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वाम दलों का घट रहा है जनाधार

मनोज सिंह रांची : झारखंड की राजनीति में वामदलों का जनाधार घट रहा है. 2005 और 2009 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों में यह स्पष्ट संदेश देता है. जनाधार घटने के बाद भी वाम दलों की गरिमा बरकरार है. दल के एक भी विधायक सदन के अंदर और बाहर इसकी गरिमा को बनाये रखते हैं. […]

मनोज सिंह
रांची : झारखंड की राजनीति में वामदलों का जनाधार घट रहा है. 2005 और 2009 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों में यह स्पष्ट संदेश देता है. जनाधार घटने के बाद भी वाम दलों की गरिमा बरकरार है.
दल के एक भी विधायक सदन के अंदर और बाहर इसकी गरिमा को बनाये रखते हैं. इनकी एक अलग पहचान है. 2005 और 2009 के चुनाव में भाकपा माले की टिकट से बगोदर से जीत कर विनोद सिंह सदन में आते रहे हैं. दोनों चुनाव में माकपा और भाकपा के एक भी प्रत्याशी नहीं जीते हैं. 2005 में माले ने 28 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. उन्हें 6.58 फीसदी मत मिले थे. 24 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी थी. 2009 में पार्टी का मत प्रतिशत 5.79 हो गया. पार्टी ने 33 प्रत्याशियों को उतारा था. इस बार (2014) पार्टी ने 41 सीटों पर प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की है.
10 साल से नहीं खुला है खाता
माकपा और भाकपा का विधानसभा के अंदर खाता 10 साल से नहीं खुला है. भाकपा ने जहां-जहां प्रत्याशी उतारे थे, वहां उसे 2005 में 9.19 फीसदी मत मिले थे. 2009 में यह घट कर 7.97 हो गया. 2005 में पार्टी ने 15 प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था. 2009 में यह घट कर आठ हो गया है. इस बार पार्टी ने 25 उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का निर्णय लिया है. यही स्थिति माकपा की भी है. 2005 की तुलना में मतों में 2009 में करीब दो फीसदी कमी आयी है.

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