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सब होते हुए भी उद्योग नहीं लगे

सुनील चौधरी जब झारखंड राज्य का गठन हुआ था, तब विशेषज्ञ कहते थे कि इस राज्य में उद्योगों का जाल बिछ जायेगा. देखते ही देखते समृद्धि चारों तरफ छा जायेगी. कारण है कि इस राज्य में ही लोहा, कोयला, बॉक्साइट जैसे खनिजों का अकूत भंडार है. राज्य बना. सरकारें बनी. वर्ष 2002 से ही निवेशकों […]

सुनील चौधरी
जब झारखंड राज्य का गठन हुआ था, तब विशेषज्ञ कहते थे कि इस राज्य में उद्योगों का जाल बिछ जायेगा. देखते ही देखते समृद्धि चारों तरफ छा जायेगी. कारण है कि इस राज्य में ही लोहा, कोयला, बॉक्साइट जैसे खनिजों का अकूत भंडार है. राज्य बना. सरकारें बनी. वर्ष 2002 से ही निवेशकों को आकर्षित करने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित किये गये. देखते ही देखते राज्य में निवेशकों की बाढ़ सी आ गयी.
हर महीने एक दो कंपनियां एमओयू साइन कर रही थी. कोई 40 हजार करोड़ का निवेश की बात कर रही थी तो कोई 50 हजार करोड़ के निवेश का प्रस्ताव लेकर आ रही थी. पर देश में सबसे अधिक निवेश के प्रस्ताव झारखंड को मिले. पर 14 वर्षो के बाद स्थिति उलट है. न उद्योगों का जाल बिछा है न रोजगार बढ़े. बल्कि निवेशकों के भागने की कतार लग गयी.
उद्योग नीति के कारण आये निवेशक
सबसे पहले वर्ष 2001 में उद्योग नीति को लागू किया गया. इस नीति के लागू होने के बाद निवेशकों को पांच से 15 फीसदी तक सब्सिडी देने का प्रावधान किया गया. निवेशकों का आवेदन लेने का सिंगल विंडो सिस्टम का प्रावधान किया गया था, पर यह फेल हो गया. नयी उद्योग नीति का ही परिणाम था कि राज्य में निवेशकों की बाढ़ आ गयी. स्टील, सीमेंट व अल्युमिनियम के क्षेत्र में निवेश करने के लिए 74 कंपनियों ने एमओयू किया. साथ ही पावर प्लांट के क्षेत्र में निवेश करने के लिए 33 कंपनियों ने एमओयू किया. अलग राज्य बनते ही 4.38 ला?ा करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव प्राप्त कर झारड देश में सबसे अधिक निवेश करने वाला राज्य बन गया.
समस्या सामने आयी
वर्ष 2008 तक सरकार ने दनादना एमओयू साइन किया. एमओयू हुए पर उद्योग लगे, इसके लिए यह जरूरी था कि जमीन मिले. झारखंड में जमीन लेना कंपनियों के लिए टेढ़ी खीर साबित होने लगी. इसकी सबसे बड़ी वजह सीएनटी, एसपीटी व विल्किंसन रूल थी. उद्यमी सीधे जमीन नहीं खरीद पा रहे थे. इसके लिए उन्हें सरकार पर निर्भर रहना पड़ा. दूसरी ओर खनिजों को लेना भी टेढी खीर साबित हो रही थी.
कुछ उद्योग लगे पर अपने बलबूते
झारखंड में जो भी उद्योग लग रहे हैं, इसमें सरकारी प्रयास कम उद्यमी का प्रयास अधिक है. राज्य सरकार की आंकड़ों के अनुसार 10 वर्षो में 2001 की नीति से 26 मेगा उद्योग, 106 मध्यम व वृहत स्तर के उद्योग व 18109 सूक्ष्म व लघु उद्योग राज्य में लगे हैं. इन उद्योगों के लगने से राज्य में 28424.06 करोड़ का निवेश हुआ है और 63 हजार लोगों को रोजगार भी मिला है. सरकार का मानना है कि उद्योगों के लगने से जमशेदपुर-सरायकेला-चाईबासा, रामगढ़-पतरातू-हजारीबाग, लातेहार-चंदवा, रांची-लोहरदगा, बोकारो-चंदनकियारी-धनबाद-गिरिडीह जैसे क्षेत्रों में लोगों के जीवन स्तर में बढ़ोतरी के साथ-साथ राज्य के राजस्व में भी वृद्धि हुई है.
2001 की नीति का मूल उद्देश्य था कि प्राकृतिक संसाधनों व मानव संसाधनों का बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर रोजगार का सफजन करना और राज्य का विकास करना. इस मामले में यह नीति सफल रही है. उद्योग विभाग के मुताबिक राज्य में स्टील का उत्पादन भी बढ़ा है. राज्य गठन के पूर्व आठ मिलियन टन स्टील का उत्पादन होता था, जो बढ़ कर 12 मिलियन टन हो गया है.
