भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद का अंत निकट
बांग्लादेश के साथ महत्वपूर्ण भू-सीमा समझौते पर अपने रु ख के विपरीत जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे पूरी तरह लागू करने की इच्छा जतायी है. बीते रविवार को गुवाहाटी में मोदी ने असम के लोगों को जमीन के क्षेत्रफल के नुकसान को लेकर किसी तरह की आशंका न रखने को कहा. उन्होंने कहा कि […]
बांग्लादेश के साथ महत्वपूर्ण भू-सीमा समझौते पर अपने रु ख के विपरीत जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे पूरी तरह लागू करने की इच्छा जतायी है. बीते रविवार को गुवाहाटी में मोदी ने असम के लोगों को जमीन के क्षेत्रफल के नुकसान को लेकर किसी तरह की आशंका न रखने को कहा.
उन्होंने कहा कि अपने एक महत्वपूर्ण पड़ोसी के साथ समझौते के जरिये भारत खुद को मजबूत ही करेगा.इससे घुसपैठ भी रुकेगी. गौरतलब है कि इसी सीमा समझौते को लागू कराने के लिए यूपीए सरकार 119वां संविधान संशोधन विधेयक लेकर आयी, लेकिन वह इसे पारित नहीं करा पायी. दिसंबर 2013 में, वरिष्ठ भाजपा नेता अरु ण जेटली ने इस विधेयक का पुरजोर विरोध किया था. भू-सीमा समझौते के तहत भारत और बांग्लादेश के बीच जमीन के 162 छोटे टुकड़ों की अदला-बदली की जानी है, जो बंटवारे के समय हुई गलती की वजह से एक-दूसरे के पास हैं.
मोदी ने अपना रुख बदल कर दिखाया है कि वे विदेशी नीति के रास्ते में घरेलू राजनीति को नहीं आने देंगे. भाजपा के पुराने रुख को दरिकनार कर देने से मोदी को भारत-बांग्लादेश संबंधों को नयी ऊंचाई पर ले जाने का मौका मिलेगा. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वह तीस्ता नदी के जल बंटवारे के समझौते को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं या नहीं. मनमोहन सिंह सरकार यह समझौता भी करना चाहती थी, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के तीखे विरोध के चलते उन्हें पीछे हटना पड़ा था. अगर मोदी सरकार भू-सीमा समझौते लागू करा ले जाती है, तो भारत का बांग्लादेश के साथ सीमा विवाद हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा. पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद भारत की बड़ी परेशानी है. यह सही है कि बांग्लादेश के साथ सीमा विवाद उस स्तर का नहीं है, जिस स्तर का चीन और पाकिस्तान के साथ है. लेकिन मोदी का नया रुख एक अच्छी शुरूआत है.
भारत-बांग्लादेश की जमीनी सरहद इस महाद्वीप के राजनीतिक इतिहास के हादसे का नतीजा है. ब्रिटिश राज खत्म होने से पहले हड़बड़ी में भारत का बंटवारा हुआ. जो लकीरें नक्शे पर भारत और पाकिस्तान को बांटने के लिए खींची गयीं, खास कर पूरब में, उनमें मनमानापन ही ज्यादा दिखता है. सन 1947 में हड़बड़ी में सीमांकन का एक नतीजा छीट महलों (एनक्लेव) का जन्म भी रहा. छीट महल उन छोटे-छोटे भूखंडों को कहा जाता है, जो अपने बजाय दूसरे देशों की सीमा में जमीनी द्वीप की तरह हैं.
1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश का जन्म हुआ. इसके तीन साल बाद, 1974 में भारत और बांग्लादेश ने अपनी सरहद से जुड़े मसलों के निबटारे के लिए एक समझौते पर दस्तखत किये. लेकिन यह बदकिस्मती ही कही जायेगी कि आज चार दशक बाद भी 111 भारतीय छीट महल बांग्लादेश के अंदर हैं और 51 बांग्लादेशी छीट महल भारतीय क्षेत्र में हैं. इन छीट महलों के निवासी आज भी इस इंतजार में हैं कि उन्हें बता दिया जाये कि वे किस देश के नागरिक हैं. इन लोगों के पास किसी भी देश के नागरिक अधिकार नहीं हैं. बांग्लादेश में बरसों तक चली राजनीतिक अस्थिरता और भारत के ठंडे रवैये को लेकर यह मामला आज तक अनसुलझा रह गया.
