दलित मतदाताओं को लुभाने में लगी हैं पार्टियां
झारखंड में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की नजर दलित वोटरों पर खास है. राजनीतिक विषेशकों की मानें, तो कुल आबादी में से 13 प्रतिशत आबादी दलितों की है. दलित वोटों पर भाजपा, झामुमो व झाविमो की सेंधमारी शुरू हो गयी है. इसका परिणाम पहले और दूसरे चरण के प्रचार के दौरान देखने को मिला. भाजपा-लोजपा-आजसू […]
झारखंड में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की नजर दलित वोटरों पर खास है. राजनीतिक विषेशकों की मानें, तो कुल आबादी में से 13 प्रतिशत आबादी दलितों की है. दलित वोटों पर भाजपा, झामुमो व झाविमो की सेंधमारी शुरू हो गयी है. इसका परिणाम पहले और दूसरे चरण के प्रचार के दौरान देखने को मिला.
भाजपा-लोजपा-आजसू गंठबंधन ने दलित वोटरों को अपनी ओर खिंचने के लिए केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की कई चुनावी सभाएं करायी. श्री पासवान पलामू प्रमंडल के छह चुनावी सभाओं में शामिल हुए. इतना ही नहीं राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद, जदयू के अध्यक्ष शरद यादव, बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, बसपा प्रमुख मायावती, राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी, भाकपा माले नेता विनोद सिंह, राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य समेत कई अन्य नेताओं ने चुनावी सभाओं में दलितों को हक और अधिकार दिलाने की बातें कहीं.
झाविमो सुप्रीमो की भी नजर स्वर्ण और दलित वोटरों पर है. लोजपा के झारखंड प्रभारी सूरजभान सिंह और प्रदेश अध्यक्ष बब्बन गुप्ता ने भी पार्टी की नीतियों के अनुरूप दलित वोटरों के बीच जनसंपर्क अभियान चलाकर भाजपा और आजसू के प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान की अपील कर रहे हैं. राज्य में आंबेडकर सामाजिक ट्रस्ट के गणोश रवि की मानें, तो दलित सामाजिक और सरकारी तंत्र के फ्रंट पर पिछड़े हैं.
दलितों की शिक्षा और सामाजिक उत्थान के प्रति सरकार का उदासीन रवैया रहा है. इसे पाटने की जुगत सभी दल कर रहे हैं. दलित महिलाएं आज भी रोजगार की तलाश में अधिक पलायन करती हैं. गांवों की सामाजिक रूप-रेखा में भी दलितों और अगड़ों के बीच की खाई जस की जस है. इन विसंगतियों को दूर करने के वायदे भी राजनीतिक दलों की ओर से किये जा रहे हैं. दलों के नेता इस जमात को अपने पक्ष में करने के लिए हर तरह का हथकंडा भी अपना रहे हैं.