उम्र के आगे एवरेस्ट भी छोटा

जिस उम्र में बच्चे ठीक ढंग से अपनी बात भी लोगों के सामने नहीं रख पाते हैं, उस उम्र में नन्हे हर्षित ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की जिद की और एक कीर्तिमान बना दिया. हर्षित ने एवरेस्ट की 5545 मीटर ऊंची चोटी काला पत्थर पर अपने देश का तिरंगा लहराया और ‘जय भारत’ का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 6, 2014 2:01 PM
जिस उम्र में बच्चे ठीक ढंग से अपनी बात भी लोगों के सामने नहीं रख पाते हैं, उस उम्र में नन्हे हर्षित ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की जिद की और एक कीर्तिमान बना दिया. हर्षित ने एवरेस्ट की 5545 मीटर ऊंची चोटी काला पत्थर पर अपने देश का तिरंगा लहराया और ‘जय भारत’ का नारा भी लगाया. आज वे सभी बच्चों के हीरो बन चुके हैं. जानते हैं साहसी हर्षित ने कैसे पाया यह लक्ष्य और कैसे पूरा किया इतना कठिन व रोमांच से भरा सफर.
10 दिनों में चढ़ा 5545 मीटर एवरेस्ट की ऊंचाई
जिस उम्र में बच्चे स्कूल में पढ़ाई की शुरुआत करते हैं, लगभग उसी उम्र में दरभंगा के हर्षित सौमित्र ने हिमालय की 5545 मीटर ऊंची चोटी माउंट काला पत्थर पर भारत का तिरंगा झंडा फहरा दिया. इस उपलब्धि के लिए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी हर्षित की खूब सराहना की और बधाई दी.
दरभंगा के बहादुरपुर के जोगियारा गांव के रहनेवाले महज 5 साल 11 माह के हर्षित सौमित्र ने पर्वतारोहण में विश्व रिकॉर्ड बनाया है. उन्होंने 5364 मीटर ऊंचे माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप व 5545 मीटर ऊंची चोटी काला पत्थर पर 18 अक्तूबर, 2014 को भारत का तिरंगा झंडा फहरा कर अपने ही देश के सात साल की उम्र के आर्यन बालाजी का रिकॉर्ड तोड़ दिया.
हर्षित के पिता राजीव सौमित्र खुद भी पर्वतारोही रहे हैं और वे दुनिया की तीन बड़ी चोटियों- नेपाल आइलैंड, माउंट एवरेस्ट और माउंट किलिमंजारो की चोटियों पर भारत का तिरंगा फहरा चुके हैं. दिल्ली के जीडी गोयनका स्कूल के पहली कक्षा में पढ़नेवाले हर्षित से पहले आठ साल का एक अमेरिकी बच्चा और भारत के सात वर्षीय आर्यन बालाजी माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप पर पहुंच कर रिकॉर्ड बना चुके थे, लेकिन हर्षित ने उस रिकॉर्ड को तोड़ कर नया कीर्तिमान रचा है.
चोटी पर पहुंचने के बाद उन्होंने तिरंगा झंडा फहराते हुए ‘जय हिंद, जय भारत’ और ‘इंडिया इज ग्रेट’ का नारा भी लगाया. एक दिन पहले 17 अक्तूबर को हर्षित माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप पर पहुंचे थे, जिसकी ऊंचाई 5364 मीटर है और अगले दिन काला पत्थर. हालांकि हर्षित की उम्र 10 साल से कम होने से उन्हें माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप से ऊपर (एवरेस्ट की चोटी) जाने की अनुमति नहीं मिली. अब उनका यह लक्ष्य है कि वे एक दिन माउंट एवरेस्ट की चोटी भी फतह करेंगे.
