10 तकनीकें, जो 2020 तक पूरी तरह बदल जायेंगी

तकनीकी विकास की प्रगति इतनी तेज है, कि अगले कुछ वर्षो में आनेवाली कई तकनीकों का अभी अंदाजा लगाना भी मुश्किल है, लेकिन कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें हो रहे बदलावों का कुछ अंदाजा अभी से लगाया जा रहा है. आज के नॉलेज में जानते हैं ऐसी दस चीजों के बारे में, जिनके अगले पांच […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 25, 2014 12:01 AM

तकनीकी विकास की प्रगति इतनी तेज है, कि अगले कुछ वर्षो में आनेवाली कई तकनीकों का अभी अंदाजा लगाना भी मुश्किल है, लेकिन कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें हो रहे बदलावों का कुछ अंदाजा अभी से लगाया जा रहा है. आज के नॉलेज में जानते हैं ऐसी दस चीजों के बारे में, जिनके अगले पांच वर्षो में यानी 2020 तक पूरी तरह बदल जाने का अनुमान लगाया जा रहा है..

रोजमर्रा की जिंदगी को सुगम बनाने के लिए दुनियाभर में वैज्ञानिक नये आविष्कारों में जुटे हैं. खासकर तकनीक के क्षेत्र में हो रही प्रगति ने पिछले कुछ दशकों में रहन-सहन के तौर-तरीके को काफी बदल दिया है. नयी तकनीकों के जरिये रोजमर्रा की चीजों से लेकर संचार-संपर्क व इलाज के तरीकों में व्यापक बदलाव आया है. इसमें कुछ चीजें हमारी जिंदगी से पीछे छूटती चली जाती हैं, जबकि कुछ नयी चीजें उसका स्थान ले लेती हैं. आज हम ऐसी दस तकनीक के बारे में चर्चा करेंगे, जिनके अगले पांच वर्षो यानी 2020 तक पूरी तरह से बदल जाने की उम्मीद की जा रही है. इसमें चिकित्सा, ऊर्जा, पर्यावरण और संचार जैसे अलग-अलग क्षेत्रों की तकनीक शामिल हैं.

स्टेम सेल्स से बदले जायेंगे अंग

पिछले दशक में स्टेम सेल्स के इस्तेमाल से विभिन्न प्रकार के उतकों, हड्डियों और मांस को विकसित करने में सफलता पायी गयी है. ‘फ्यूचरटाइमलाइन डॉट नेट’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कैंसर के मरीज में सांस की नली को रिप्लेस करते हुए 2011 में पहला पूर्ण सिंथेटिक ऑर्गन ट्रांसप्लांट किया गया था. उससे यह उम्मीद कायम हुई थी कि अब और भी ज्यादा जटिल मानवीय अंगों को विकसित किया जा सकेगा. पिछले तीन वर्षो की प्रगति को देखते हुए अब संभावना जतायी जा रही है कि 2020 तक वैज्ञानिक उस मुकाम तक पहुंच पायेंगे, जब हृदय से जुड़े तमाम शारीरिक अंगों को पूरी तरह से ट्रांसप्लांट किया जा सकेगा. साथ ही किसी अंग के लिए ‘बाहरी दाता’ की जरूरत भी खत्म हो जायेगी.

इसमें ‘रिजेक्शन’ की संभावना नहीं होगी, क्योंकि वह अंग मरीज से आनुवंशिक तौर पर मिलत-जुलता होगा. कार्डियोवैस्कुलर डिजीज से पीड़ितों के लिए इलाज की यह तकनीक वरदान साबित हो सकती है. मालूम हो कि दुनियाभर में हृदय से संबंधित बीमारियों से सालाना करीब डेढ़ करोड़ लोगों की मौत होती है. इस तकनीक के विकसित होने से वैश्विक तौर पर आर्थिक फायदा भी होगा. अंग प्रत्यर्पण से जुड़ा हेल्थकेयर का वैश्विक खर्चा करीब 350 डॉलर के करीब है. हेल्थकेयर से जुड़े कुल खर्चो का यह आठ फीसदी हिस्सा है. उम्मीद की जा रही है कि आनेवाले समय में हार्ट के अलावा लंग्स, लिवर, किडनी, पैनक्रियाज समेत अन्य कई अंगों के प्रत्यर्पण में भी स्टेम सेल तकनीक को इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

