मानवता का नाश करेगा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस!
ब्रह्मनंद मिश्र भौतिक शास्त्री प्रो स्टीफन हॉकिन्स ने एक हालिया इंटरव्यू में कहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक एक दिन मानव सभ्यता को खत्म कर सकती है. उनके इस बयान के बाद इस तकनीक पर दुनियाभर में विशेषज्ञों के बीच बहस छिड़ गयी है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्या है, यह तकनीक किस मुकाम तक पहुंची है […]
ब्रह्मनंद मिश्र
भौतिक शास्त्री प्रो स्टीफन हॉकिन्स ने एक हालिया इंटरव्यू में कहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक एक दिन मानव सभ्यता को खत्म कर सकती है. उनके इस बयान के बाद इस तकनीक पर दुनियाभर में विशेषज्ञों के बीच बहस छिड़ गयी है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्या है, यह तकनीक किस मुकाम तक पहुंची है और भविष्य में लोगों की जिंदगी को कैसे प्रभावित करेगी, आदि जैसे सवालों की पड़ताल की एक कोशिश आज के नॉलेज में..
‘बुद्धिमत्ता’ ही एक ऐसा शब्द है जो समूचे ब्रह्मांड में मानव को अन्य जीवों से बिल्कुल अलग करता है. लेकिन, मानव मस्तिष्क के दिशा-निर्देशों पर काम करनेवाली मशीनें ही यदि खुद के दिमाग पर निर्भर हो जाये, तो निश्चित तौर एक नये युग की शुरुआत हो सकती है. अब तक का विकास- चाहे वह तकनीकी विकास हो, सामाजिक विकास हो, आर्थिक विकास हो या फिर मानव सभ्यता का उत्थान, पूर्वजों की सोच और उपलब्धियों का प्रतिफलन है. तकनीकी विकास के क्रम में आज हम ऐसे मुकाम पर हैं, जहां से तकनीकी विशेषज्ञों को यह विश्वास हो चला है कि निकट भविष्य में मानव मस्तिष्क के सारे क्रिया-कलाप मशीनी रूप धारण कर लेंगे.
‘बीबीसी’ के साथ एक साक्षात्कार में हाल में विश्व प्रसिद्ध सैद्धांतिक भौतिकीविद् स्टीफन हॉकिन्स ने कहा कि पूरी तरह विकसित ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता मानव जाति के विनाश की कथा लिख सकती है.’ उधर, तकनीकी विशेषज्ञ एलॉन मस्क ने कुछ दिनों पहले मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में आयोजित एक कान्फ्रेंस में चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नाभिकीय हथियारों से भी ज्यादा खतरनाक है.’
उन्होंने इस पर राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नियमन की भी वकालत की है. फ्यूचर ऑफ ह्यूमेनिटी इंस्टीटय़ूट, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के डायरेक्टर व स्वीडिश फिलॉसोफर निक बॉस्ट्रम ने भी अपनी पुस्तक ‘सुपर इंटेलिजेंस’ में स्पष्ट किया है कि एक बार मशीन की बुद्धिमत्ता मानव मस्तिष्क पर प्रभावी होने पर एक साथ कई बड़ी समस्याएं जन्म ले सकती हैं. हालांकि, ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर दूसरा पहलू भी है. कुछ तकनीकी विशेषज्ञ इसे मानव विकास का नया अध्याय मानते हैं.
क्या है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीक
हम सभी इनसान खुद को होमोसेपिएंस कहते हैं. इनसान के लिए बुद्धिमत्ता ही महत्वपूर्ण है. हजारों वर्षो तक इनसान ने यह जानने का प्रयास किया है कि आखिर हम सोचते कैसे हैं? जोकि एक बेहद जटिल प्रक्रिया है. साइंस और तकनीक आधारित ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ की प्रक्रिया इस जटिलता का अगला चरण है. इस तकनीक पर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद काम शुरू हुआ. वर्ष 1956 में पहली बार दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे शब्द से अवगत हुई. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिसर्च भविष्य के लिए कई आइंस्टीन और एडिशन जैसे चमत्कारिक मस्तिष्क के लिए प्लेटफार्म है. अब तक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक के विकास की बात करें तो मशीनी दिमाग के लिए शतरंज खेलना, गणितीय प्रमेयों को हल करना, कविताएं लिखना, भीड़-भाड़ जैसी जगहों पर कार ड्राइविंग करना बेहद आसान हो चुका है.
