रांची: किसकी सरकार बनेगी? कौन होगा मुख्यमंत्री? क्या बहुमतवाली सरकार बनेगी? झारखंड सचिवालय आजकल इन्हीं सवालों में घिरा हुआ है. छोटे कर्मचारियों की कौन कहे, बड़े हुक्मरानों के बीच भी यही सवाल चर्चा के विषय हैं. यानी अधिकतर कर्मियों के बातचीत का मुख्य मुद्दा चुनाव परिणाम से जुड़ा रहता है.
रोज की यही स्थिति है. पूरा सचिवालय इसी गॉशिप में लगा रहता है. सभी अपने-अपने हिसाब से कभी इसकी, तो कभी उसकी सरकार बनवा रहे हैं. इतना ही नहीं वे आंकड़ों का खेल भी खेल रहे हैं. कभी इस पार्टी को इतना संख्या देते हैं, तो कभी उस पार्टी को. विधानसभा वार वे प्रत्याशियों को जीता व हरा भी रहे हैं. कहां कौन जितेगा और कौन हारेगा, यह भी रोज तय कर रहे हैं. यह स्थिति केवल झारखंड सचिवालय में ही नहीं है, बल्कि जिलों व मुफस्सिल के सरकारी कार्यालयों के साथ ही निजी कार्यालयों में भी यही स्थिति देखने को मिल रही है.
बाजी भी लग रही है : हार-जीत को लेकर आपस में बाजी भी लगायी जा रही है. कोई इस पर बाजी लगा रहा है, तो कोई उस पर. बाजी लगाने वाले गवाहों के सामने बाजी लगा रहे हैं.
दावे भी किये जा रहे
कर्मी अपनी राजनैतिक बुद्धिमता व अनुभव के आधार पर दावा भी कर रहे हैं. कई सीटों पर तो हार-जीत के बारे में अपना-अपना दावा भी प्रस्तुत कर रहे हैं. इसके पीछे अपना तर्क भी दे रहे हैं. किस सीट पर कौन सा समीकरण काम कर रहा है. हारने व जीतने के पीछे का कारण भी बता रहे हैं.