ड्रोन से होगी पेट्रोलिंग

किसी दंगाग्रस्त इलाके में सबसे बड़ी समस्या वहां पर कानून व्यवस्था को सही तरीके से लागू करने की तात्कालिक चुनौती होती है. ऐसे इलाकों में अब तक पेट्रोलिंग या निगरानी के जितने भी तरीके मौजूद हैं, उनमें कुछ न कुछ खामियों की वजह से वे कारगर नहीं रह गये हैं. इसलिए इन इलाकों में सरकार ड्रोन के माध्यम से पेट्रोलिंग को प्रभावी बनाने के तरीके पर विचार कर रही है. उम्मीद की जा रही है कि इस तकनीक का परीक्षण सफल होने पर इसे इस कार्य में लगाया जा सकता है. हाल के दिनों में देश में कई दंगाग्रस्त इलाकों में इसका परीक्षण किया गया है. अमेरिका में हाल ही में इस संबंध में एक विधेयक पारित हुआ है. अफगानिस्तान में सैन्य कार्यो में पिछले काफी समय से इसका इस्तेमाल हो रहा है. वह दिन दूर नहीं जब आपको आसमान में इंफ्रारेड, हीट सेंसर और राडार से सुसज्जित ड्रोन मंडराते हुए दिखाई देंगे.

‘मानव केंद्रित’ इंटरनेट

आम तौर पर आधुनिक दौर के विकास को इंटरनेट से जोड़ा जाता है. इंटरनेट का स्पष्ट रूप से मतलब-वर्ल्ड वाइड वेब- मोबाइल डिवाइसेस-बिग डाटा/ क्लाउड है, जिसके बिना विकास की कल्पना कोरी है. विकास के अगले चरण में मानव इंटरनेट के ज्यादा करीब हो जायेगा या कहें इंटरनेट आम जिंदगी का महत्वपूर्ण घटक बन जायेगा. इंटरनेट से जुड़ी चीजें जरूरतों के केंद्र के रूप में काम करेंगी. तकनीकी विकास के क्रम में हमारे डिवाइसेस में उपलब्ध फंक्शन व फीचर प्राप्त की गयी सूचनाओं के चयन व निर्माण में मददगार साबित होंगे. विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य का मानवकेंद्रित इंटरनेट काल्पनिक विज्ञान में दिखाये जाने वाले आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसा नहीं होगा, बल्कि जैसे-जैसे समाज का विकास होगा, इसमें व्यापक बदलाव आयेगा और यह मानव जीवन के बेहद करीब पहुंच जायेगा.

सस्ती सोलर ऊर्जा तकनीक

वर्ष 2020 तक सौर ऊर्जा तकनीकें वैश्विक ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभायेंगी. सौर ऊर्जा तकनीक जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने, बिजनेस व उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए मददगार साबित होगी. नये अविष्कारों की मदद से सौर ऊर्जा की मौजूदा तकनीकों में आने वाली लागत में कमी आयेगी, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस तकनीक की पहुंच होगी. सोलर माडय़ूल निर्माताओं द्वारा कच्चे माल के रूप में पोलीसिलिकॉन का प्रयोग किया जाता है, जो सोलर सप्लाई चेन में सबसे महंगा पड़ता है. आने वाले वर्षो में पॉलीसिलिकॉन का व्यावसायिक स्तर उत्पादन होने पर सोलर इंडस्ट्री में नया बदलाव आ सकता है. सस्ता और सुलभ होने पर दुनियाभर में ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सोलर इंडस्ट्री महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी.