मनमोहन सरकार ने इस मसले को सुलझाने की कोशिश की थी, लेकिन भाजपा के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो पाया. खैर, अब भाजपा ने एक ‘शुभ यू-टर्न’ लिया है और नरेंद्र मोदी सरकार बांग्लादेश के साथ इन छीट महलों और ‘विपरीत कब्जे’ वाले अन्य छोटे भूखंडों की अदला-बदली के लिए तैयार दिख रही है. मोदी सरकार मनमोहन सिंह सरकार द्वारा ली गयी पहलकदमी के सिलसिले को ही आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है.
सितंबर 2011 में दोनों देशों ने 1974 का भू-सीमा समझौता लागू करने के लिए एक प्रोटोकाल के संकल्प (प्रोटोकाल प्लेजिंग) पर दस्तखत किये थे. इसे लागू कराने के लिए संसद से संविधान संशोधन पारित कराने की जरूरत थी. घरेलू राजनीति के हालात के चलते मनमोहन सरकार यह काम नहीं कर पायी.
इसकी वजह से भारत की दोस्त समझी जानेवाली बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद को अपने देश में आलोचना भी ङोलनी पड़ी. उम्मीद की जानी चाहिए मोदी सरकार इस बार जो पहल कर रही है, उसका ऐसा अंजाम नहीं होगा. भू-सीमा समझौता लागू होने से किसी भी देश को अदला-बदली में ज्यादा जमीन नहीं खोनी पड़ेगी. छीट महलों में जो लोग रह रहे हैं, वो भी जहां हैं, वहीं रहेंगे. किसी के बेघर होने की नौबत नहीं आयेगी. एक ऐसा समझौता जो सीमा के दोनों तरफ रह रहे लोगों की जिंदगी को कुछ आसान बना सकता है, तो उसे लागू करने में देर करने का कोई तुक नहीं है.
कितनी जमीन की होगीअदला-बदली
जमीनों की अदला-बदली के लिए संविधान संशोधन विधेयक, 2013 तत्कालीन सरकार ने तैयार किया था. इस विधेयक पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने बीते सोमवार को अपनी रिपोर्ट लोकसभा में पेश की. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘विदेश मंत्रालय ने विपरीत कब्जों (एडवर्स पजेशन) के मामले में सूचित किया है कि भारत को 2,777.038 एकड़ जमीन मिलेगी, जबकि वह 2,267.682 एकड़ जमीन बांग्लादेश को सुपुर्द करेगा. छीट महलों के मामले में, जो जमीन बांग्लादेश को सौंपी जानी है, वह उसके कब्जे में पहले से ही है और इसे बांग्लादेश को सुपुर्द करना महज उस वास्तविक जमीनी स्थिति को कानूनी ढंग से स्वीकार करना है. इसी तरह, 2011 का प्रोटोकॉल लागू होने के साथ ही जो जमीनें भारत के विपरीत कब्जे में हैं वो औपचारिक रूप से भारत को सुपुर्द हो जायेंगी.’’
मंत्रालय ने यह भी कहा है कि यह प्रोटोकाल असम, मेघालय, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों के पूर्ण समर्थन से तैयार किया गया है. जमीन के जिन टुकड़ों की अदला-बदली होनी है, वो इन्हीं राज्यों में स्थित हैं. ‘विपरीत कब्जा’ वह जमीन है जो भारतीय सीमा के साथ लगी है और भारत के नियंत्रण में है, लेकिन कानूनी रूप से वह बांग्लादेश का हिस्सा है. यही बात बांग्लादेशी विपरीत कब्जों पर भी लागू होती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि दोबारा सीमांकन के जरिये विपरीत कब्जों की यथास्थिति बरकरार रहेगी. सबकुछ ‘जहां है जैसे है’ के आधार पर निबटाया जायेगा. सिर्फ वास्तविक नियंत्रण को कानूनी जामा पहना दिया जायेगा.