बड़े स्तर पर कहें तो यह एक ऐसा सार्वभौमिक क्षेत्र बनने की ओर अग्रसर है, जहां लगभग सभी बौद्धिक कार्य प्रासंगिक हैं. एआइ से जुड़े विशेषज्ञ इसे परिस्थितिजन्य क्रिया-कलापों पर आधारित शोध के रूप में परिभाषित करते हैं. इसके फंक्शन को रिएक्टिव एजेंट, रीयल टाइम प्लानर और डिसीजन-थ्योरेटिक सिस्टम के रूप में प्रदर्शित किया जाता है.
ब्रिटिश गणितज्ञ एलन टय़ूरिंग (1950) ने सबसे पहले इंटेलिजेंस की गणितीय व्याख्या की थी. स्टुअर्ट रसेल व पीटर नॉरविग ने अपनी पुस्तक ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस : ए मॉडर्न अप्रोच’ में कंप्यूटर की क्षमता के लिए चार महत्वपूर्ण घटकों का विवरण दिया है. पहला, नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग- जिसकी मदद से कम्युनिकेशन को आसान बनाया जाता है. दूसरा, नॉलेज रिप्रेजेंटेशन- ज्ञात तथ्यों को संरक्षित किया जाता है. तीसरा, ऑटोमेटेड रीजनिंग-इसके माध्यम से किसी सवाल का जवाब देने के लिए इन सूचनाओं का इस्तेमाल और नये निष्कर्षो की रूप-रेखा तैयार होती है. चौथा, मशीन लर्निग – इसके माध्यम से नयी परिस्थितियों के बारे में जानकारी हासिल करने की प्रक्रिया संपन्न की जाती है.
रोबोट व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
कृत्रिम बुद्धिमत्ता मानव के विचारशील प्रक्रियाओं की पुनर्निर्माण प्रक्रिया है. यानी मानव निर्मित ऐसी मशीन जो बौद्धिक क्षमताओं से पूरी तरह युक्त हो. रोबोटिक्स विज्ञान और तकनीक की ऐसी शाखा है, जो उपरोक्त तकनीक के बेहद करीब है. कंप्यूटर विभिन्न जटिल समस्याओं को एक साथ हल कर पाने में सक्षम है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रोबोट या कंप्यूटर ह्यूमन इनपुट या सेंसर के माध्यम से परिस्थितियों का आकलन करते हैं. एकत्र सूचनाओं के आधार पर कंप्यूटर या रोबोट काम करता है यानी प्रोग्रामिंग के आधार पर समस्याओं का हल निकालता है. लेकिन अत्याधुनिक कंप्यूटर इनसान की तरह सूचनाओं को पढ़ पाने और सीखने में भी कामयाब हो रहा है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शोधकर्ताओं के सामने सबसे बड़ी समस्या यह समझने की है कि आखिर ‘इंटेलिजेंस’ कैसे कार्य करता है? मानव मस्तिष्क लाखों-करोड़ों न्यूरॉन से बना होता है. ‘साइंस डॉट हाउस्टफवर्क्स’ की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ विशेष प्रकार के रोबोट सामाजिक तौर पर काम कर पाने में सक्षम होते हैं. एमआइटी के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लैब द्वारा बनाया गया ‘कि समेट’ रोबोट मानव क्रिया-कलापों और आवाज को पहचान पाने में सक्षम है. विशेषज्ञों का मानना है कि मानव और मशीन का यह पारस्परिक मेल भविष्य में इनसान की तरह काम कर पानेवाली मशीन के लिए बुनियाद बनेगा.
कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर कितने संजीदा हैं हम
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शोध की प्रक्रिया पिछले कुछ वर्षो में गुणात्मक रूप से बढ़ी है. भविष्य में इस तकनीक के विकास के साथ मानव के लिए कई काम बेहद आसान हो जायेंगे. भविष्य में हम क्या-क्या हासिल कर पायेंगे, यह बता पाना किसी के लिए भी आसान नहीं है. कुछ तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि युद्ध जैसी समस्याओं से निबटने, बीमारी और गरीबी दूर करने जैसे काम आज की तुलना में बेहद आसान हो जायेंगे.
