एक झटके में बदल दिये जाते हैं अफसर
झारखंड में कुछ बेहतर अधिकारी भी हैं, जो नियम-कानून के दायरे में राज्य और लोक हित में काम करने की कोशिश करते हैं. पर, उन्हें ऐसा करने नहीं दिया जाता. गलत दबाव दिये जाते हैं. नाराज सरकार अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर इन अफसरों का तुरंत तबादला कर देती है. पर पिछले 14 वर्षो में […]
झारखंड में कुछ बेहतर अधिकारी भी हैं, जो नियम-कानून के दायरे में राज्य और लोक हित में काम करने की कोशिश करते हैं. पर, उन्हें ऐसा करने नहीं दिया जाता. गलत दबाव दिये जाते हैं. नाराज सरकार अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर इन अफसरों का तुरंत तबादला कर देती है.
पर पिछले 14 वर्षो में इसे कभी किसी राजनीतिक दल ने मुद्दा नहीं बनाया. प्रभात खबर चाहता है कि ऐसे मुद्दे राजनीति के एजेंडे बने, ऐसे ही सवालों ( कुशासन, नेताओं के बेतहाशा भ्रष्टाचार, नेताओं की पत्नियों
रिश्तेदारों की बढ़ती बेशुमार दौलत जैसे सवालों) के उठने से झारखंड की नियति बदलेगी!
शकील अख्तर, रांची
झारखंड में अधिकारियों का नेताओं के साथ मतभेद का कारण गिफ्ट कल्चर का विरोध, निजी लाभ के लिए खरीद, राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कानून को ताक पर रख कर काम कराने का दबाव सहित कई अन्य मुद्दे शामिल हैं.
वित्त सचिवों को तबादला : राज्य में इस तरह का सबसे पहला तबादला वर्ष 2001-2002 में किया गया. तत्कालीन वित्त सचिव को इसलिए हटा दिया गया था, क्योंकि उन्होंने बजट पास कराने के लिए विधायकों को गिफ्ट दिये जाने के प्रस्ताव का विरोध किया था. सरकार चाहती थी कि सभी विभाग अपना बजट पास कराते समय विधायकों को गिफ्ट दें. वित्त सचिव ने इसका विरोध किया था. उन्होंने तर्क दिया था कि ऐसा करने से नागरिकों में गलत संदेश जायेगा और लोगों में कुछ ले देकर काम कराने की परंपरा शुरू होगी. उन्होंने अपना विरोध दर्ज कराते हुए कहा था कि जब सरकार ही गिफ्ट देकर अपना काम करायेगी, तो लोगों के लिए यह अपराध कैसे होगा. तत्कालीन वित्त सचिव का यह तर्क नेताओं को पसंद नहीं आया. इस कारण उनका तबादला कर दिया गया और गिफ्ट कल्चर की परंपरा कायम कर ली. इसके बाद एक और वित्त सचिव का तबादला सिर्फ इसलिए कर दिया गया था कि उनका कानूनी बिंदुओं पर राजभवन से विवाद हो गया था.
विवाद इस बिंदु पर हुआ था कि राजभवन की गाड़ी पर होनेवाला खर्च ‘चाजर्ड एक्सपेंडेचर’ (वैसे खर्च, जिसे चुकाने के लिए सरकार मजबूर है) है या वोटेड (वैसे खर्च, जिसे चुकाना सरकार की मरजी पर है).
हाल ही में एक वित्त सचिव का तबादला इसलिए कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने कर्ज लेकर 5710 करोड़ का बिल चुकाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. साथ ही बोर्ड में वेतन बढ़ोतरी के प्रस्ताव पर जानना चाहा था कि इस बढ़े हुए खर्च का बोझ कौन उठायेगा, सरकार या बोर्ड.
मुख्य सचिव से विवाद : राज्य के पहले मुख्य सचिव वीएस दुबे के साथ भी सरकार का मतभेद हुआ था. मामला आदिवासी कल्याण से जुड़े निर्माण कार्य का था. सरकार नोमिनेशन पर खास कंपनियों को काम देना चाहती थी. मुख्य सचिव इसके पक्ष में नहीं थे. उनका तर्क था कि बड़ी कंपनियां नोमिनेशन पर काम लेंगी और उसका टेंडर कर झारखंड के ही ठेकेदारों से काम करायेंगी.
