ऐसा जज, जिसने कभी समझौता नहीं किया

।। प्रशांत भूषण ।। (वकील, सुप्रीम कोर्ट)सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जेएस वर्मा में हर वो खूबी थी जो एक जज में होनी चाहिए. ईमानदार थे. सख्त थे. समझौता तो कभी किया ही नहीं. रिटायरमेंट के बाद जब सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व न्यायाधीश आर्बिट्रेशन(आयोग आदि से जुड़ना) से जुड़ जाते हैं, वहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:29 PM

।। प्रशांत भूषण ।।
(वकील, सुप्रीम कोर्ट)
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जेएस वर्मा में हर वो खूबी थी जो एक जज में होनी चाहिए. ईमानदार थे. सख्त थे. समझौता तो कभी किया ही नहीं.

रिटायरमेंट के बाद जब सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व न्यायाधीश आर्बिट्रेशन(आयोग आदि से जुड़ना) से जुड़ जाते हैं, वहीं जस्टिस वर्मा ने अपना काफी समय आम जनता से जुड़े कामों में लगाया. यूं तो भारत के हर मुख्य न्यायाधीश के फैसले देश की तकदीर को प्रभावित करते हैं और करते रहेंगे, लेकिन जस्टिस जेएस वर्मा अपने फैसलों के कारण सर्वश्रेष्ठ न्यायाधीशों की सूची में रखे जा सकते हैं. जस्टिस वर्मा का सोमवार को दिल्ली के एक अस्पताल में 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया.

इतनी उम्र के बावजूद जस्टिस वर्मा देश के भले के लिए काम करते रहे. यही वजह है कि उनके जाने की खबर से हर कोई अवाक रह गया. फिर भी यही सत्य है कि जस्टिस जेएस वर्मा अब इस नश्वर संसार से जा चुके हैं.

* कई अहम फैसले : साल 1991 में सामने आये जैन हवाला कांड से जुड़े मुकदमों में जस्टिस जेएस वर्मा ने सीबीआइ और केंद्रीय सतर्कता आयोग पर कई कड़ी टिप्पणियां की, जो आगे चल कर पूरे देश में पुलिस सुधारों का कारण बनी. उनका एक फैसला था जिसने पहले न्यायपालिका की स्वतंत्रता को मजबूत बनाया लेकिन बाद में वही उसमें खराबी का कारण बना.

जस्टिस जेएस वर्मा के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनने के पहले भारत में सर्वोच्च अदालतों में नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप बहुत ज्यादा रहता था. उनके फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्तियों के अधिकार अपने हाथों में ले लिये. जिस वक्त उन्होंने वह फैसला सुनाया था उस वक्त के लिए यह सही था. लेकिन बाद में अदालतें और जज इस फैसले की आड़ में निरंकुश हो गये और वही सब करने लगे जो राजनेता कर रहे थे.

जस्टिस जेएस वर्मा को इस बात का बाद में बेहद पछतावा था. वह यह मानते थे कि वो समझ ही नहीं पाये कि आनेवाली पीढ़ियों के जज इस फैसले का किस तरह दुरुपयोग करेंगे. लेकिन यह उनकी महानता ही थी कि बाद में उन्होंने ही न्यायपालिका में व्यापक सुधारों के लिए चल रहे अभियान में जम कर शिरकत की और जजों के लिए एक ऐसी नियुक्ति प्रक्रि या की बात की, जो अधिक पारदर्शी हो.

* कुछ अलग फैसले : लेकिन जस्टिस जेएस वर्मा के हर फैसले से मैं सहमत हूं, ऐसा मैं नहीं कह सकता सकता. मसलन उनका वो फैसला जिसमे उन्होंने कहा था की ‘हिंदुत्व’ कोई धर्म नहीं है यह एक जीवन जीने का तरीका है. यह बात उन्होंने बाल ठाकरे के एक विवादित भाषण के संदर्भ में कही थी अगर बाल ठाकरे के भाषण को भड़काऊ ना कहें तो किसको कहें. लेकिन यही जस्टिस जेएस वर्मा थे जिन्होंने मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष रहते हुए जिस तरह से गुजरात सरकार पर टिप्पणी की वो काबिले तारीफ है.
(ये लेखक की निजी राय है)
साभार: बीबीसी

– जस्टिस जगदीश शरण वर्मा
जस्टिस वर्मा 1994 में गठित उस नौ सदस्यीय पीठ में शामिल थे, जिसने आर बोम्मई बनाम कर्नाटक में धारा 356 के तहत लगाये गये राष्ट्रपति शासन के मामले में फैसला दिया था. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि राष्ट्रपति शासन केवल संसद की मुहर लगने पर ही लगायी जा सकती है.

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