‘इंडिपेंडेंट’ की रिपोर्ट के अनुसार, निकट भविष्य में दुनियाभर में कई देशों की सेनाएं ऑटोनॉमस-वीपन सिस्टम (स्वचालित हथियार तंत्र) विकसित करने की दिशा में अग्रसर हैं, जिसकी मदद से लक्ष्य की निगरानी करना और भेदना बहुत आसान हो जायेगा. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसी संस्थाएं ऐसे हथियारों के प्रयोग को प्रतिबंधित करने की पक्षधर हैं.
एरिक ब्रिंजोफशन और एंड्रयू मैक्फी ने अपनी पुस्तक ‘द सेकेंड मशीन एज’ में बताया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बदल सकता है. इससे समृद्धि के साथ-साथ अव्यवस्था फैलने की पूरी आशंका होगी. उपलब्धियों के लिए कोई मूल सीमा नहीं निर्धारित की गयी है. कोई इतना ही सोच सकता है कि ये तकनीकें वित्तीय बाजार को प्रभावित करेंगी, मानव शोधकर्ताओं के लिए चुनौतियां उत्पन्न करेंगी, मानव नेतृत्वकर्ताओं से कहीं आगे होंगी और संभव है कि ऐसे हथियारों को निर्माण कर दें, जो मानवमात्र की सोच से कहीं दूर की चीज हो. इसका अल्पकालिक प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि कौन इसे नियंत्रित करेगा और दीर्घकालिक प्रभाव इस बात निर्भर करेगा कि अलग-अलग परिस्थितियों में यह कैसे मानव के नियंत्रण में होगा?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से हो सकता है विनाश!
विश्वविख्यात वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिन्स का मानना है कि पूरी तरह से विकसित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता/एआइ) मानव जाति की विनाश कथा लिख सकती है. उन्होंने यह चेतावनी बीबीसी प्रतिनिधि के उस सवाल के जवाब में दी जो उनके बात करने के लिए इस्तेमाल होनेवाली तकनीक को दुरुस्त करने के संबंध में था, जिसमें शुरुआती स्तर की एआइ शामिल हों.
सैद्धांतिक भौतिकीविद् स्टीफन हॉकिन्स को मोटर न्यूरॉन बीमारी एमियोट्रोफिक लेटरल स्कलेरोसिस (एएलएस) है और वह बोलने के लिए इंटेल के विकसित एक नये सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं. ब्रिटेन की कंपनी स्वि़फ्टकी के मशीन लर्निग विशेषज्ञ भी इसे बनाने में शामिल रहे हैं. उनकी तकनीक- जो कि पहले ही स्मार्टफोन के कीबोर्ड एप में इस्तेमाल हो रही है- यह सीखती है कि प्रोफेसर क्या सोचते हैं और ऐसा शब्द प्रस्तावित करती हैं जो वह संभवत: बोलने वाले होते हैं.
प्रोफेसर हॉकिन्स कहते हैं कि अब तक विकसित कृत्रिम बुद्धिमत्ता के शुरुआती प्रकार बेहद उपयोगी साबित हो चुके हैं, लेकिन उन्हें डर है कि इसका असर ऐसी चीज को बनाने पर पड़ सकता है जो इंसान जितनी या उससे भी ज्यादा बुद्धिमान हो. वह कहते हैं, ‘एक दिन एआइ अपना नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगा और खुद को फिर से तैयार करेगा जो हमेशा बढ़ता ही जायेगा.’ चूंकि जैविक रूप से इंसान का विकास धीमा होता है, लिहाजा वह ऐसे सिस्टम से प्रतियोगिता नहीं कर पायेगा और पिछड़ जायेगा.
हालांकि कुछ अन्य वैज्ञानिक एआइ को लेकर बहुत आशंकित नहीं हैं. क्लेवरबॉट के निर्माता रोलो कारपेंटर कहते हैं कि हम लंबे समय तक तकनीक के नियंत्रणकर्ता बने रहेंगे और तमाम समस्याओं को सुलझाने में इसकी क्षमताओं का उपयोग करेंगे.
क्लेवरबॉट का सॉफ्टवेयर अपनी पिछली बातचीत से सीखता है. इससे कई लोग यह धोखा खा चुके हैं कि वह किसी इंसान से बात कर रहे हैं. कारपेंटर कहते हैं कि हम पूरी कृत्रिम बुद्धिमत्ता को विकसित करने के लिए जरूरी कंप्यूटिंग क्षमता हासिल करने से बहुत दूर हैं. हालांकि उन्हें यकीन है कि कुछ दशकों में यह
संभव हो जायेगा.
स्नेत : बीबीसी