कोड़ा दंपती का रथ रोकने की तैयारी
जगन्नाथपुर : जगन्नाथपुर विधानसभा सीट का नेतृत्व पिछले डेढ़ दशक से कोड़ा दंपती कर रहे हैं. एक बार भारतीय जनता पार्टी की टिकट से, जबकि दो बार जय भारत समानता पार्टी से जनता ने मौका दिया है. दो बार मधु कोड़ा स्वयं जीते हैं, एक बार पत्नी गीता कोड़ा ने नेतृत्व किया है. इनके विजय […]
जगन्नाथपुर : जगन्नाथपुर विधानसभा सीट का नेतृत्व पिछले डेढ़ दशक से कोड़ा दंपती कर रहे हैं. एक बार भारतीय जनता पार्टी की टिकट से, जबकि दो बार जय भारत समानता पार्टी से जनता ने मौका दिया है. दो बार मधु कोड़ा स्वयं जीते हैं, एक बार पत्नी गीता कोड़ा ने नेतृत्व किया है. इनके विजय रथ को रोकने की तैयारी इस बार विपक्षी दलों ने की है.
मधु कोड़ा को किये गये काम का भरोसा है, तो विपक्षी उन पर क्षेत्र के विकास पर ध्यान नहीं देने का आरोप लगा रहे हैं. पश्चिमी सिंहभूम की यह सीट हमेशा से ही चर्चा का केंद्र रही है. जभासपा ने पहले ही इस सीट पर गीता कोड़ा को प्रत्याशी घोषित कर दिया है. भाजपा ने मंगल सोरेन तथा कांग्रेस ने सनी सिंकू को उम्मीदवार बनाया है. भाजपा को इस सीट पर वर्ष 2000 में पहली दफा जीत मिली थी. उस वक्त भाजपा ने युवा मधु कोड़ा को प्रत्याशी बनाया था. कांग्रेस इस सीट से करीब 30 साल से दूर है. झारखंड मुक्ति मोरचा ने कई बार इस सीट पर ताकतवर उम्मीदवार दिया, लेकिन जीत नहीं सकी है.
कभी सीएम का क्षेत्र आज समस्याओं का घर : पश्चिमी सिंहभूम जिले के अन्य विधासभाओं की तरह जगन्नाथपुर विधानसभा क्षेत्र की मूलभूत समस्याएं जस की तस हैं. पेयजल व बिजली यहां की मुख्य समस्याओं में से एक है. आज भी विधानसभा के मुख्य शहरों से गांवों की सड़कें जुड़ नहीं पायी हैं. खदानों से भरा पूरा क्षेत्र होने के बावजूद रोजगार की समस्या है. विस के शहरी क्षेत्रों के विकास के लिये कोई भी बड़ी परियोजना अब तक धरातल पर उतर नहीं पायी है. कई कल कारखाने होने के बावजूद स्वास्थ्य की बेहतर सुविधा नहीं है. आवागमन का साधन नहीं के बराबर है. इस विस से हर चुनाव में बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराना एक बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है. किसानों के लिए हमेशा अच्छी व्यवस्था की बात उठती रही है. ओड़िशा के तर्ज पर लौहांचल के शहरों व गांवों के विकास भी चुनावी मुद्दे रहे हैं. इसके अलावा शिक्षा व क्षेत्र के लिये बड़ी योजनाओं की लाने की बात भी उठती रही है. क्षेत्र के बंद पड़े खदानों को खोलना इस बार के चुनाव में एक मुख्य एजेंडा बनेगा. इसके अलावा रोजगार के लिये बेहतर विकल्प उपलब्ध कराना, ऐतिहासिक धरोहरों को पर्यटन स्थलों में तब्दील करना, क्षेत्र की परिवहन व्यवस्था में सुधार चुनावी मुद्दे बनेंगे. शिक्षा के क्षेत्र में महा विद्यालय खोलने, ओबीसी को आरक्षण आदि मुद्दे पार्टियों के चुनावी एजेंडों में शामिल हैं.