एक प्रेरणा को बदल दिया रिकॉर्ड में
इसे भी जानो
समुद्री सतह से 8848 मीटर यानी 29029 फुट ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर है. नेपाल में इसे स्थानीय लोग सागरमाथा (अर्थात् स्वर्ग का शीर्ष) नाम से जानते हैं, जबकि तिब्बत में इसे सदियों से चोमोलुंग्मा (पर्वतों की रानी) के नाम से जाना जाता है. यह नेपाल (सागरमाथा जोन) और चीन (तिब्बत) की सीमा पर स्थित है. वैज्ञानिक सर्वेक्षणों में कहा जाता है कि इसकी ऊंचाई प्रतिवर्ष 2 सेमी के हिसाब से बढ़ रही है. माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए नेपाल सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है.
1953 में जॉन हंट के नेतृत्व में दो पर्वतारोहियों टॉम बिर्डलन और चाल्र्स इवान्स को सबसे पहले माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए भेजा गया, लेकिन वे दोनों 300 फुट की ऊंचाई तक जाकर 26 मई, 1953 को वापस लौट आये, क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगी थी. दो दिन बाद दूसरे दल में न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाली शेरपा तेनिजंग नोर्गे रवाना हुए. वे 29 मई, 1953 को सुबह 11.30 बजे चोटी पर पहुंचे. उन्होंने वहां फोटो खींचे और एक-दूसरे को मिठाई खिला कर बधाई दी.
पापा से मिली प्रेरणा
मुझे मेरे पापा से पर्वतारोहण की प्रेरणा मिली है. वे हमेशा इसकी बातें किया करते थे कि कैसे वे एवरेस्ट पर चढ़े थे और उनका सफर कितना रोमांचक था. वे अपनी यात्रओं की कहानियां सुनाते थे. उतनी ऊंचाइयों पर पहुंचने पर उन्हें किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा आदि. मैं जब 2 साल 6 महीने का था, तभी से वे मुझे उत्साहित किया करते थे. साथ ही मुझे ट्रेनिंग भी दिया करते थे और कठिनाइयों से लड़ने की प्रेरणा भी देते थे.
एवरेस्ट के लिए ऐसे माने पापा
जब मैं माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की जिद करने लगा, तो पाप ने पहले मुझे बहलाना शुरू किया कि अभी नहीं बाद में जायेंगे, लेकिन मैं अपने जिद पर अड़ा रहा. फिर भी वे मेरी जिद पूरी करने के लिए नेपाल ले गये. वहां मुझे लांटंग पर्वत पर चढ़ने के लिए ले गये थे. मैंने सुना था कि एवरेस्ट की चोटी तो बहुत ऊंची होती है. तसवीरें भी देखीं थीं, उसमें चोटी बहुत ऊंची दिख रही थी. मैं चढ़ तो गया, लेकिन मुझे तो एवरेस्ट पर चढ़ना था. फिर मैंने जिद की कि मुझे तो एवरेस्ट पर जाना ही है. कुछ दिनों बाद वे मुझे रोहतांग ले गये, वहां जाकर मैंने देखा कि यह एवरेस्ट तो नहीं है. मुझे तो सिर्फ एवरेस्ट पर ही चढ़ना था, तो फिर मुझे अक्तूबर में पापा एवरेस्ट पर ले गये. वहां मैंने माउंट काला पत्थर की चोटी को फतह किया. इसकी ऊंचाई 5545 मीटर है.
यूं शुरू हुआ सफर
वैसे तो मैं 5 अक्तूबर को दिल्ली से निकला था, लेकिन असली सफर तो 7 अक्तूबर से शुरू हुआ था. मैंने यह सफर 10 दिनों में पूरा किया. 17 अक्तूबर को मैं बेस कैंप पहुंचा और 18 को मैं काला पत्थर पहाड़ी पर पहुंचा. इस सफर के दौरान मैं फाकडिंग, नामचे, डिंगबाचे और गोरक शेप जगहों पर रुका. वहां कैंप बना कर मैंने रात गुजारी. उसी दौरान हुदहुद तूफान आया था, तो फेरिके में 2 दिन के लिए रुका. सब तो बोल रहे थे कि अब आगे नहीं जाना है, लेकिन मैं नहीं हारा. न तो कोई शारीरिक परेशानी हुई और न ही मानसिक रूप से मैं कमजोर पड़ा.