व्यावहारिक नजरिये से देखें, तो नुकसान नहीं
संसदीय समिति का कहना है कि यह विधेयक संसद से पारित होने के बाद दोनों देशों के छीट महलों में रहनेवालों की परेशानियों का अंत हो जायेगा. रिपोर्ट में यह भी है कि प्रोटोकाल के लागू होने के बाद भारत और बांग्लादेश दोनों की जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) में थोड़ा सा बदलाव आयेगा. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘न सिर्फ छीट महलों से कुछ भारतीय नागरिक मुख्यभूमि वापस लौटेंगे, बल्कि क्षेत्र के विलय के बाद कुछ संख्या में उन लोगों को भारतीय नागरिकता दी जायेगी, जो अभी बांग्लादेशी नागरिक हैं. अचानक इस नयी आबादी के जुड़ाव के चलते सुरक्षा के लिहाज से सतर्कता बरते जाने की जरूरत है.’’
भारत के जो 111 छीट महल बांग्लादेश को सौंपे जायेंगे, उनका कुल क्षेत्रफल 17,160.63 एकड़ है, जबकि बांग्लादेश के जो छीट महल भारत में हैं वो भारत को मिलेंगे जिनका कुल क्षेत्रफल 7,110.02 एकड़ है. रिपोर्ट कहती है, ‘‘भारत और बांग्लादेश के बीच छीट महलों की अदला-बदली को कागज पर देखने से लगता है कि भारत को बांग्लादेश के हाथों जमीन का नुकसान हो रहा है, लेकिन जमीन पर नजारा बिल्कुल अलग है.’’ ये छीट महल बांग्लादेश में बहुत अंदर जाकर हैं और सन 1947 से ही इन तक पहुंचने का कोई सीधा रास्ता शायद ही है. इसी तरह, भारत में स्थित छीट महलों तक बांग्लादेश की बहुत कम पहुंच है.
बांग्लादेशी छीट महल पश्चिम बंगाल के कूच बिहार जिले में स्थित हैं. और, भारत के छीट महल बांग्लादेश के पंचागढ़, लालमोनीर हाट, कुरीग्राम और नीलफामारी जिलों में स्थित हैं, जो पश्चिम बंगाल की सीमा के नजदीक हैं.
रिपोर्ट कहती है कि अगर व्यावहारिक नजरिये से देखें, तो छीट महलों की अदला-बदली सिर्फ ‘भावनात्मक अदला-बदली’ (नोशनल एक्सचेंज) है. जमीन पर जाकर देख जाये, तो देश की बाहरी सीमा में कुछ खास बदलाव नहीं आयेगा.
समुद्री सीमा विवाद पहले ही सुलझ चुका है
भारत और बांग्लादेश के बीच तीन दशकों से जारी समुद्री सीमा के विवाद का जुलाई, 2014 में अंत हो गया. संयुक्त राष्ट्र के एक न्यायाधिकरण ने विवादित क्षेत्र का लगभग 80 फीसदी हिस्सा बांग्लादेश को देने का फैसला दिया. इसके तहत दोनों देशों के बीच विवाद में फंसे बंगाल की खाड़ी के 25,000 वर्ग किलोमीटर के इलाके का 19,500 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र बांग्लादेश को दिया गया और करीब छह हजार वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र भारत के हिस्से में आया. इस फैसले के बाद बांग्लादेश अब बंगाल की खाड़ी में तेल की खोज कर सकेगा.
भारत और बांग्लादेश दोनों ने ही इस फैसले का स्वागत किया था. भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा था, ‘‘हमें विश्वास है कि समुद्री सीमारेखा विवाद के समाप्त होने से भारत और बांग्लादेश के बीच आपसी समझ और सद्भावना बढ़ेगी. इससे बंगाल की खाड़ी का आर्थिक विकास होगा जिससे दोनों देशों को फायदा पहुंचेगा.’’ भारत के साथ चल रहे समुद्री सीमा के विवाद को बांग्लादेश ने साल 2009 में संयुक्त राष्ट्र के समुद्री कानून पर बने अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में उठाया था.