जल शोधन और प्रबंधन के नये आयाम

जल हमारे जीवन के लिए अमूल्य है. भले ही हमारी धरती का दो-तिहाई से ज्यादा हिस्सा जल से भरा हुआ है, लेकिन इंसानों के लिए उपलब्ध पेयजल की मात्र इसकी तुलना में बहुत ही कम है. दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही आबादी को शुद्ध पेयजल मुहैया कराना भविष्य की बड़ी चुनौतियों में शामिल है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, उपलब्ध पेयजल 75 प्रतिशत जल प्रदूषित है. जल प्रबंधन में निवेश की कमी के कारण प्रदूषित जल मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है. इस दिशा में उच्च लागत, बड़े स्तर पर ऊर्जा मांग, मौजूदा जल शोधन व जल प्रबंधन जैसी बड़ी समस्याएं हैं. वर्ष 2020 तक वितरण व्यवस्था, बायोटेक्नोलॉजी की मदद से खराब जल से ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकेगा. जल का वैश्विक स्तर पर प्रबंधन करने में कई तकनीकी मौजूदा लागत मू्ल्यों में कमी लायेंगी और अन्य मामलों में लोगों के लिए मददगार साबित होगी. जल संसाधनों से आम लोगों को जलापूर्ति व ऊर्जा जरूरतों को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है. बरबाद होने वाले पानी को भी भविष्य में एक संपत्ति के रूप में इस्तेमाल में लाकर विकास की गति को तेज किया जा सकेगा. वाटर ट्रीटमेंट की मौजूदा तकनीकों का भारत जैसे विकासशील देशों में अभी व्यापक स्तर पर विकास नहीं हो पाया है. ‘वाटर डी-सैलिनेशन’ यानी समुद्री जलों से धातुओं के अवक्षेपण की तकनीक (उसमें मौजूद हानिकारण तत्वों को निकालने) कुछ विकासशील देशों में प्रयोग में लायी जा रही है. उम्मीद की जा रही है कि आगामी वर्षो में ‘वाटर डी-सैलिनेशन’ की तकनीक व्यावसायिक जरूरतों व ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में समर्थ साबित होगी.

19वीं सदी के ग्रिड का अंत

वर्ष 2020 तक अनुमानत: दुनियाभर में विद्युतीकरण की प्रक्रिया संपन्न हो जायेगी. मानव सभ्यता के इतिहास में इसे एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है. अमेरिका और यूरोप में करीब सभी लोगों को बिजली की सुविधा मिल रही है, लेकिन लैटिन अमेरिका, अफ्रीका व एशिया के कई हिस्सों में लोग बिजली की सुविधा से अभी भी महरूम हैं. दुनियाभर में सवा अरब से ज्यादा लोग बिजली ग्रिड से नहीं जुड़ सके हैं, जबकि डेढ़ अरब से ज्यादा लोगों को नियमित रूप से बिजली की आपूर्ति नहीं मिलती. ऐसे लोग तेल के लैंप की रोशनी पर निर्भर होते हैं. जहां ग्रिड है, वहां (बड़े शहरों में भी) ब्लैक आउट की विकराल समस्या है. ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में बिजली चोरी की भी समस्या है. 19वीं सदी के ग्रिड सिस्टम के महंगा होने के कारण इन देशों में बिजली आपूर्ति को सुनिश्चित कर पाने में कई व्यावहारिक दिक्कतें हैं. नयी तकनीकों के इजाद होने से बिजनेस मॉडल में बदवाल तो आयेगा ही, साथ ही कई मुश्किल चीजें भी आसान हो जायेंगी.

