भगवत गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने के विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बयान पर विवाद छिड़ गया है और विपक्षी पार्टियों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है.
सुषमा स्वराज ने रविवार को लाल किला मैदान में गीता की ‘5151वीं वर्षगांठ’ पर कहा था कि इसे राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने की बस औपचारिकता मात्र बाक़ी है.
दूसरी ओर स्वराज के बयान की तीखी आलोचना करते हुए कांग्रेस ने इसे ‘ओछा’ बयान बताया है.
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा है कि गीता का सार उसके तत्व में है न कि प्रतीकवाद में.
आलोचना
पीटीआई के मुताबिक, तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि हमारा संविधान कहता है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और लोकतंत्र में केवल संविधान ही ‘पवित्र किताब’ हो सकता है.
ममता बनर्जी ने कहा है, "हम सभी धर्म ग्रंथों का सम्मान करते हैं. क़ुरान, पुराण, वेद, बाइबिल, त्रिपिटक, गुरु ग्रंथ साहिब, गीता, ये सभी हमारा गर्व हैं."
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ट्वीट कर कहा है, "हिंदू धर्म केवल एक पवित्र ग्रंथ पर आधारित धर्म नहीं है. वेद, पुराण और उपनिषद् समान रूप से पवित्र हैं और भारत में कई मतों के पवित्र ग्रंथ हैं."
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, सुषमा ने कहा, ”प्रधानमंत्री ने पिछले सितंबर में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को इस ग्रंथ को भेंट देकर, इसे पहले ही राष्ट्रीय ग्रंथ का दर्जा दे दिया है.”
उन्होंने अवसाद के शिकार लोगों को गीता पढ़ने के लिए सलाह दी.
‘संविधान से ऊपर’
यह आयोजन संघ से जुड़ी संस्था ग्लोबल इंस्पीरेशन एंड एनलाइटमेंट ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इंडिया की ओर से किया गया था.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि इस धार्मिक पुस्तक को संविधान से ऊपर माना जाता रहा है.
विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख अशोक सिंघल ने सभा में मांग की कि प्रधानमंत्री को इसे तत्काल राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित कर देना चाहिए.
इस अवसर पर 20 देशों के दूतावासों के प्रतिनिधि मौजूद थे.
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