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नहीं पहुंचा खेतों तक पानी

सिंचाई परियोजनाएं 40 वर्षो से निर्माणाधीन लागत 446 करोड़ से बढ़ कर हुई 9674 करोड़ संजय, रांची राज्य गठन के 14 वर्षो बाद भी सिंचाई परियोजनाएं पूरी नहीं हो सकी हैं. ये परियोजनाएं पिछले 40 वर्षो से निर्माणाधीन हैं. तत्कालीन बिहार और अब झारखंड में इन योजनाओं पर अब तक 4500 करोड़ रुपये से अधिक […]

सिंचाई परियोजनाएं 40 वर्षो से निर्माणाधीन
लागत 446 करोड़ से बढ़ कर हुई 9674 करोड़
संजय, रांची
राज्य गठन के 14 वर्षो बाद भी सिंचाई परियोजनाएं पूरी नहीं हो सकी हैं. ये परियोजनाएं पिछले 40 वर्षो से निर्माणाधीन हैं. तत्कालीन बिहार और अब झारखंड में इन योजनाओं पर अब तक 4500 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किये जा चुके हैं. विभागीय दस्तावेजों के अनुसार कुल 19 सिंचाई परियोजनाओं की शुरुआती लागत 446 करोड़ रुपये थी, जो विलंब के कारण बढ़ कर अब लगभग 10 हजार करोड़ रुपये हो गयी है. यदि राज्य में ये परियोजनाएं पूरी हो जातीं, तो लगभग 5.5 लाख हेक्टेयर जमीन को पानी मिलता. पूर्व मुख्य सचिव एके सिंह, ने इन योजनाओं पर कड़ी टिप्पणी की थी व विभाग की कार्यशैली को राज्य के लिए चिंता का विषय बताया था.
5.5 लाख हेक्टेयर खेतों को मिलता पानी : राज्य में सिंचाई की बृहत व मध्यम योजनाएं यदि पूरी हो जातीं, तो लगभग साढ़े पांच लाख हेक्टेयर जमीन को पानी मिलता. जल संसाधन विभाग के अनुसार राज्य की बृहत व मध्यम सिंचाई योजनाओं में करीब 7.31 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचाई कर सकने की क्षमता है. गौरतलब है कि राज्य में कुल 29.74 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है. बिहार सिंचाई आयोग (दूसरा) में यह जिक्र है कि झारखंड की कुल कृषि योग्य भूमि में से 12.76 लाख हेक्टेयर में बृहत व मध्यम योजनाओं से सिंचाई संभव है. शेष लघु सिंचाई योजनाओं से पूरा किया जा सकता है. इस तरह देखा जाये, तो बृहत व मध्यम सिंचाई योजनाओं के पूरा न होने से झारखंड के खेतों को पानी व लोगों को अनाज नहीं मिल रहा.
सिर्फ 1.54 लाख हेक्टेयर बढ़ी सिंचाई सुविधा : राज्य के कुल क्षेत्रफल 79.72 लाख हेक्टेयर में से 29.74 लाख हेक्टेयर भूमि खेती योग्य है. विभाग का मानना है कि अधिकतम 24.25 लाख हेक्टेयर भूमि पर ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध करायी जा सकती है. राज्य गठन के बाद गत 14 वर्षो में सिर्फ 1.54 लाख हेक्टेयर भूमि पर ही सिंचाई सुविधा बढ़ी है. अभी राज्य का कुल सिंचित क्षेत्र 7.76 लाख हेक्टेयर है. इसमें बड़ी व मध्यम सिंचाई योजनाओं से 2.47 लाख हेक्टेयर व लघु सिंचाई योजनाओं से 5.13 लाख हेक्टेयर खेतों की सिंचाई की जाती है.
जन प्रतिरोध से छह सिंचाईं योजनाएं ठप
राज्य की छह सिंचाई परियोजनाएं स्थानीय लोगों के प्रतिरोध के कारण बंद हैं. इनमें से रांची जिले की कंस जलाशय योजना को छोड़ किसी पर काम शुरू भी नहीं हो सका है, जबकि ये परियोजनाएं वर्षो पुरानी हैं. कंस व पश्चिमी सिंहभूम की झरझरा परियोजना पर करीब 39 करोड़ रु खर्च हो चुके हैं. रांची जिले की कंस जलाशय योजना का 70 फीसदी हेड वर्क तथा मेन कैनरल का भी कुछ काम पूरा हो गया है. झरझरा में हेड वर्क सहित अन्य कार्य लगभग शून्य है, जबकि इस पर 11 करोड़ रु भी खर्च हो चुके हैं. कंस परियोजना 1978 में तथा झरझरा परियोजना 1982 में शुरू की गयी थी. उधर पश्चिमी सिंहभूम की सतपोतका व पाकुड़ जिले की तोराई नयी परियोजनाएं हैं. इन सभी परियोजनाओं से 20 हजार हेक्टेयर से अधिक खेतों को पानी मिल सकता है, पर स्थानीय रैयत अपनी जमीन गंवाना नहीं चाहते.
फॉरेस्ट क्लीयरेंस भी समस्या : सिंचाई परियोजनाओं में वन भूमि का हिस्सा भी आयेगा. इसके लिए केंद्र सरकार से फॉरेस्ट क्लीयरेंस लेना होता है. यह लंबी व फंसने वाली प्रकिया है. वर्तमान में पलामू के अमानत बराज व उत्तरी कोयल तथा तीन जिलों हजारीबाग, गिरिडीह व बोकारो से जुड़ी कोनार सिंचाई परियोजना के लिए वन भूमि ट्रांसफर होनी है.

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