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मधु लिमये : व्यवस्था का प्रश्न है

* जन्मदिन पर विशेष।। चंचल ।।..और मधुलिमये ने फैसला कर लिया कि वे अब सक्रिय राजनीति से हट जायेंगे. राजनीतिक घरानों और जनसंचार के माध्यमों ने उनकी इस बात पर यकीन नहीं किया, यहां तक कि जो उनके साथ लंबे अरसे से जुड़े रहे उन्हें उन्हें भी मधु जी की घोषणा हल्की लगी. आजादी की […]

* जन्मदिन पर विशेष
।। चंचल ।।
..और मधुलिमये ने फैसला कर लिया कि वे अब सक्रिय राजनीति से हट जायेंगे. राजनीतिक घरानों और जनसंचार के माध्यमों ने उनकी इस बात पर यकीन नहीं किया, यहां तक कि जो उनके साथ लंबे अरसे से जुड़े रहे उन्हें उन्हें भी मधु जी की घोषणा हल्की लगी. आजादी की लड़ाई, फिर गोवा की लड़ाई और आजाद भारत में समाजवादी आंदोलन की अगुआई करनेवाले मधु लिमये जिन्होंने चार बार संसद में जबरदस्त भूमिका अदा की हो, वह अचानक राजनीति से हटने की बात करें, इस पर किसे यकीन होगा? लेकिन मधु जी ने यह कर दिखाया

एक दिन एक अजीब-सी घटना घटी. उनके दिल्ली के पंडारा रोड स्थित आवास पर शाम चार बजते-बजते लोगों की भीड़ जुट जाती थी. इसमें हर क्षेत्र के लोग शामिल रहते. पत्रकार, संगीतकार, लेखक, नेता ( केवल समाजवादी ही नहीं तकरीबन हर दल के लोग) आ जाते. एक दिन प्रोफेसर राजकुमार जैन ने कोई राजनीतिक सवाल उठाया. मधु जी ने डांटा- अब हमसे राजनीति की बात मत किया करो. कहते हुए मधु जी उठे और दीवार पर लटके कलेंडर पर मार्कर से लिखा – यहां राजनीति या समाजवाद पर बात नहीं होगी. और बातचीत का विषय बदल गया.

पंडित भीमसेन जोशी, किशोरी अमोनकर और बेगम अख्तर पर बात होने लगी. अचानक मधु जी उठे और एक कैसेट लगाया. पंडित भीमसेन जोशी का-‘ बिछुआ बाजे रे ..’ उस दिन पहली बार संगीत की बारीकी पर मधु जी बोल रहे थे और हम सब समझ रहे थे. बिछुआ की आवाज पनघट पर जिस तरह की होगी, वह सेज पर उस तरह की नहीं होगी. अगली लाइन ने सब बता दिया-‘ सुन पावे मोर सास ननदिया और जागे दूजे जेठानिया .. बिछुआ ..’

बहरहाल हम लोग सांझ की सोहबत में संगीत आर्ट लेखन पत्रकारिता पर डूबते-उतराते रहे. एक दिन ललित गौतम ने मुझसे कहा यार आज मधु जी से राजनीति पर कुछ सुना जाये. ( उस समय मधु जी अंदर के कमरे में कुछ लिख रहे थे ) हमने ललित गौतम को वह कलेंडर दिखाया जिस पर मधु जी का एलान लिखा था. ललित ने धीरे से मेरे कान में कहा, इसमें क्या है कलेंडर को धीरे से उलट कर सीधा कर दो. मैंने वही किया. थोड़ी देर बाद मधु जी आये और अपनी कुर्सी पर बैठ गये.

उस दिन वहां पर ओड़िशा के समाजवादी नेता और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रवि रे भी मौजूद थे. राज कुमार जैन ने मधु जी से पूछा – मधु जी, यह जो समाजवादी आंदोलन का बिखराव है कभी जुड़ेगा भी कि खत्म ही हो जायेगा. मधु जी ने लगभग चीखते हुए (यह उनके बोलने का अंदाज था ) बोले इसे नहीं पढ़े हो.. कहते हुए जब कलेंडर को देखा तो वह पलटा हुआ पड़ा मिला.

मधु जी को भी हंसी आ गयी . बोले यह किसने किया? सब चुप. मधु जी ने हमारा नाम लिया और बोले इसे सीधा करो, यह तुम्हारा ही काम होगा. उठते-उठते हमने भी टिप्पणी दे दी – जिसे बड़े-बड़े नहीं सीधा कर पाये उसे हम पलट रहे हैं. एक जोर का ठहाका लगा. अब लगता है कि मधु जी ने देश के राजनीति की फिसलन को उसी समय भांप लिया था. आज पहली मई है, मधु जी का जन्म दिन. पुष्पांजलि अर्पित करता हूं.
(लेखक प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक हैं)

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