कमाई के साथ पढ़ाई भी

कौशल की कमी का मतलब वास्तव में सूचनाओं का अभाव होता है. अकुशल होना बड़ी समस्या नहीं है, बल्कि समस्या यह है कि कर्मचारियों को यह पता नहीं होता कि कंपनी या संस्था को उनसे कैसी उम्मीदें होती हैं. ज्यादातर तकनीकें परंपरागत नौकरियों को खत्म कर रही हैं और अपने साथ नयी संभावनाएं लेकर आ रही हैं. ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम’ के मुताबिक, वर्ष 2010 में जिन 10 जॉब्स में ज्यादा मांग थी, छह साल पहले उनमें से ज्यादातर के बारे में कोई जानता भी नहीं था. चीजें तेजी से बदल रही हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका में आज की तारीख में ग्रेड स्कूल में पढ़ रहे 65 प्रतिशत बच्चों के लिए भविष्य की नौकरी का अभी अविष्कार नहीं हुआ है. भविष्य में तकनीकें मार्केट में आने वाले बदलावों के मुताबिक कर्मचारियों को शिक्षा व प्रशिक्षण में मददगार होंगी. प्रशिक्षण और ऑनलाइन पाठय़क्रमों के माध्यम से कार्यरत कर्मचारी कौशल विकास का अपना मार्ग प्रशस्त कर सकेंगे.

होलोग्राफिक टीवी हावी हो सकता है एचडी टीवी पर

कई वर्षो के विकास के क्रम और लागत में कमी होने के कारण अल्ट्रा हाइ डेफीनीशन टीवी अब उपभोक्ता मार्केट में सामान्य हो चुकी है. हालांकि, आने वाले समय में इसे होलोग्राफिक टीवी से कड़ी चुनौती मिलने की उम्मीद है. दरअसल, रीराइटेबल और इरेजेबल होने जैसी कई खासियतों के कारण इसकी लोकप्रियता बढ़ सकती है. पिछले तीन दशकों से यह तकनीक विकास के क्रम में है. भले ही इसे अभी विलासी चीजों में शामिल किया जाता हो, लेकिन आनेवाले समय में इसकी लागत कम होगी और होलोग्राफिक स्क्रीन्स लोकप्रिय हो सकते हैं. इस तकनीक के विकसित होने पर इससे ज्यादा बड़ी और शार्प इमेज डिस्प्ले होगी. इस स्क्रीस को (इमेज राइटिंग लेजर के साथ) दिवार में फिक्स किया जा सकता है. जापान और सुदूर पूर्व के देशों में होलोग्राफिक टीवी आरंभिक दौर में लोकप्रियता हासिल कर चुकी है और अब इसके पूरी दुनिया में छाने की उम्मीद है.

मरकरी प्रदूषण में आयेगी कमी

मरकरी को क्विकसिल्वर के नाम से भी जाना जाता है. यह एक भारी और सिल्वर टाइप का पदार्थ है और एकमात्र ऐसा मेटल है जो कमरे के तापमान पर द्रव अवस्था में मौजूद रहता है. इसका उपयोग मुख्य रूप से औद्योगिक रसायनों, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, थर्मोमीटर के निर्माण में होने के साथ फ्लोरेसेंट लैंप में होता है. त्वचा और श्लेष्मा ङिाल्ली के माध्यम से शरीर में पहुंचने वाला मरकरी और उसके यौगिक अत्यधिक घातक होते हैं. इससे ब्रेन और न्यूरोलॉजिकल शारीरिक नुकसान समेत, जन्मजात अपंगता, किडनी डैमेज जैसे दुष्प्रभाव सामने आते हैं. 21वीं सदी के आरंभ में सबसे ज्यादा मरकरी का उत्सजर्न सोने की खदानों से हुआ. जीवाश्म ईंधनों का दहन इसका सबसे बड़ा स्नेत बने चुके हैं. बैट्री, ऑटोमाबाइल और फ्लोरेसेंट बल्बों को ठीक से डिस्पोजल नहीं किये जाने के कारण भी पर्यावरण में व्यापक मात्र में यह फैल रहा है. उम्मीद की जा रही है कि नयी तकनीकों से ऊर्जा उत्पादन से इसे फैलने से रोका जा सकता है. साथ ही पर्यावरण में मरकरी पैदा करने वाले तत्वों को समुचित तरीके से निबटारा करने से यह समस्या खत्म हो सकती है.

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