इससे राज्य को आर्थिक नुकसान होगा. उनके विरोध के कारण उन्हें आदिवासी विरोधी बताया गया. यही नहीं, कैबिनेट से नियम शिथिल करा कर नोमिनेशन पर कंपनियों को काम दे भी दिया गया. बाद में इन कंपनियों ने टेंडर करा कर स्थानीय ठेकेदारों से ही निर्माण कार्य कराया.
तत्कालीन मुख्य सचिव इससे इतने नाराज हुए कि उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर उनकी जगह दूसरे को मुख्य सचिव बनाने का अनुरोध किया. इसके बाद तो झारखंड में नोमिनेशन पर काम देने की परंपरा विकसित हो गयी. दो साल पहले महालेखाकार ने भी अपनी ऑडिट रिपोर्ट में इस परंपरा से राज्य को होनेवाले नुकसान का जिक्र किया था.
महालेखाकार ने उदाहरण के लिए 500 बेड के सदर अस्पताल का निर्माण नोमिनेशन पर देने और संबंधित कंपनी की ओर से स्थानीय ठेकेदारों से कम पैसे में काम कराने के मामले का जिक्र किया.
कल्याण सचिव का तबादला : कल्याण मंत्री की नाराजगी के कारण एक कल्याण सचिव का तबादला कर दिया गया था. मामला वर्ष 2004 का है. मंत्री इस बात पर अड़े थे कि जब तक सचिव का तबादला नहीं होगा, वह दफ्तर नहीं जायेंगे. मंत्री की नाराजगी कब्रिस्तान आदि की घेराबंदी में पैसों के आवंटन को लेकर थी. सचिव चाहते थे कि आबादी के फॉरमूले के हिसाब से सभी क्षेत्रों में राशि का आवंटन किया जाये. पर मंत्री सारी राशि अपने ही क्षेत्र में खर्च करने पर अड़े थे.
तबादले के कुछ उदाहरण
हाल ही में प्रधान सचिव स्तर के एक अधिकारी का तबादला इस कारण कर दिया गया, क्योंकि वह नियुक्तियों में सरकारी नियमों का पालन कराने को लेकर अड़े थे. आरोपियों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करने का विरोध कर रहे थे. उन्होंने कार्यपालिका नियमावली के प्रावधानों का उल्लंघन कर किसी विषय को कैबिनेट की बैठक में पेश करने का विरोध भी किया था.
सरकार ने एक स्वास्थ्य सचिव का तबादला कुछ ही दिनों में कर दिया था.
कारण था, वह डॉक्टरों से समय पर डय़ूटी जाने के लिए सख्ती से पेश आ रहे थे. राज्य में चलनेवाले प्राइवेट नर्सिग होम और अस्पतालों से पूछा था कि उनके यहां कौन-कौन से सरकारी डॉक्टर डय़ूटी करते हैं और वह कब से कब तक मरीजों को देखते हैं.
स्वास्थ्य विभाग के एक विशेष सचिव का तबादला मंत्री के आप्त सचिव की बात नहीं मानने को लेकर कर दिया गया था. मंत्री के आप्त सचिव ने फैक्स और फोन आदि की मांग की थी. विशेष सचिव ने नियम विरुद्ध बता कर इनकार कर दिया था.
रात 12 बजे भी किया गया तबादला
मामला 2008 में जमशेदपुर का है. एक राजनीतिक दल सरकारी जमीन पर अपने नेता की प्रतिमा लगाना चाहता था. जमशेदपुर के तत्कालीन उपायुक्त ने इसका विरोध किया. इसके बाद रात 12 बजे उनके तबादले का आदेश जारी कर दिया गया.
वहीं दूसरी तरफ
गलत अधिकारियों को मिल रहा प्रोत्साहन
– पांच करोड़ रुपये में चार पौधा लगानेवाले एक उपायुक्त के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की अनुशंसा तत्कालीन मंत्री ने खारिज कर दी.
– बच्चों की किताब में गड़बड़ी के आरोपी प्रधान सचिव स्तर के एक अधिकारी के खिलाफ निगरानी या सीबीआइ जांच की अनुशंसा ठुकरा दी. जांच के लिए समिति बनायी, जिसकी आज तक बैठक नहीं हुई.
– स्वर्ण रेखा परियोजना में करीब 13 करोड़ की सरकारी जमीन अपने ही स्तर से बिल्डरों को देनेवाले अधिकारी को जल संसाधन विभाग का सचिव बना दिया गया.
– नक्शा घोटाले में जेल से छूटे एक अधिकारी का निलंबन वापस कर एक मंत्री ने अपने क्षेत्र में जिला अभियंता के पद पर पदस्थापित कर दिया.