में
1320 मेगावाट का प्लांट चांडिल में
1320 मेगावाट का प्लांट लातेहार में (टीवीएनएल)
मांग और आपूर्ति में भारी अंतर
राज्य में बिजली की मांग और आपूर्ति में भारी अंतर है. मांग के अनुरूप जिलों में बिजली की आपूर्ति नहीं हो पाती. जिसके चलते किसी भी जिले में 24 घंटे अबाधित बिजली नहीं मिल पाती. राज्य में औसतन रांची और जमशेदपुर को ज्यादा बिजली की आपूर्ति की जाती है.
वितरण नेटवर्क है कमजोर
झारखंड बिजली वितरण का नेटवर्क भी कमजोर है. अभी भी पलामू, संताल-परगना जैसे क्षेत्रों में बिहार व यूपी से बिजली लेकर आपूर्ति की जाती है. हालांकि ट्रांसमिशन लाइन के निर्माण का काम चल रहा है. काम पूरे होने के बाद ही कुछ हद तक झारखंड अपने राज्य के अंदर ही बिजली आपूर्ति करने में सक्षम हो सकेगा.
घाटे में बिजली कंपनियां
जेएसइबी को पहले हर साल दो से तीन हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता था. इसके बाद बिजली बोर्ड का बंटवारा कर चार कंपनियां बना दी गयी. वितरण, संचरण और उत्पादन के साथ-साथ होल्डिंग कंपनी भी बनायी गयी. पर कंपनियों को अभी स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने दिया जा रहा है. जिसके चलते दोबारा कंपनियां घाटे की ओर बढ़ रही है. स्थिति यह है कि वितरण कंपनी 350 करोड़ की बिजली खरीदता है और लगभग 225 करोड़ रुपये की राजस्व वसूली करता है. यानी प्रत्येक माह लगभग 125 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है.