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सबका राशन कार्ड न बना, न बंटा
चुनावी घोषणा पत्र : ठंडे बस्ते में डाल दिये जाते हैं वोटर से किये वादे स्थायी नहीं हुए पारा शिक्षक व पारा मेडिकल कर्मी कृषि व पर्यटन को उद्योग का दरजा भी नहीं मिला संजय रांची : चुनाव आते ही नेताओं के बोल बदल जाते हैं. राजनीतिक दल भी जनहित पर बड़े संजीदा हो उठते […]
चुनावी घोषणा पत्र : ठंडे बस्ते में डाल दिये जाते हैं वोटर से किये वादे
स्थायी नहीं हुए पारा शिक्षक व पारा मेडिकल कर्मी
कृषि व पर्यटन को उद्योग का दरजा भी नहीं मिला
संजय
रांची : चुनाव आते ही नेताओं के बोल बदल जाते हैं. राजनीतिक दल भी जनहित पर बड़े संजीदा हो उठते हैं. इसी माहौल में पार्टियां अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करती हैं, पर यह याद नहीं रखा जाता कि इससे पहले उन्होंने जनता से क्या वादे किये थे.
सरकार बनाने के बाद लगभग सभी दल अपने मतलब के काम (कई उदाहरण हैं) जहां एक-दो दिन में ही निबटा देते हैं, वहीं चुनावी वादों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है.
गत पांच वर्षो में मुख्य रूप से चार दल सरकार में रहे हैं. भाजपा, झामुमो, कांग्रेस व आजसू. इन दलों ने 2009 के विधानसभा चुनाव में ऐसे कई वादे किये थे, जो पूरे नहीं हुए. कुछ वादे, जो इन दलों ने मिल कर (दा यो अधिक दल) किये थे, उनका पूरा न होना ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है. जैसे गरीबों सहित सभी लोगों का राशन कार्ड न बना और न ही अब तक बंट सका है. सभी रिक्त पदों व नये सरकारी पदों पर नियुक्ति भी नहीं हुई. बांग्ला व अन्य भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का दरजा तो मिला, पर यह अमल में नहीं आया है. उसी तरह राज्य के पारा शिक्षकों व पारा मेडिकल कर्मियों को स्थायी करने की बात भी हवा-हवाई हो कर रह गयी.
झारखंड मुक्ति मोरचा ने अपने घोषणा पत्र में फिर कृषि को उद्योग का दरजा देने की बात कही है. इससे पहले 2009 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने यही बात कही थी. झामुमो सरकार में सहयोगी रहा तथा उसके नेतृत्व में भी सरकार चली, पर यह वादा याद नहीं रहा. यही नहीं कृषि क्षेत्र में कोई भी नया या उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ.
आजसू ने तो शिक्षित बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने व सभी गरीबों को आवास उपलब्ध कराने जैसी बात कही थी, जिस पर वह चुप रही. भाजपा भी राशन कार्ड, 10 लाख लोगों को रोजगार व उन्हें दो फीसदी ब्याज दर पर ऋण मुहैया कराने जैसी बात भूल गयी. वहीं पार्टी ने इस बार के घोषणा पत्र में पहले के कई वादों का कोई जिक्र नहीं किया है, पर वादों की सूची लंबी कर दी है. वादा खिलाफी में कांग्रेस भी किसी दल से कम नहीं है. यहां गत विधानसभा चुनाव में उपरोक्त दलों ने जो प्रमुख वादे पूरे नहीं किये, उसकी सूची दी जा रही है.
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