सामाजिक-आर्थिक बदलाव की चाहत
प्रभात खबर और सी-वोटर ने पहले चरण के मतदान को लेकर 10 से 20 नवंबर तक 13 सीटों पर अपना सर्वेक्षण किया था. इसके लिए त्वरित आधार पर 5292 चयनित मतदाताओं से उनकी राय ली गयी. यह ओपिनियन पोल अपने किस्म का विशिष्ट सर्वेक्षण है, जो झारखंड की जनता के मानस को दर्शाता है. झारखंड […]
प्रभात खबर और सी-वोटर ने पहले चरण के मतदान को लेकर 10 से 20 नवंबर तक 13 सीटों पर अपना सर्वेक्षण किया था. इसके लिए त्वरित आधार पर 5292 चयनित मतदाताओं से उनकी राय ली गयी. यह ओपिनियन पोल अपने किस्म का विशिष्ट सर्वेक्षण है, जो झारखंड की जनता के मानस को दर्शाता है.
झारखंड के मन-मिजाज को समझना ही इस सर्वेक्षण का उद्देश्य था. इस ओपीनियन पोल में राज्य में सामाजिक-आर्थिक बदलाव के संकेत मिले हैं. खनिज संसाधनों से समृद्ध इस राज्य में नयी सरकार बननेवाली है.
चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण के कई बिंदु सामने उभर कर आये हैं, उसमें झारखंड की सामाजिक-आर्थिक फॉल्टलाइन साफ दिखती है. राज्य के मतदाता अब भी जनजातीय और गैर जनजातीय कैंपों में विभक्त हैं. भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, खराब गवर्नेस, भूमि अधिग्रहण और विकास को लेकर मतदाताओं के मनोभाव में बेचैनी भी देखी गयी है. राज्य में देश के अन्य प्रांतों की तरह विकास और आर्थिक प्रबंधन के पैमाने की गंभीरता पर भी तवज्जो दी जा रही है.इस सर्वेक्षण और शोध की श्रृंखला में सभी 81 सीटों को कवर किया जा रहा है.
यह पहला अवसर है, जब झारखंड में गुड गवर्नेस रिपोर्ट कार्ड को बनाने की पहल की गयी है. आज पढ़िए झारखंड विधानसभा के पहले चरण के विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं की राय का विश्लेषण.
पहले चरण के मतदान के बाद वोटरों ने रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े जन सरोकार के मुद्दों पर अपना उत्तर दिया. जब यह पूछा गया कि पिछले पांच वर्ष में विकास का पैमाना क्या रहा. इसमें 17.7 फीसदी लोगों ने दावा किया कि स्थिति ठीक-ठाक है. 42.6 प्रतिशत ने विकास कार्यो पर विचार करने की बातें कहीं, जबकि 26.8 फीसदी रिस्पांडेंट्स ने विकास के मानक को खराब बताया. मतदान प्रभावित करने के कारणों को पूछे जाने पर 33.2 प्रतिशत ने माना कि उम्मीदवारों के आधार पर वोट डाले जाते हैं. 18.7 प्रतिशत ने पार्टी लाइन को आधार बताया. मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार से संबंधित प्रश्न पर 10 प्रतिशत लोगों ने ही वोट को फैक्टर बताया. नक्सलवाद की समस्या की व्याख्या पर 37 प्रतिशत मतदाताओं ने इसे बेरोजगारी से जोड़ा. इसके अतिरिक्त साक्षरता की कमी और नियुक्ति का अवसर नहीं मिलने को 19.7 प्रतिशत लोगों ने नक्सली समस्या का वजह माना.
राज्य के एक तिहाई मतदाता उम्मीदवार के व्यक्तिगत छवि को देख कर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं. ये करिश्माई नेता अथवा संगठन को आधार नहीं मानते हैं. मतदाता यह सोचते हैं कि चुने गये प्रतिनिधि उनकी चाह और जरूरत का ख्याल रखेंगे. पर मतदाताओं की सोच के अनुरूप निर्वाचित नेता खरे नहीं उतरते हैं.