मैं कभी नहीं डरा
पापा मुझे एवरेस्ट पर ले जाना नहीं चाहते थे, क्योंकि वे सोचते थे कि मैं उस ऊंचाई को देख कर डर जाऊंगा. लेकिन मेरी हिम्मत ने उन्हें हौसला दिया. वे मुझे ले जाने के लिए तैयार हुए. इस यात्र के दौरान मैं कभी भी डरा नहीं और न ही हारा मैं. मैं तो इस ऊंचाई को भी पार करना चाहता था, लेकिन सबने यही कहा कि जितनी ऊंचाई बढ़ती जायेगी, उतना ही हवा का दाब कम होता जायेगा और मुझे परेशानी होगी. अभी उम्र कम है, तो मैं भी पीछे हट गया.
राष्ट्रपति ने सराहा
मेरी जिद है कि मैं एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ूं. इसके लिए कोशिश करता रहूंगा. चाहे कुछ भी हो जाये, मैं वहां तक पहुंच कर रहूंगा. मुझे राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जी से मिल कर बहुत अच्छा लगा. उन्होंने खूब सराहा. मैं अपने माता-पिता और उनके सहयोग के बिना यह सफलता हासिल नहीं कर पाता. अब मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं और गरमियों में फिर से मैं पर्वतारोहण के लिए जाऊंगा.
एवरेस्ट की चोटी छू चुकी हैं पूर्णा
13 वर्षीया मालवथ पूर्णा विश्व की पहली लड़की है, जिसने इतनी कम उम्र में एवरेस्ट की चोटी (ऊंचाई 8848 मीटर) को छूआ था. इससे पहले उन्होंने कभी भी किसी पर्वत की चोटी पर चढ़ाई नहीं की थी. तेलंगाना के दलित परिवार से संबंध रखनेवाली पूर्णा ने दाजिर्लिंग के माउंटेनइयरिंग इंस्टीट्यूट से 8 महीने की ट्रेनिंग ली थी. पूर्णा ने 10 नेपाली गाइडों के साथ मिल कर तिब्बत की तरफ से एवरेस्ट पर यह चढ़ाई की थी. पूरी यात्र में पूर्णा को 52 दिनों का समय लगा था.
हैं कई प्रशिक्षण संस्थान
अगर तुम्हें भी पर्वतारोहण में रुचि है, तो तुम भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हो और अपने लक्ष्य को पूरा कर सकते हो. कई ऐसे इंस्टीट्यूट हैं, जहां से तुम पर्वतारोहण का प्रशिक्षण ले सकते हो. इंटरनेशनल माउंटेनियरिंग एंड क्लाइंबिंग फेडरेशन (दिल्ली), अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (मनाली), माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट (दाजिर्लिंग) जैसे देश में कई प्रशिक्षण संस्थान हैं. पर्वतारोहण के लिए दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास की जरूरत है.
प्रस्तुति : प्रीति पाठक
7 वर्ष के आर्यन बालाजी ने भी बनाया था रिकॉर्ड
इससे पहले 2012 में भारत के आर्यन बालाजी ने काला पत्थर तक पहुंच कर रिकॉर्ड कायम किया था. उस समय आर्यन सबसे कम उम्र के पर्वतारोही थे. आर्यन इंडियन नेवी ऑफिसर कमांडर बालाजी के पुत्र हैं. कमांडर बालाजी को खुद भी एडवेंचर और ट्रैकिंग से बहुत लगाव रहा है. इस रिकॉर्ड को बनाने से पहले दोनों पिता-पुत्र लगभग 2 महीने के लिए नेपाल में रुके थे. वहां के क्लाइमेट में एडजस्ट होने के लिए वे वहां रोज टफ प्रैक्टिस किया करते थे. उसके बाद उन्होंने यह कारनामा 15 मई, 2012 को किया था. इसके बाद उनकी नजर माउंट किलिमंजारो पर थी. यह अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी है. इसकी ऊंचाई 19343 फुट है. यह रिकॉर्ड भी उन्होंने 25 फरवरी, 2013 को बनाया.

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