इसी प्रकार अल्युमिनियम का उत्पादन भी बढ़ा है. रेशम कीटपालन क्षेत्र में भी उत्पादन बढ़ा है. राज्य गठन के पूर्व जहां तसर का उत्पादन 100 मीट्रिक टन होता था. अब बढ़ कर 716 मीट्रिक टन हो गया है. इस क्षेत्र में 1.25 लाख लोग रोजगार से भी जुड़े हैं. 10 वर्षो में राज्य का सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) भी बढ़ा. 2001-02 में जीएसडीपी जहां 39191.09 करोड़ रुपये पर था वहीं अब 2010-11 में बढ़ कर 120010 करोड़ रुपये हो गया है. प्रतिव्यक्ति आय भी 14392 रुपये से बढ़ कर 38350 रुपये हो गया है.
रद्द होते गये एमओयू
उद्योग विभाग ने 74 कंपनियों के साथ एमओयू किया था. इसमें 39 कंपनियों का एमओयू रद्द कर दिया गया है या निवेशख खुद चले गये हैं. इसकी वजह उद्योग लगाने की दिशा में उनकी उदासीनता बतायी गयी. अब 36 कंपनियों का एमओयू ही वैद्य है. इसमें 18 कंपनियों ने उत्पादन आरंभ कर दिया है. 20 कंपनियों को लौह अयस्क और कोल ब्लॉक के आवंटन की स्वीकृति दी गयी है. हालांकि किसी कंपनियों ने अबतक अपने माइंस से उत्खनन कार्य आरंभ नहीं किया है. कारण है कि माइंस में उत्?ानन के लिए इनका आवेदन वन एवं पर्यावरण मंत्रलय नयी दिल्ली के पास वन एवं पर्यावरण क्लीयरेंस के लिए लंबित है. दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण सारे कोल ब्लॉक का आवंटन रद्द कर दिया है.
सिंगल विंडो सिस्टम फेल
झारखंड उद्योग नीति 2001 में सिंगल विंडो सिस्टम का प्रावधान किया गया था. इसके तहत एक ही कार्यालय से उद्यमी को जमीन, पानी, खनिज, पर्यावरण क्लीयरेंस, बिजली आदि के लिए आवेदन देना था. उद्यमी को विभागों के चक्कर से दूर रखने के लिए ही सिंगल विंडो सिस्टम की अवधारणा लायी गयी थी. खूब तामझाम से सिंगल विंडो सिस्टम का उदघाटन अगस्त 2003 में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने किया था. नेपाल हाउस सचिवालय के ऊपरी तल्ले में इसे बनाया गया था. बिलकुल हाईटेक कार्यालय बनाया गया था.
कार्यालय में वन विभाग, खान विभाग, उद्योग विभाग, बिजली विभाग, जल संसाधन विभाग के पदाधिकारियों को एक-एक टेबल आवंटित किया गया. पदाधिकारी बैठने भी लगे. जिन पदाधिकारियों को बैठाया गया था वह सहायक स्तर के थे. जब उद्यमी इन्हें आवेदन देते तो ये फिर इसे वरीय पदाधिकारियों के पास भेज देता. इसके बाद उद्यमियों की दौड़ वरीय पदाधिकारियों तक होने लगी.
सिंगल विंडो सिस्टम में आवेदन देने का उन्हें कोई लाभ नहीं मिला.उलटे उनकी मुसीबत और बढ़ गयी. उद्यमियों ने कहा कि जब आवेदन वरीय पदाधिकारियों को ही देना है तो फिर सीधे उन्हें ही क्यों न दिया जाय. करीब छह माह बाद यहां प्रतिनियुक्त पदाधिकारियों ने भी आना बंद कर दिया. धीरे-धीरे खुलने के छह माह बाद ही सिंगल विंडो सिस्टम बंद हो गया. इस जगह पर अब उद्योग निदेशालय के पदाधिकारी बैठते हैं.
एक्ट का रूप नहीं मिला
सिंगल विंडो सिस्टम बनाया तो गया, पर इसे वैधानिक दर्जा नहीं मिला. न ही यहां प्रतिनियुक्त पदाधिकारियों को अपने स्तर से काम करने का अधिकार मिला. सिंगल विंडो सिस्टम के तहत इंडस्ट्रीयल फैसिलिटेशन एक्ट बनाया गया था, लेकिन इसे कभी मंजूरी नहीं मिली. जिसके चलते यह सिस्टम कभी कानून का रूप नहीं
ले सका.
बड़ी कंपनियां नहीं लगा सकीं प्लांट
आर्सेलर मित्तल, टाटा स्टील(ग्रीन फील्ड), हिंडाल्को, जिंदल स्टील एंड पावर, जेएसडब्ल्यू जैसी बड़ी कंपनियां आज भी जमीन के अभाव में प्लांट नहीं लगा सकी है. सरकार की ओर से भी प्लांट लगे इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया है.

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