अब भी बाकी हैं कुछ चिंताएं
भू-सीमा समझौते को भारत द्वारा लागू करने में अब कुछ चिंताएं बाकी हैं. ये चिंताएं मुख्य रूप से नये नागरिकों के पुनर्वास और सुरक्षा से जुड़े पहलुओं को लेकर हैं. संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ममता बनर्जी सरकार ने इस समझौते को लेकर भले ही अपना विरोध वापस ले लिया है, पर उसके रुख में यह बदलाव सशर्त है. कुछ दिन पहले ही ममता की तृणमूल कांग्रेस ने यह संकेत दिया था कि वह समझौते को कानूनी जामा पहनाये जाने का विरोध छोड़ देगी, लेकिन नयी दिल्ली को नये नागरिकों के पुनर्वास के लिए भुगतान करना होगा. संसदीय समिति की रिपोर्ट में विदेश सचिव सुजाता सिंह के हवाले से कहा गया है कि केंद्र द्वारा प्रस्तावित मुआवजे के पैकेज को बंगाल द्वारा मंजूर किया जाना अब भी बाकी है. दूसरी चुनौती सुरक्षा को लेकर है. गृह सचिव अनिल गोस्वामी ने संसदीय समिति से कहा कि स्थानीय पुलिस को निर्देश दिया जायेगा कि जो भारतीय नागरिक बांग्लादेश को सौंपे गये भारतीय छीट महलों से बंगाल आयेंगे, उन पर कड़ी नजर रखी जाए. केंद्र सरकार उनके बायोमीट्रिक ब्योरों (उंगलियों व पुतली के छाप) को दर्ज करेगी.
भाजपा के पुराने बोल
संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन : जेटली
दिसंबर, 2013 में राज्यसभा सचिव को लिखे एक पत्र में भाजपा के वरिष्ठ नेता और अभी मोदी सरकार के अहम मंत्री अरुण जेटली ने इससे संबंधित विधेयक को सदन के पटल पर रखने जाने का विरोध करते हुए चौंकाने वाला दावा करते हुए कहा था कि प्रस्तावित अदला-बदली से संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन होगा. उन्होंने लिखा था, ‘‘मेरे विरोध का आधार यह है कि 1973 के बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने मूल ढांचे के सिद्धांत का परिचय दिया था, भारत का क्षेत्र संविधान के मूल ढांचे का अंतर्निहित भाग है. इसे संविधान में संशोधन के साथ कम किया या बदला नहीं जा सकता.’’
यह भूमि का नहीं, संवेदना का मसला : सुषमा
अगस्त, 2013 में लोकसभा में विपक्ष की नेता और अभी मोदी सरकार में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पार्टी की प्रेस ब्रीफिंग में कहा, ‘‘भाजपा इस समझौते और विधेयक के पूरी तरह खिलाफ है. हमने बिना लाग लपेट के प्रधानमंत्री को कह दिया था कि हम इसका समर्थन नहीं करेंगे जिसके लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत है. हमने उनसे कह दिया था कि इस विधेयक को पेश करने का प्रयास भी नहीं करें.’’ सुषमा ने कहा कि इस समझौते के तहत 10 हजार एकड़ भूमि दे रहे हैं. यह केवल भूमि का सवाल नहीं है, बल्कि इससे संवेदनाएं जुड़ी होती हैं. इस तरह से लापरवाही से कोई समझौता नहीं किया जा सकता.
..तो वैध घुसपैठ होगी : राहुल सिन्हा
फरवरी, 2013 में भाजपा के पश्चिम बंगाल अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने प्रेस वार्ता में कहा कि यदि केंद्र सरकार मुख्य विपक्षी दल से सलाह किये बिना छीट महल पर बांग्लादेश के साथ समझौता करती है तो हम लोग उसका विरोध करेंगे. उन्होंने कहा कि भारतीय छीट महल के निवासियों की आबादी बांग्लादेश के छीटमहल के निवासियों की तुलना में बहुत कम है. इससे भारतीय क्षेत्र में वैध घुसपैठ की संख्या बढ़ेगी जो चिंता का कारण है.