पहले चरण के सर्वेक्षण में 13 विधानसभा सीट के 18-23 प्रतिशत मतदाताओं ने पिछले पांच वर्ष की सुविधाओं को बेहतर होने की बातें कहीं. झारखंड में बिजली सड़क और पानी (बीएसपी) के पैमाने पर हर पांचवां व्यक्ति सोचता है. 60 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं का मानना है कि पिछले पांच वर्षो में बीएसपी की स्थिति गड़बड़ाई है. सिर्फ 1/5 मतदाता ही झारखंड में फीलगुड फैक्टर के बारे में सोचते हैं. जबकि दो तिहाई मतदाता मानते हैं कि स्थितियां काफी खराब हो गयी हैं.
पहले चरण के चुनाव में र्वतमान विधायक, मुख्यमंत्री और राज्य सरकार भी एंटी इंकंबेंसी फैक्टर से जूझ रहे हैं. 17 फीसदी मतदाता तत्काल बदलाव चाहते हैं, जबकि 13.5 प्रतिशत मतदाता मुख्यमंत्री बदलना चाहते हैं, जबकि 8.8 फीसदी मतदाता दूसरी सरकार बनाना चाहते हैं. इसी तरह 3.3 प्रतिशत मतदाता सीटिंग सांसद, 3.4 प्रतिशत मतदाता प्रधानमंत्री और 3.2 प्रतिशत मतदाता देश में बदलाव चाहते हैं.
झारखंड विधानसभा की सीटों का वितरण भी इसी अनुरूप किया गया है. कुल 81 सीटों में से 44 अनारक्षित, नौ अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित और 28 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. इसलिए जनजातीय वोटरों और नेताओं की भूमिका किसी भी सरकार के गठन में महत्वपूर्ण रहेगी. राज्य के महत्व के बारे में जनजातीय मतदाता इस मुद्दे पर अलग से विचार रखना चाहते हैं. जोर देने पर अनुसूचित जनजाति के वोटरों ने सीटिंग विधायक, राज्य सरकार ओर लगभग दो से तीन प्रतिशत मतदाता मुख्यमंत्री को बदलने के पक्ष में हैं. यह गैर जनजातीय मतदाताओं की तुलना में कम है.
इसी प्रकार केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री और सांसद को बदलने में सिर्फ दो से तीन प्रतिशत मतदाता ने ही अपना रूझान दिखाया.
जनजातीय आबादी के बीच नक्सल की समस्या सबसे विकराल है. 38 प्रतिशत गैर जनजातीय वोटरों ने नक्सली समस्या के लिए बेरोजगारी को मुख्य सवाल बताया. वहीं, जनजातीय मतदाताओं में इसको लेकर भिन्नता है. 27.5 प्रतिशत जनजातीय मतदाता बेरोजगारी और 15 फीसदी मतदाता भूमि अधिग्रहण को नक्सल समस्या को मुख्य कारण बताते हैं. पहले चरण में 22 प्रतिशत जनजातीय मतदाताओं ने अशिक्षा को नक्सली गतिविधियों के विस्तार का कारण बताया. 19 प्रतिशत गैर जनजातीय मतदाताओं ने अशिक्षा की वजह से नक्सलवाद को बढ़ोत्तरी करने का कारण बताया था.
पूर्वी भारत में झारखंड राज्य के भौगोलिक और आर्थिक महत्व को अलग नजरिये से देखा जा रहा है. मतदाताओं के बीच मुख्य चुनावी मुद्दे और स्थितियों को लेकर बड़ी खाई भी है. हालांकि मतदाता पूर्व के अनुभव, जिसमें धोखा और नेतृत्व के खरा नहीं उतरने जैसे प्रदर्शन को भी आंक रहे हैं. मतदाताओं का उत्साह भी चौंकानेवाला है, क्योंकि उन पर भी बेहतर झारखंड का भविष्य निर्भर है और उन्हें ही सड़कों में बने गड्ढों को भरना भी है.